जलवायु में आते बदलावों के चलते डेंगू-चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है; फोटो: आईस्टॉक 
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जलवायु में आते बदलावों का सामना करने के लिए तैयार नहीं भारत सहित दुनिया के कई शहर: रिपोर्ट

Lalit Maurya

आज दुनिया की आधी आबादी शहरों में रह रही है, जिसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 70 फीसदी तक पहुंच जाएगा। हालांकि जहां शहरों में रहने के अपने फायदे हैं वहीं चुनौतियां भी कम नहीं। देखा जाए तो दुनिया में जिस तेजी से शहरों का विस्तार हो रहा है, वो अपने साथ अनगिनत समस्याएं भी पैदा कर रहा है।

इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहा है और तापमान में वृद्धि हो रही है उसका असर शहरों में भी खुल कर सामने आने लगा है।

शहरों में जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से उभरती समस्याओं के साथ-साथ स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को उजागर करते हुए येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, रेसिलिएंट सिटीज नेटवर्क और द रॉकफेलर फाउंडेशन ने एक नई रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में न केवल जलवायु परिवर्तन से उभरती समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही इससे जुड़े समाधानों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की गई है।

इस रिपोर्ट में 52 देशों में 118 शहरों के 200 नेताओं के पर किए एक सर्वेक्षण को भी शामिल किया गया है। उन लोगों से जलवायु से जुड़े खतरों से निपटने के लिए उनकी तैयारियों के बारे में भी पूछा गया था। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के शहरों के महत्वपूर्ण लोगों के साथ किए साक्षात्कार को भी इस रिपोर्ट में साझा किया गया है। यदि भारतीय शहरों को बात करें तो इस रिपोर्ट में अहमदाबाद, पुणे, और सूरत शामिल थे।

रिपोर्ट के मुताबिक एक तरफ तेजी से बढ़ती आबादी इन शहरों के लिए समस्या पैदा कर रही है। वहीं हरे-भरे क्षेत्र तेजी से सिकुड़ रहे हैं, जो बढ़ते तापमान के असर को सीमित करने में मददगार होते हैं। इन शहरों के साथ एक बड़ी समस्या इनका पुराना पड़ता बुनियादी ढांचा भी है, जो बाढ़, तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने के लिए तैयार नहीं है।

जलवायु परिवर्तन से शहरों में हावी हो रही बीमारियां

इसके साथ ही जलवायु में आता बदलाव स्वास्थ्य समस्याओं को भी पहले से बदतर बना रहा है, उदाहरण के लिए मौसमी बदलावों और बढ़ते तापमान की वजह से डेंगू जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। देखा जाए तो वो देश जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, वहां शहरों को कहीं ज्यादा बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन शहरों में कमजोर तबके पर असमान रूप से कहीं ज्यादा असर डाल रहा है, ऐसे में शहरों को इन समस्याओं से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

सर्वे में आधे से भी कम शहरों ने जानकारी दी है कि उनके पास जलवायु परिवर्तन से निपटने की योजना है। वहीं चार में से केवल एक का कहना है कि उनकी योजना जलवायु और स्वास्थ्य दोनों को सम्बोधित करती है।

रिपोर्ट में जो जानकारी साझा की गई है, उसके मुताबिक सर्वे किए गए तीन में से दो शहर भीषण गर्मी, बाढ़ और वायु प्रदूषण को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं। वहीं करीब 68.8 फीसदी शहरों ने जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बीमारियों के फैलने को लेकर चिंता जताई है।

इतना ही नहीं कई शहरों में पानी, अपशिष्ट और स्वास्थ्य देखभाल जैसी महत्वपूर्ण शहरी प्रणालियां पर्याप्त मजबूत नहीं हैं, जिससे लोगों को खतरा बना रहता है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि ब्राजील के रियो डी जेनेरो और वियतनाम के हो ची मिन्ह जैसे शहरों में मच्छरों की बड़ी आबादी के कारण डेंगू का प्रकोप कहीं अधिक है। वहीं मियामी और दुबई जैसे तटीय शहरों में समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण बाढ़ की आशंका कहीं अधिक गहरा सकती है।

शहर कमजोर समुदायों जैसे बुजुर्गों, बच्चों, खुले में काम करने वाले मजदूरों और प्रवासियों के साथ स्लम बस्तियों में रहने वाले लोगों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर भी चिंतित हैं। हालांकि इन चुनौतियों के बावजूद शहर स्वास्थ्य, निष्पक्षता और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करने वाले समाधान खोजने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

अच्छी खबर यह है कि कई शहर पहले ही स्वच्छ ऊर्जा में निवेश करने की योजना बना रहे हैं। कई शहरों ने तो उसमें निवेश करना शुरू भी कर दिया है। इसके साथ ही वो ऊर्जा दक्षता पर भी ध्यान दे रहे हैं। इसके साथ ही शहर पार्कों जैसे खुले हरे भरे क्षेत्रों का विकास करने का भी प्रयास कर रहे हैं। वो आपूर्ति श्रृंखला के बेहतर प्रबंधन के साथ-साथ स्थानीय उत्पादन में निवेश कर रहे हैं या उसकी योजना बना रहे हैं।

संसाधनों के बेहतर उपयोग और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की है जरूरत

इस बारे में रिपोर्ट से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता जेनेट इकोविक्स ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि संसाधनों का उपयोग करने के साथ बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने और इन खतरों को सीमित करने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है।

उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन पर प्रतिक्रिया करते समय शहरों को स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि स्वास्थ्य पर केंद्रित यह प्रतिक्रिया वैश्विक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

ऐसे में रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ शहरों को अधिक सशक्त बनाने तथा स्वास्थ्य की बेहतर सुरक्षा के लिए अभी से कार्रवाई करने की जरूरत है।

सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़ों और अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के नेताओं के साथ साक्षात्कार की मदद से रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन का सामना करने और समुदायों को इसके खिलाफ सशक्त बनाने में मदद करने के लिए कुछ सिफारिशें भी की गई हैं।

इनमें जलवायु से जुड़े विशिष्ट जोखिमों और चुनौतियों की पहचान करना प्रमुख है जो कमजोर समुदायों के लिए खतरा हैं। इसके साथ ही नेट जीरो इकोनॉमी तैयार करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा और ऊर्जा दक्ष प्रणालियों में निवेश महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट में आंकड़ों पर भी जोर दिया है। स्वास्थ्य, जलवायु और निष्पक्षता जैसे मुद्दों को हल करने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाना और मानसिक स्वास्थ्य सहायता में विस्तार करना शामिल है।

इसी तरह लू, तूफान, बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं से बचाव के लिए चेतावनी प्रणाली स्थापित करना और जहां यह पहले से मजबूत हैं उन्हें बेहतर बनाने जरूरी है। रिपोर्ट में शहरों से एक साथ मिलकर काम करने की सिफारिश की गई है। साथ ही जलवायु से जुड़े खतरों से कैसे निपटा जा सकता है, उनसे बचाव के सर्वोत्तम तरीकों को साझा करने पर जोर दिया गया है।