जलवायु

1992 के बाद 6 गुना ज्यादा तेजी से गर्म हो रही हैं उत्तरी गोलार्ध की झीलें

Lalit Maurya

1992 के बाद से उत्तरी गोलार्ध में मौजूद झीलें छह गुना ज्यादा तेजी से गर्म हो रही हैं। यह जानकारी हाल ही में यॉर्क यूनिवर्सिटी द्वारा किए शोध में सामने आई है, जोकि जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: बायोजियोसाइंसेस के अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले 100 वर्षों में यह पहला मौका है, जब यह झीलें इतनी तेजी से गर्म हो रही हैं। 

लेक सुपीरियर, जोकि उत्तरी अमेरिका की सबसे बड़ी झीलों में से एक है। यह झील उत्तरी अमेरिका और कनाडा बॉर्डर पर सबसे उत्तरी छोर पर स्थित है। वैज्ञानिकों  का अनुमान है कि यह उत्तरी गोलार्ध की उन झीलों में से एक है जो सबसे तेजी से गर्म हो रही है।

1857 के बाद से जब से बर्फ की स्थिति का आंकलन किया जा रहा है उसके बाद से यह झील दो महीनों से ज्यादा अवधि के बराबर बर्फ का आवरण खो चुकी है। 

यदि जापान की सुवा झील को देखें तो 1897 के बाद से प्रति शताब्दी 26 दिनों के बाद बर्फ का जमाव हो रहा है, यही नहीं यह हर दशक में अब केवल दो बार जम रही है। जबकि मिशिगन झील में ग्रैंड ट्रैवर्स बे को देखें तो वो बहुत तेजी से बर्फ खो रही है। इस खाड़ी में जमा बर्फ प्रति शताब्दी समय से लगभग 16 दिन पहले पिघल रही है। 

इस शोध और यॉर्क विश्वविद्यालय से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता सपना शर्मा ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया है कि यह झीलें प्रति शताब्दी औसतन 17 दिनों के बराबर बर्फ के आवरण को खो रही हैं। यही नहीं हमें यह भी पता चला है कि 1992 से 2016 के बीच 25 वर्षों में इन झीलों में बढ़ रही गर्मी 100 वर्षों की तुलना में करीब छह गुना ज्यादा तेज थी। 

गौरतलब है कि शोधकर्ताओं ने 2004 के बाद पहली बार उत्तरी गोलार्ध में मौजूद करीब 60 झीलों का अध्ययन किया है। यहां स्थिति को समझने के लिए उन्होंने औद्योगिक क्रांति से लगभग 107 से 204 साल तक पुराने बर्फ के फीनोलॉजी रिकॉर्ड का पुनर्मूल्यांकन किया है। इस बारे में प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि हमारी कई झीलें टिप्पिंग पॉइंट के करीब हैं, जो हो सकता है जल्द ही अपनी बर्फ को खो दें, जिसका व्यापक तौर पर सांस्कृतिक और पारिस्थितिक प्रभाव पड़ेगा। 

समय से करीब 6.8 दिन पहले पिघल रही हैं झीलें

शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार यह झीलें औसतन समय के 11 दिन बाद जमी थी जबकि इनमें जमा बर्फ निर्धारित समय से करीब 6.8 दिन पहले पिघल गई थी। पिछले कई दशकों के दौरान सर्दियों में तेजी से बढ़ते तापमान ने इन झीलों में जमने वाली बर्फ पर असर डाला है। खासकर दक्षिणी और तटीय क्षेत्रों में मौजूद बड़ी झीलों में बर्फ के नुकसान की दर में वृद्धि हुई है।      

इस शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता डेविड रिचर्डसन ने जानकारी दी है कि विशेषतौर पर 1995 के बाद से सर्दियों के दौरान जमने वाले बर्फ के आवरण की अवधि में कमी आई है। यहां तक की कुछ झीलों की स्थिति तो ऐसी है जहां पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सर्दियों में बर्फ का जमना बिलकुल खत्म होता जा रहा है या फिर जहां है भी वहां नाम मात्र का रह गया है।

उदाहरण के लिए, स्विट्जरलैंड और जर्मनी में कुछ गहरी झीलें, जो पहले सर्दियों के दौरान बर्फ से जम जाती थी, वो पिछले कुछ दशकों में स्थाई तौर पर अपनी बर्फ का आवरण खो चुकी हैं। 

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने 60 झीलों का अध्ययन किया था, जिनमें 40 झीलें उत्तरी अमरीका की थी, इन झीलों में मिशिगन और सुपीरियर झीलें, मिनेसोटा में डेट्रॉइट झील, विस्कॉन्सिन में मोनोना और मेंडोटा झीलें, न्यूयॉर्क में कैज़ेनोविया और वनिडा झीलें और ओंटारियो की कई झीलें शामिल थी।  वहीं यूरोप की 18 और एशिया की दो झीलें भी इस अध्ययन में शामिल की गई थी। इनमें साइबेरिया और रूस की बैकाल झील और जापान सुवा झील शामिल थी। 

ऐसा क्यों हो रहा है इस बारे में जानकारी देते हुए शोधकर्ता इस्तिन वूलवे ने बताया कि निष्कर्ष हमारी उम्मीदों के अनुरूप ही थे, क्योंकि हाल के दशकों में हवा के तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। हवा का तापमान, झील में जमने वाली बर्फ की गतिशीलता को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण जलवायु चालकों में से एक है। साथ ही यह झील के ऊर्जा बजट से जुड़े विभिन्न घटकों पर भी असर डालता है। 

ऐसे में शोधकर्ताओं के अनुसार यदि झील में जमा बर्फ के आवरण में जो कमी आ रही है, उसे रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना जरुरी है। उनके अनुसार इससे न केवल तापमान में हो रही वृद्धि के पारिस्थितिक बल्कि साथ ही सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक परिणामों को भी सीमित करने में मदद मिलेगी। बढ़ते तापमान की वजह से इन झीलों में पानी के तापमान और वाष्पीकरण की दर में वृद्धि हो रही है। साथ ही इससे पानी की गुणवत्ता भी घटती जा रही है और पानी में जहरीले शैवाल भी बढ़ रहे हैं।