हमारी धरती की कहानी इसके ठंडी होने से शुरु हुई थी, लेकिन अब उसके उलट धरती की कहानी अब उसके गर्म होने की कहानी बनती जा रही है।
वैज्ञानिक कहते हैं खौलते मैग्मे से बनी इस धरती की सतह पर करोड़ों वर्षों तक पानी नहीं था। अपने वायुमंडल के भाप में पानी की आस ताकती धरती पर लाखों साल की अनवरत बारिश ने पहले समुद्र और फिर झील और नदियों की अंतहीन श्रृंखला बना दिया।
कहते हैं धरती पर इतनी गर्मी थी कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर भी बर्फ़ का नामोनिशान नहीं था। हिमयुग को पार करने के बाद फिर धरती के ठंड होने की कहानी ही हमारे जुबान पर रहती है। बीते समय के जलवायु और तापमान का आकलन प्राकृतिक गुफा में जमे लवणों की परत, मूंगा, शंख और घोंघे जैसे जीवों के खोल के अध्ययन के आधार पर किया जाता है।
इसके आधार पर स्पष्ट है कि पिछले कुछ सालों में ही पृथ्वी का औसत तापमान कम से कम पिछले एक लाख बीस साल के औसत तापमान को पार कर रही है। हमारी पृथ्वी को ग्लोबल वॉर्मिंग ने सिर्फ 150 साल में उबाल कर रख दिया है।
अगर मानवीय गतिविधियां पृथ्वी के तापमान और जलवायु के संतुलन को नहीं बिगाड़ती तो ऐसे हालात कम से कम अगले सवा लाख साल तक पैदा नहीं होते।
हालांकि तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु में परिवर्तन का एहसास आधी सदी पहले ही हो चुका था। पर हम मानवीयकरण के नये तरीके से इतने आश्वस्त थे कि यह स्वीकार करना हमने मुनासिब नहीं समझा। पिछले कुछ साल में वैश्विक स्तर पर बढ़ते तापमान से होने वाले दुष्परिणाम छिटपुट सामने आने लगे थे पर अचानक अफरातफरी का माहौल बनने लगा है।
यूरोप, उत्तरी अमेरिका की जानलेवा गर्मी, कैलिफ़ोर्निया से ऑस्ट्रेलिया तक फैली जंगल की आग, मौसम की चरम परिस्थितियाँ जिसमें बादल फटने से लेकर विध्वंसक होते चक्रवात शामिल हैं। और तो और पिघलते हिमखंड जैसी अनेक घटनाएं शामिल हैं, जिनका प्रसार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
बढ़ते तापमान का अंदाजा वैश्विक औसत तापमान, जिसकी गणना पुरे पृथ्वी के धरती और समुद्र के ऊपर हजारो जगह पर दिन और रात में मापे गए तापमान के औसत से की जाती है! और पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है! अब तक के दस सबसे गर्म वर्ष 2005 के बाद ही पाए गए औए उसमे से आठ सबसे गर्म साल तो 2015 के बाद के ही है!
बीता जून और जुलाई का महीना तो जलवायु संकट के लिहाज से इतिहास में दर्ज हो गया। जून का महीना अब तक का सबसे गर्म जून रहा। बात यही नहीं रुकी, जुलाई की शुरुआत में ही पृथ्वी का वैश्विक औसत तापमान ऐतिहासिक रूप से 3 तारीख को 17 डिग्री सेंटीग्रेड के पार चला गया और 6 जुलाई को ये आँकड़ा 17.18 डिग्री सेंटीग्रेड तक जा पहुंचा।
जो पिछले रिकॉर्ड 13 अगस्त 2016 के तापमान 16.8 डिग्री सेंटीग्रेड से एक छलांग जैसा था। 3-10 जुलाई का सप्ताह सबसे गर्म सप्ताह पाया गया जिसमें हर दिन तापमान 17 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर रिकॉर्ड किया गया। जुलाई के 21 दिन अब तक से सबसे गर्म दिन साबित हुए और फलस्वरूप जुलाई 2023 ना सिर्फ सबसे गर्म जुलाई परन्तु अब तक सबसे गर्म महीना भी रहा।
यूरोपीय संघ (EU) के कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के मुताबिक गत जुलाई में विश्व का औसत तापमान 16.95 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो 2019 में दर्ज सबसे अधिक औसत तापमान से एक तिहाई (0.33) डिग्री सेल्सियस अधिक है। वही पिछले तीस साल के जुलाई के औसत तापमान से ये 0.7 डिग्री सेंटीग्रेड ज्यादा है।
वही नासा के मुताबिक, जुलाई महीने में साउथ अमेरिका, नॉर्थ अफ्रीका, नॉर्थ अमेरिका और अंटार्कटिका में सामान्यतः औसत तापमान से 4 डिग्री सेल्सियस तक अधिक गर्म रहे।
वहीं, अगर इस जुलाई के तापमान की तुलना 1951 से 1980 के बीच जुलाई के औसत तापमान से करें तो तापमान 1.18 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। जबकि पूर्व औद्योगिक काल के जुलाई के औसत तापमान से यह 1.54 डिग्री ज्यादा का छलांग था।
पृथ्वी के तापमान की बढ़ोतरी की गणना में आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि वैश्विक तापमान का रिकॉर्ड एक डिग्री के 100वें या 10वें भाग के अंतर से टूटता है, पर जुलाई में तो धरती के तापमान जैसे उछाल मार ऊपर चढ़ता गया। यह असामान्य परिस्थिति और खतरे की घंटी है। अल नीनो की शुरुआत के साथ जून से जारी वैश्विक स्तर पर मौसमी चरम की घटनाएं इसे भयावह बना रही है।
इस भयावहता को भांपते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेस ने जुलाई ख़त्म होने के पहले ही चेतावनी दी कि "अब वैश्विक गर्मी का दौर समाप्त हुआ" और "वैश्विक उबाल का काल आ गया है।" इस बढ़ते तापमान को न्यू नॉर्मल के रूप में स्वीकार करना निश्चय ही खुद के विनाश को स्वीकार करना है।
इसी जुलाई में असहनीय गर्मी के साथ हमारे समुद्र पर सबसे कम बर्फ़ देखी गयी है जो ना सिर्फ आने वाले भविष्य के लिए बल्कि हमारे वर्तमान के लिए भी गंभीर चेतावनी है। हमें खुद के लिए ना सही कम से कम आनेवाली पीढ़ियों के लिए चेतना होगा, क्योंकि पर्यावरण के अनुसार अनुकूलन बनाने की भी एक सीमा है। सीमा के बाहर विध्वंस की रेखा को हमें यहीं मिटाना होगा। और ये हमारी गतिविधियों में आमूलचूल परिवर्तन लाए बिना संभव नहीं है।