जलवायु

जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए जाना जाता है वायनाड मॉडल

राहुल गांधी के चुनाव लड़ने के कारण वायनाड चर्चा में है, लेकिन वायनाड की पहचान और भी बड़ी है, जो दुनिया के लिए मिसाल बन गया है।

लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। पांच चरण के मतदान खत्म हो चुके हैं। और अभी दो चरण का चुनाव होना बाकी है। ऐसे में देश के प्रमुख चुनावी मैदानों को देखें तो बनारस,रायबरेली, अमेठी, गांधीनगर आदि ऐसी लोकसभा की सीटें हैं जहां किसी न किसी राष्ट्रीय पार्टी का बड़ा नेता उम्मीदवार हैं। इस बार कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी के अलावा केरल की वानयाड सीट से भी लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए हैं। ऐसे में देशभर की नजरें इस जिले पर हैं। लेकिन यहां देखने की बात यह है कि यह जिला केवल इसलिए नहीं जाना जाता है कि यहां से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं बल्कि इस जिले को  पेरिस जलवायु समझौतों  के बाद केरल के वित्त मंत्री और एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस इसाक देश  के बाकी हिस्सों के लिए राज्य में एक उदाहरण स्थापित करना चाहते थे। इसीलिए वायनाड जिले को एक समुदाय आधारित जलवायु परिवर्तन पहल “कार्बन न्यूट्रल वायनाड “ के लिए चुना गया। यह जिला दक्कन के पठार के विस्तार पश्चिमी घाट में बसा है और यहां कॉफी, धान एवं काली मिर्च जैसी फसलें उपजती हैं। ये फसलें मौसम के प्रति संवेदनशील होती हैं और जलवायु परिवर्तन से इनको अधिक खतरा है। एक पायलट प्रोजेक्ट 5 जून, 2016 को स्थानीय सरकार के स्तर पर लांच किया गया था। मीनांगडी ग्राम पंचायत वायनाड जिले और देश के बाकी हिस्सों के लिए एक मॉडल पंचायत होने की जिम्मेदारी लेने के लिए आगे आया। केरल सरकार द्वारा इस प्रमुख परियोजना को तकनीकी सहायता प्रदान करने का काम गैर-लाभकारी थानाल ट्रस्ट को सौंपा गया था।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने के लिए असाधारण दृष्टि, नेतृत्व, करुणा और ज्ञान की आवश्यकता है। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के संचय से वैश्विक तापमान की समस्या उत्पन्न हुई  है। यदि विश्व समुदाय वास्तव में जलवायु के अनुकूल निवेश करने के बारे में गंभीर है, तो उसे भारत जैसे देश द्वारा प्रदान किए गए अवसर पर विचार करना चाहिए, जहां नई तकनीकों और वित्त की मदद से  न्यूनतम स्तर के उत्सर्जन के साथ आर्थिक विकास हासिल किया जा सका। पेरिस समझौते में अपनाई गई भारत की महत्वाकांक्षी योजना इन्टेन्डेड नेश्नली डिटर्मिन्ड कंट्रिब्यूशंस को प्राप्त करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि हमारी भविष्य की विकास गतिविधियां “कार्बन-न्यूट्रल” हों। कार्बन न्यूट्रलिटी का मतलब है कुल प्रत्याशित जैव गतिविधियों से कुल उत्सर्जन की मात्रा का शून्य होना।

वर्तमान में क्षेत्रीय स्तर पर कार्बन स्थिति का आकलन करने के लिए कोई स्थापित अनुसंधान पद्धति नहीं है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एवं सीसी) जीएचजी उत्सर्जनों की एक नेशनल इन्वेंट्री बनती है जो अंततः यूएनएफसीसीसी को सौंपी जाती है। इसी तरह, “जीएचजी प्लेटफॉर्म इंडिया” अनुसंधान गैर सरकारी संस्थाओं के एक संघ सेकेंडरी डेटा के आधार पर राज्य स्तर पर जीएचजी उत्सर्जन की रिपोर्ट तैयार करता है। कार्बन न्यूट्रल टेक्निकल सेल, जिसमें थानाल के तकनीकी विशेषज्ञ ( रिसर्च स्कॉलर और स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल हैं) ने क्षेत्रीय स्तर पर कार्बन स्थिति का आकलन करने के लिए अनुसंधान पद्धति की स्थापना के लिए आईपीसीसी-2006 के दिशानिर्देशों, ग्रीनहाउस गैस प्रोटोकॉल और यूएनईपी लो-कार्बन मोबिलिटी टूलकिट का पालन किया है। उत्सर्जन सूची में कृषि वानिकी और अन्य भूमि उपयोग (एएफओएलयू), पशुधन, ऊर्जा, परिवहन और अपशिष्ट की श्रेणियां हैं और वर्ष 2016 को आधार माना गया है। उद्योग क्षेत्र पर विचार नहीं किया गया है क्योंकि जिले में कोई प्रमुख उद्योग नहीं है। वार्ड आधारित सामाजिक आर्थिक एवं भौगोलिक नमूने इकठ्ठा किए गए थे। सांख्यिकी विभाग से प्राप्त प्राइमरी एवं सेकंडरी डेटा का उपयोग पशुधन एवं एएफओएलयू से हुए उत्सर्जन की गणना के लिए  किया गया था। परिवहन (इस क्षेत्र में जीएचजी उत्सर्जन का एक प्रमुख योगदानकर्ता है) से हुए उत्सर्जन का अनुमान लगाने के लिए यूएनईपी लो-कार्बन मोबिलिटी टूलकिट का उपयोग किया गया। दक्षिणी ग्रिड में बिजली की खपत से हुए उत्सर्जन की  गणना के लिए के लिए क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन कारक का उपयोग किया गया। यह उत्सर्जन का सबसे बड़ा कारक भी है।

स्थानीय अर्थव्यवस्था में पशुधन के हिस्से में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह क्षेत्र किसानों के लिए तुलनात्मक रूप से सुरक्षित है जबकि फसलें मौसम पर निर्भर रहती हैं। मीथेन और अन्य जीएचजीएस के रूप में हुआ उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड के समकक्षों में परिवर्तित हो जाता है। इसके साथ ही, विभिन्न क्षेत्रों में कार्बन स्टॉक की गणना आधार वर्ष 2016 का उपयोग करके की गई थी। मृदा सर्वेक्षण और मृदा संरक्षण विभाग के सहयोग से मिट्टी में संग्रहीत कार्बन का अनुमान लगाया गया था। पंचायत से एकत्र मिट्टी के नमूनों का मात्रात्मक विश्लेषण प्रयोगशाला में हुआ था। वन एवं खेत कुल भौगोलिक क्षेत्र का 50 प्रतिशत हिस्सा हैं और वे एक प्रमुख कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं। जंगलों और कॉफी प्लांटेशन में वार्षिक कार्बन जब्ती को प्रत्येक श्रेणी के तहत जमीन के क्षेत्रफल को गुणन कारक (किलो प्रति हेक्टेयर में) से गुणा करके निर्धारित किया गया था। रिहायशी इलाकों के पेड़ों में कार्बन अनुक्रम की मात्रा एवं ग्राउंड बायोमास की गणना करने के लिए एक ज्यामितीय समीकरण के साथ-साथ एक घरेलू स्तर का वृक्ष सर्वेक्षण किया गया था।

इस अभ्यास के बाद  परियोजना के हितधारक इस क्षेत्र की कार्बन स्थिति के आधारभूत आकलन पर पहुंचे। 14,739 टन जीएचजी उत्सर्जन (कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर)। इस  उत्सर्जन को काबू करने के साथ-साथ मौजूदा कार्बन सिंक को संरक्षित करने के लिए एक विशेष कार्बन न्यूट्रल एक्शन प्लान क्षेत्र -विशिष्ट अल्पकालिक और दीर्घकालिक हस्तक्षेप के साथ प्रस्तावित किया जाएगा।

(मूल रूप से एक सिविल इंजीनियर रहे निधिन डेविस के अब पर्यावरण योजनाकार हैं और तिरुवनंतपुरम में स्थित एक एनजीओ थानाल की जलवायु कार्रवाई टीम में एक अनुसंधान अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं)