राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष 2,500 से अधिक लोग बिजली गिरने के कारण मर जाते हैं। बढ़ते जलवायु परिवर्तन, चरम मौसम की घटनाओं के कारण बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं।2018 में दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में केवल 13 घंटों के अंदर 36,749 बिजली गिरने की घटनाएं दर्ज की गई थी। इसी माह केवल बिहार में बिजली गिरने से 147 लोगों की जान चली गई। बिजली गिरने से लोग ही प्रभावित नहीं होते है, बल्कि वनों पर भी इसका भयानक असर होता है। वनों मे बिजली गिरने को लेकर पनामा के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है।
पनामा के स्मिथसोनियन ट्रॉपिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसटीआरआई) के शोधकर्ताओं ने एक नक्शा प्रकाशित किया है, जो ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बिजली गिरने वाले स्थानों को दिखाता है। उपग्रह के आंकड़ों के आधार पर, उन्होंने अनुमान लगाया हैं कि प्रत्येक वर्ष भूमि पर 10 करोड़ से अधिक बार बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं। इस तरह की घटनाएं कर्क और मकर रेखा के बीच के क्षेत्र में जंगलों और अन्य पारिस्थितिकी प्रणालियों को बदल रही हैं। यह अध्ययन ग्लोबल चेंज बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
एसटीआरआई के पोस्ट-डॉक्टरल फेलो इवान गोरा ने कहा बिजली गिरने से जंगलों के बायोमास (जैव ईंधन) को स्टोर करने की क्षमता प्रभावित होती है क्योंकि बिजली सबसे बड़े पेड़ों पर प्रहार करती है।
बिजली गिरने का अध्ययन करना बहुत चुनौतीपूर्ण है। अभी तक इसे ऊष्णकटिबंधीय जंगलों में एक परिवर्तन-एजेंट के रूप में अनदेखा किया गया है। जहां शोधकर्ताओं ने सूखा पड़ना, आग लगना और तेज हवाओं जैसी अधिक स्पष्ट गड़बड़ियां देखी हैं।
अब टीम यह जानने में लगी है कि बिजली हर जगह ऊष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्र को कैसे प्रभावित करती है। गोरा ने अर्थ नेटवर्क ग्लोबल लाइटनिंग नेटवर्क (ईएनजीएलएन) की छवियों के आधार पर बिजली गिरने की गणना को नक्शे के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया है। यह इंटरनेशनल जियोस्फीयर-बायोस्फीयर प्रोग्राम और मॉडरेट रिजॉल्यूशन स्पेक्ट्रोडाडोमीटर (एमओडीआइएस) है, जो भूमि के विभिन्न भागों का उपयोग करके बनाए गए उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्रों का मानचित्र है जिसे जलवायु मॉडलिंग ग्रिड कहा गया है।
गोरा और उनके सहयोगियों ने अनुमान लगाया कि बिजली हर साल लगभग 83.2 करोड़ उष्णकटिबंधीय पेड़ों को नुकसान पहुंचाती है और इनमें से 19.4 करोड़ पेड़ नष्ट हो जाते हैं।
मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि एक चौथाई पेड़ संभवतः बिजली गिरने से नष्ट हो जाते हैं। गोरा और उनके सहयोगी यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि बिजली गिरने की संख्या और पारिस्थितिक तंत्र जैव ईंधन और जलवायु को प्रभावित करने वाले जैसे- वर्षा और तापमान के बीच कोई संबंध है या नहीं।
जिन जंगलों में अधिक बिजली गिरती है वहां प्रति हेक्टेयर बड़े पेड़ कम होते हैं। लेकिन अधिक ज्वलंत प्रश्न अभी भी बने हुए हैं।कोई नहीं जानता कि क्यों कुछ पेड़ बिजली के हमलों से बचे रहते हैं जबकि अन्य नष्ट हो जाते हैं, हालांकि यह संभावना है कि पेड़ों ने इस तरह के आम खतरे से निपटने के तरीके विकसित किए हों।
जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण बढ़ता है, शहरों की गर्म हवा के कारण बिजली गिरने की संख्या में वृद्धि हो सकती है। एसटीआरआई वैज्ञानिक और अध्ययनकर्ता हेलेन मुलर-लांडौ ने कहा कि बिजली ऊष्णकटिबंधीय वनों को और उनकी संरचना को प्रभावित करने वाली एक बड़ी गड़बड़ी है। बिजली गिरने के कुल प्रभाव न केवल ऊष्णकटिबंधीय जंगलों में बल्कि अन्य ऊष्णकटिबंधीय पारिस्थितिक तंत्रों में भी वन बायोमास/ कार्बन साइकलिंग में बिजली गिरने की प्रमुख भूमिका हो सकती है।