जलवायु

गांधी जयंती पर विशेष: पर्यावरण बचाने के लिए एकमात्र विकल्प है गांधी की राह

DTE Staff

उन्नीसवीं सदी में जन्म लेने वाले मोहनदास करमचंद गांधी 20वीं सदी में महात्मा बने और अपने विचारों से दुनिया को प्रभावित किया। आज 21वीं सदी में भी उनके विचार उतने ही प्रासंगिक हैं। गांधी के समय में पर्यावरणवाद और इससे जुड़ी चिंताएं आज के समय जितनी उग्र रूप में नहीं थीं, लेकिन गांधी ही थे, जिन्होंने भविष्य की चिंताओं को भांपते हुए समाधान सुझा दिया था। गांधी को पर्यावरणवाद से पहले का पर्यावरणविद कहा जा सकता है।

डाउन टू अर्थ ने 21वीं सदी के इस पर्यावरणविद को उनकी 150वीं जयंती पर समझने की कोशिश की।  

यह सही है कि गांधी जब तक थे, तब पर्यावरण की प्रति इतनी व्यापक चिंता नहीं थी और दुनिया भर में पर्यावरण को लेकर अलग से कोई आंदोलन नहीं चल रहा था। लेकिन कई मौकों पर गांधी ने पर्यावरण को लेकर सीधी टिप्पणियां की, जिसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांधी भविष्य में पर्यावरण के खतरे से वाकिफ थे। दक्षिण अफ्रीका में प्रोफेसर जॉन एस मूलाकट् टू और समाजशास्त्री आशीष नंदी ने डाउन टू अर्थ के लिए लेख में इस पर विस्तार से चर्चा की थी।

महात्मा गांधी ने स्वच्छता को लेकर दुनिया का सबसे बड़ा अभियान चलाया था और स्वच्छता, पर्यावरण को बेहतर बनाने की पहली सीढ़ी है। उनके भाषणों में पर्यावरण और पारिस्थतिकी जैसे शब्द नहीं दिखते, लेकिन यह भी सही है कि गांधी दर्शन से ही पर्यावरण के प्रति समझ विकसित होती है। इस मुद्दे पर डाउन टू अर्थ के लिए राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय के निदेशक ए अन्नामलई ने एक लेख लिखा था।

यह सर्वविदित है कि पर्यावरण बचाने के लिए भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में जितने भी आंदोलन हुए, उन्होंने गांधीवाद को ही अपना हथियार बनाया और यह सही भी है कि प्रकृति को बचाने के लिए गांधीवाद ही असली औजार है। इस विषय पर सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल के डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफेसर और गांधी शांति प्रतिष्ठान से निकलने वाली त्रैमासिक पत्रिका “गांधी मार्ग” के संपादक जॉन एस मोलाकट्टे ने डाउन टू अर्थ के लिए एक लेख लिखा।

महात्मा गांधी ने बेहतर भारत के निर्माण के लिए 18 रचनात्मक कार्यक्रमों की परिकल्पना की थी। अगर इन्हें ध्यान से देखिए तो पाएंगे कि गांधी के यह कार्यक्रम पर्यावरण की बेहतरी के लिए थे। उन्होंने आश्रम संकल्प के लिए भी 11 संकल्प लागू किए थे। इनके बारे में विस्तृत जानकारी देता हुआ यह लेख : पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर गांधी दर्शन

अगर आप पर्यावरण के लिए किसी को दोषी ठहराना चाहें तो पाएंगे कि हमारी अंतहीन इच्छा को ठहरा सकते हैं। इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए हमने प्रकृति को नुकसान पहुंचाया। गांधी हमेशा अपनी इच्छाओं को काबू करने की बात करते थे। बाजार, कंजर्वेशंस एंड फ्रीडम पुस्तक की लेखिका रजनी बख्शी ने डाउन टू अर्थ के लिए इस विषय पर एक लेख लिखा: अमूल्य पर टिकी गांधी की दृष्टि