किश्तवाड़ के चिशोती गांव में आई त्रासदी में अब तक 65 शव मिल चुके है। फोटो: आसिफ इकबाल 
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किश्तवाड़ त्रासदी: क्या बादल फटने से ही हुई तबाही?

मौसम विज्ञान केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक जिले में मात्र 5 मिलीमीटर में बारिश हुई, तब फिर कैसे आया सैलाब, क्या कह रहे हैं मौसम विज्ञानी

Rajesh Dobriyal

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिशोती (चशोती) गांव में आई अचानक तेज बाढ़ (फ्लैश फ्लड) के कारण क्या हैं? उत्तराखंड के धराली की तरह यहां भी कारणों को लेकर संशय बना हुआ है। चिशौती में मौमस विज्ञान केंद्र का कोई मौसम निगरानी केंद्र नहीं है, ऐसे में वहां घटना के के दौरान कितनी बारिश हुई, इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, जबकि मौसम विज्ञान केंद्र के द्वारा जारी जिला वार आंकड़ों के किश्तवाड़ में 15 अगस्त 2025 को मात्र 5 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि 14 अगस्त को बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई।  

मौसम विज्ञान केंद्र, श्रीनगर के निदेशक मुख्तियार अहमद के हवाले से छपी कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चशोती में कोई वेदर मॉनिटरिंग स्टेशन नहीं है, लेकिन सैटेलाइट और डॉप्लर राडार से यहां भारी बारिश का पता चला है, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि चशोती का ऊपरी इलाका जंस्कार बेल्ट से जुड़ा हुआ है तो हो सकता है कि ऊपर कोई ग्लेशियर या ग्लेशियर से बनी झील टूटी हो, जिसने बाढ़ का रूप ले लिया हो।

ऐसी ही बातें उत्तरकाशी के धराली में आई फ़्लैश फ़्लड के बाद कही जा रही थीं लेकिन अभी तक इनका कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है। धराली के ऊपर ग्लेशियर झील टूटने और उससे खीर गंगा में मड-फ़्लड आने के दावे सामने आने के बाद डाउन टू अर्थ ने हिमालय की पारिस्थितिकी और हलचलों पर नजर रखने वाले देहरादून स्थित वाडिया हिमालयन के ग्लेश्योलॉजी विभाग में बात की थी। विभाग के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने इन बातों पर टिप्पणी करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि जब तक ठोस प्रमाण (सैटेलाइट डाटा) नहीं मिल जाता, वह कुछ नहीं कह सकते।

डाउन टू अर्थ ने मौसम विज्ञान केंद्र, श्रीनगर में फोन कर केंद्र में मौजूद ड्यूटी ऑफिसर मोहम्मद हुसैन मीर से बात की। उन्होंने कहा कि ऐसी आपदा बिना बादल फटे हुए आ ही नहीं सकती। हालांकि उन्होंने यह माना कि आसपास के ऑब्जर्वेटरी (मौसम निगरानी केंद्र) पहलगाम में बहुत ज्यादा बारिश रिकॉर्ड नहीं की गई। उनके मुताबिक चिशौती से पहलगाम की हवाई दूरी चार किलोमीटर है।

फिर भी मीर न कहा, “सबसे पहले बादल फटने की बात ऐसे समझिए।  मैदानी इलाकों में तो यह संभव है कि कई किलोमीटर के दायरे में एक साथ भारी बारिश दर्ज की जाए, लेकिन पहाड़ों में स्थिति एकदम अलग होती है। यहां यह भी संभव हो सकता है कि एक नाले (गदेरे) में बारिश हो और दूसरे में न हो”।

एचएम मीर ने कहा, “पहाड़ी क्षेत्र में जहां दो पहाड़ मिलते हैं, वहां एक नाला जैसा बनता है। उसमें एक नेचुरल स्लोप भी होता है। वहां दो अलग-अलग दिशाओं से आने वाली हवाओं का एक संगम (कंफ्लुएंस) होता है। इस कंफ्लुएंस जोन में जब ये दोनों हवा फंस जाती हैं तो इनको ऊर्ध्वाधर विस्तार (वर्टिकल एक्सटेंट) बहुत ज़्यादा मिलता है, जो चार, पांच, छह, आठ किलोमीटर तक हो सकता है।”

उनके मुताबिक, “अगर हवा का यही पैटर्न आधे घंटे तक रहेगा तो 100 फीसदी चांस है कि इतना एक्यूमुलेशन (हवा का दबाव) एक जगह होगा कि वह सैचुरेट, सुपर सैचुरेट (भारी से बहुत भारी) हो जाएगी और जब वह मॉएस्चर (नमी) की वलह से वह अपना वजन ही नहीं उठा पाता तो वह उसी ख़ास लोकेशन पर सारा पानी गिर जाता है। जो 100 बाई 100 मीटर में, उससे ज़्यादा नहीं... बल्कि 50 बाई 50 मीटर पर, बल्कि 50 वर्ग मीटर में यह पूरा मॉएस्चर वहीं गिरा देता है।”

एचएम मीर के अनुसार इसका मतलब यह होगा कि अगर आधा-एक किलोमीटर दूर ऑब्ज़र्वेटरी होगी तो वह कहेगी कि हमारे यहां तो इतनी बारिश हुई ही नहीं है।

हालांकि भारतीय मौसम विज्ञान सोसायटी के मौजूदा अध्यक्ष एवं भारतीय मौसम विभाग में अतिरिक्त महानिदेशक के पद से रिटायर हुए डॉ. आनंद शर्मा ने एचएम मीर की बात को सिरे से खारिज करते कहा कि बारिश करने वाले बादल 50-100 के मीटर के हो ही नहीं सकते। ये बादल 15 किलोमीटर ऊपर होते हैं और इनकी रेंज बहुत बड़ी होती है। ये 15-20-25 किलोमीटर लंबे-चौड़े होते हैं।

दूसरी बात यह भी समझने की है कि धराली में फ़्लैश फ़्लड आने का मतलब यह नहीं है कि धराली में बारिश हुई है या किश्तवाड़ में जहां फ़्लैश फ़्लड आया है, वहां बारिश हुई है. देहरादून में जो अभी हाल ही में बाढ़ जैसे हालात थे वह देहरादून में हुई बारिश की वजह से नहीं थे. मसूरी और आस-पास के कैचमेंट में बहुत ज़्यादा बारिश होती है तो उससे देहरादून में इतना पानी आता है. इसी तरह दिल्ली में यमुना में बाढ़ आती है तो वह दिल्ली की बारिश की वजह से नहीं आती, उत्तराखंड और हिमाचल में भारी बारिश होती है, उससे दिल्ली में यमुना में उफान आता है.

इसलिए देखने की जरूरत यह है कि जहां बाढ़ आई है या फ़्लैश फ़्लड आया है, उसके कैचमेंट एरिया में कितनी बारिश हुई है। धराली में ऊपर जाकर देखना है कि क्या खीर गंगा की किसी ट्रिब्यूटरी में बहुत पानी आया था, जो इसमें आ गया। जैसे यह जाकर भागीरथी में मिलती है इसमें भी दूसरे गदेरे आकर मिलते होंगे। देखना यह है कि क्या उनके कैचमेंट एरिया में ज़्यादा बारिश हुई थी, जो इसमें उफ़ान आ गया।  

वह कहते हैं कि एक और चीज साफ करनी जरूरी है… देखिए हर्षिल में एडब्ल्यूएस (ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन) है। अब वह तीन-चार किलोमीटर दूर है इससे कोई मतलब नहीं है, हम जमीन की दूरी नहीं देखते। ऊपर आसमान में नापते हैं और वह दो-तीन सौ मीटर होगा... वह तो कुछ है ही नहीं।