समुद्री तितलियां एक अद्भुत जीव हैं, जो समुद्री घोंघे के एक उपसमूह से सम्बन्ध रखती हैं। हालांकि यह जीव आकार में बहुत छोटे होते हैं लेकिन समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इन पर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि दक्षिणी महासागर में पाए जाने वाले इस समूह की सबसे छोटी प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहद संवेदनशील हैं और बढ़ते तापमान के साथ इनकी आबादी तेजी से कम हो रही है।
इस अध्ययन के नतीजे फ्रंटियर्स इन मरीन साइंस में प्रकाशित हुए हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शेल्ड टेरोपोड्स, पानी में मुक्त रूप से तैरने वाले समुद्री घोंघों का एक समूह है, जो समुद्र की सतह या उसके बहुत करीब रहते हैं। घोंघे की तरह ही उनके पास मांसपेशियों से बने पैर होते हैं, जिनका उपयोग वो ठोस सतह पर सरकने के बजाय पानी में तैरने के लिए ‘फ्लैपर’ के रूप में करते हैं।
देखा जाए तो जैसे-जैसे समुद्र कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) की बढ़ती मात्रा को सोख रहा है वो पानी को अधिक अम्लीय बना रहा है। इसकी वजह से पतले बाहरी आवरण, या यह कहें कि इस अम्लीय जल में इन छोटी समुद्री तितलियों के 'घर' घुल जाते हैं। नतीजन बिना आवरण के इन नाजुक प्रजातियों का जीवित रहना मुश्किल हो जाता है।
जिस तरह से यह खूबसूरत जीव मर रहे हैं वो अपने में बेहद दुखद है। इसका खामियाजा बड़े टेरोपोड्स और अन्य समुद्री जीवों को भी भुगतना पड़ रहा है। चूंकि यह जीव आहार के लिए इन छोटे जीवों पर निर्भर करते हैं। ऐसे में अंटार्कटिका के आसपास के समुद्रों में पानी के नीचे की पूरी खाद्य श्रृंखला इससे प्रभावित हो सकती है।
इस बारे में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते अम्लीकरण से सभी खोल वाले समुद्री घोंघे समान रूप से प्रभावित नहीं होते हैं, ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका जीवन चक्र अलग-अलग होता है। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने टेरोपोड्स की प्रमुख प्रजातियों लिमसीना रंगी और लिमसीना रेट्रोवर्सा का अध्ययन किया है।
यदि इन दोनों प्रजातियों के जीवन चक्र को देखें तो लिमसीना रंगी जोकि एक ध्रुवीय प्रजाति है उसके किशोर और वयस्क सर्दियों के दौरान पाए गए। लेकिन उसके विपरीत लिमसीना रेट्रोवर्सा जोकि एक उपध्रुवीय प्रजाति है उसके सर्दियों के दौरान केवल वयस्क दिखाई दिए।
क्यों लिमसीना रेट्रोवर्सा पर मंडरा रहा है गंभीर खतरा
रिसर्च के मुताबिक सबसे ठंडे मौसम के दौरान, समुद्र का पानी वर्ष के अन्य हिस्से की तुलना में कहीं ज्यादा अम्लीय होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ठंडे तापमान से समुद्र में घुलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है।
ऐसे में समुद्री तितलियों का जीवन चरण जो वर्ष के उस हिस्से में मौजूद था तो वो समुद्र के अम्लीकरण के बढ़े हुए स्तर के लिए कहीं ज्यादा उजागर और कमजोर था। ऐसे में शोधकर्ताओं के मुताबिक सर्दियों का यह समय इन समुद्री तितलियों के लिए कहीं ज्यादा खतरनाक था।
रिसर्च के अनुसार यह खतरा लिमसीना रेट्रोवर्सा के लिए कहीं ज्यादा था। वैज्ञानिकों ने इसके कारण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि लिमसीना रंगी के वयस्क और किशोर दोनों ही सर्दियों के दौरान सह-अस्तित्व में रहते हैं, जिसकी वजह से उनके जीवित रहने की सम्भावना बढ़ जाती है।
ऐसा इसलिए है चूंकि यदि एक समूह सुरक्षित रहता है तो पूरी आबादी पर जोखिम घट जाता है। वहीं इसके विपरीत लिमसीना रेट्रोवर्सा के केवल वयस्क सर्दियों के इस दौर में रहते हैं ऐसे में यदि एक समूह पर इसका असर पड़ता है तो उससे पूरी आबादी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह सही है कि समुद्रों में बढ़ता अम्लीकरण दोनों प्रजातियों को उनके जीवन चक्र के आधार पर अलग-अलग प्रभावित करता है लेकिन यदि यह परिस्थितियां लम्बे समय तक बनी रहती हैं तो इस बढ़ते तापमान से दोनों में से कोई भी प्रजाति सुरक्षित नहीं है।
रिसर्च के मुताबिक उत्सर्जन बढ़ने के साथ-साथ जैसे-जैसे समुद्र में अम्लीकरण तेजी से बढ़ रहा है और यदि वो लम्बे समय तक बना रहता है। तो उसकी वजह से यह स्थिति बसंत तक बनी रह सकती है। जब प्रजातियां पैदा होती हैं तो उसकी वजह से वो इन तितलियों के जीवन चक्र के सबसे संवेदनशील समय में विशेष रूप से इनके लार्वा को जोखिम में डाल सकता है। नतीजन यह भविष्य में इन प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।
इस बारे में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे से जुड़ी मरीन इकोलॉजिस्ट डॉक्टर क्लारा मन्नो का कहना है कि अंटार्कटिक महासागर में टेरोपोड्स की आबादी में आती गिरावट समुद्र के खाद्य जाल और कार्बन चक्र पर व्यापक प्रभाव डाल सकती है। ऐसे में इनके जीवन चक्र के बारे में बेहतर समझ समुद्र में बढ़ते अम्लीकरण के प्रभावों के बारे में बेहतर जानकारी प्रदान कर सकती है।
देखा जाए तो यह अध्ययन एक बार फिर दर्शाता है कि बढ़ते तापमान और जलवायु में आते बदलावों से केवल हम इंसान ही नहीं बल्कि समुद्रों के अद्भुत जीव भी खतरे में हैं। यह ऐसी प्रजातियां हैं यदि वो एक बार विलुप्त हो जाती हैं तो इनकी वजह से पूरे इकोसिस्टम प्रभावित हो सकता है।