जलवायु

आम होती जा रही हैं ला नीना की दीर्घकालिक घटनाएं, क्या जलवायु परिवर्तन का है इसमें कोई हाथ

ला नीना की 1998 के बाद से आई छह में से पांच घटनाओं का प्रभाव एक वर्ष से ज्यादा समय तक महसूस किया गया था। इनमें ला नीना की एक ऐसी घटना भी शामिल है जिसका प्रभाव तीन वर्षों तक दर्ज किया गया था

Lalit Maurya

एक नई रिसर्च से पता चला है कि पिछले 100 वर्षों के दौरान कई वर्षों तक चलने वाली ला नीना की घटनाओं का होना आम होता जा रहा है।

गौरतलब है कि 1998 के बाद आई छह में से पांच ला नीना की घटनाओं का प्रभाव एक वर्ष से ज्यादा समय तक महसूस किया गया था। हैरान कर देने वाली बात है कि इनमें ला नीना की एक ऐसी घटना भी शामिल है जिसका प्रभाव तीन वर्षों तक दर्ज किया गया था।

यह जानकारी हवाई विश्वविद्यालय (यूएच) के डिपार्टमेंट ऑफ एटमोस्फियरिक साइंस से जुड़े वैज्ञानिक बिन वांग के नेतृत्व में अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए हैं।

इस बारे में रिटायर प्रोफेसर वांग ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि, "कई वर्षों तक चलने वाली ला नीना की घटनाओं का एक साथ अध्ययन उल्लेखनीय है, क्योंकि 1920 के बाद से केवल दस ऐसी घटनाएं हुई हैं।"

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अल नीनो की तरह ही ला नीना भी मौसम से जुड़ी घटनाएं हैं जिन्हें आमतौर पर अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) के नाम से जाना जाता है। यह दोनों ही घटनाएं प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से जुड़ी हैं। जहां अल नीनो तापमान में होने वाली वृद्धि के लिए जिम्मेवार होता है। वहीं उसकी तरफ ला नीना के दौरान तापमान में गिरावट आ जाती है।

वैज्ञानिक रूप से देखें तो ला नीना प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस मौसमी घटना का नाम है, जिसमें पानी की सतह का तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा कम हो जाता है। पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सामान्य से कम वायुदाब बनने से इसकी स्थिति बनती है। आमतौर पर इन घटनाओं का असर नौ से 12 महीनों के बीच रहता है। लेकिन कभी-कभी यह स्थिति कई वर्षों तक बनी रहती है। इन दोनों घटनाओं के घटने का यह पैटर्न लगातार चलता रहता है।

अल नीनो और ला नीना दोनों ही घटनाएं दुनिया भर में मौसम, बारिश, तूफान, बाढ़, सूखा जैसी घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इनकी वजह से कहीं सामान्य से ज्यादा बारिश होती है तो कहीं सूखा पड़ता है, और कहीं तूफान आते हैं।

क्या जलवायु में आता बदलाव है इसके लिए जिम्मेवार

यह स्पष्ट है कि हाल के वर्षों में कई वर्षों तक चलने वाली ला नीना घटनाओं में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके लिए कौन से कारक जिम्मेवार हैं और क्या भविष्य में इस तरह की घटनाएं पहले से ज्यादा बार होंगी? यह कुछ ऐसे सवाल है जो जलवायु वैज्ञानिकों के बीच वैश्विक चर्चा का विषय बन गए हैं, लेकिन अभी भी इनके स्पष्ट उत्तर नहीं मिल सके हैं।

इसी को समझने के लिए वांग और उनके सहयोगियों ने 1920 से 2022 के बीच सामने आई ला नीना की 20 घटनाओं का अध्ययन किया। वे यह समझना चाहते थे कि कई वर्षों तक चलने वाली यह ला नीना की घटनाएं ऐतिहासिक रूप से क्यों बदल रही हैं। आमतौर पर, देखा जाए तो लंबे समय तक चलने वाली ला नीना की घटना, सुपर अल नीनो के बाद घटती है, क्योंकि अल नीनो के बाद ऊपरी महासागर से महत्वपूर्ण मात्रा में गर्मी निकलती है।

हालांकि हाल की तीन बहुवर्षीय ला नीना की घटनाओं (2007-08, 2010-11 और 2020-22) ने इस अपेक्षित पैटर्न का अनुसरण नहीं किया था। अपने अध्ययन से शोधकर्ताओं को पता चला है कि यह घटनाएं पश्चिमी प्रशांत महासागर में बढ़ते तापमान और पश्चिमी से मध्य प्रशांत तक समुद्र की सतह के तापमान में आए तेज अंतर के कारण घटती हैं।

इस बारे में वांग का कहना है कि, "पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्मी बढ़ने से ये घटनाएं तेजी से शुरू होती हैं और उनमें निरंतरता बनी रहती है।" "शोध से यह भी पता चला है कि कई वर्षों तक चलने वाली यह ला नीना की घटनाएं एकल-वर्षीय ला नीना से भिन्न हैं क्योंकि इनकी शुरुआत विशिष्ट तरीके से होती है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि यह घटना कितनी शक्तिशाली होगी और इसका जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ेगा।"

इस बारे में जटिल कंप्यूटर सिमुलेशन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि बहुवर्षीय ला नीना की घटनाओं और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तापमान के बीच संबंध है। ऐसे में जो नए निष्कर्ष सामने आए हैं वो इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के साथ ला नीना की चरम घटनाएं और बदतर हो सकती हैं।

शोध के अनुसार यदि पश्चिमी प्रशांत महासागर, मध्य प्रशांत की तुलना में गर्म होता रहा, तो इससे बहुवर्षीय ला नीना की घटनाएं बढ़ सकती हैं, जिससे दुनिया भर में रह रहे समुदायों पर इनका दुष्प्रभाव और ज्यादा बढ़ जाएगा।

गौरतलब है कि हाल ही में जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते जो पिछले 11,000 वर्षों में नहीं हुआ, वो भविष्य में होने वाला है। इस रिसर्च के अनुसार भविष्य में अल नीनो और ला नीना की घटनाओं के आने का जो एक चक्र है वो भविष्य में कमजोर पड़ जाएगा। हालांकि यह बदलाव हमारे लिए अच्छा होगा या बुरा इस बारे में अभी तक स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है।

वांग के मुताबिक अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो भविष्य में ला नीना की चरम घटनाओं की भविष्यवाणी करते समय अनिश्चितताओं को कम करने में मदद कर सकते हैं, साथ ही इससे हमें आने वाले समय के लिए बेहतरी तैयारी करने में सहायता मिल सकती है।