जलवायु

काफी पहले से मंडरा रहा जोशीमठ संकट, ऋषिकेश मार्ग पर प्रति किमी सड़क पर एक से अधिक भूस्खलन

Dayanidhi

हिमालयी इलाकों में तेजी से फैल रहा सड़कों का जाल ग्रामीण-पहाड़ी क्षेत्रों को जोड़ता है। हालांकि यहां की नाजुकता और खराब सड़क निर्माण के तरीकों  के कारण सड़कों में लगातार बड़े पैमाने पर भूस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं।

नेचुरल हैजर्ड्स एंड अर्थ सिस्टम साइंसेज नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, ऋषिकेश से जोशीमठ के बीच 247 किलोमीटर लंबी सड़क, पूरी तरह से या आंशिक रूप से सड़क-अवरुद्ध होने में भूस्खलन की 309 घटनाएं जिम्मेवार होती हैं, यदि प्रति किमी के हिसाब से देखा जाय तो यह औसतन 1.25 भूस्खलन की घटनाएं हैं।

बारिश, सड़क निर्माण और चौड़ीकरण तथा प्राकृतिक घटनाओं के अलावा नए भूस्खलन भी हो सकते हैं, जो कि अक्सर उथले और छोटे होते हैं, लेकिन फिर भी इससे लोग हताहत हो सकते हैं, जो बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं और यातायात बाधित कर सकते हैं।

ऋषिकेश और जोशीमठ के बीच 247 किलोमीटर दूरी की सड़क में 309 भूस्खलन की खोज करने वाले शोध में बताया गया है कि यह सड़क भूस्खलन से काफी प्रभावित होती है, जो पहले दर्ज की गई है और क्षेत्र की ढलानों की नाजुकता, केंद्रित वर्षा और लगातार भूकंप से संबंधित है।

शोध में कहा गया है कि ज्यादातर भूस्खलन ताजा लग रहे थे। यह शोध जुर्गन मे, रवि कुमार गुंटू, अलेक्जेंडर प्लाकियास, इगो सिल्वा डी अल्मेडा और वोल्फगैंग श्वांगहार्ट द्वारा मिलकर किया गया है।

अध्ययन ने पिछले साल अक्टूबर में भूस्खलन की मैपिंग की थी, इसमें गूगल अर्थ का उपयोग यह दिखाने के लिए किया कि सड़क अवरोधों के साथ रिकॉर्ड किए गए भूस्खलन का 21.4 प्रतिशत पहले से मौजूद था, 17.8 प्रतिशत भूस्खलन अत्यधिक वर्षा के कारण फिर से होने की आशंका जताई गई थी, क्योंकि उनकी पहचान नहीं की जा सकती थी। 60.8 प्रतिशत गूगल अर्थ इमेजरी में पहचाने जाने योग्य नहीं थे।

अध्ययनकर्ताओं ने यह भी कहा कि हमने भूस्खलन का एक व्यवस्थित सर्वेक्षण किया और एक सांख्यिकीय मॉडल तैयार किया जिसका उद्देश्य उच्च स्थानिक स्थिरता पर एनएच-सात  के साथ भूस्खलन की संवेदनशीलता को मापना है। उन्होंने बताया कि हमारा विश्लेषण जीपीएस पर निर्भर है। असामान्य रूप से बहुत अधिक बारिश की अवधि के तुरंत बाद ऋषिकेश से जोशीमठ की यात्रा के दौरान भूस्खलन का सर्वेक्षण किया गया।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि हिमालय में सड़क निर्माण बढ़ रहा था। पिछले पांच वर्षों में हिमालयी राज्यों में 11,000 किलोमीटर सड़कें विकसित की गई हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार सालों में उत्तराखंड में भूस्खलन हादसों में करीब 160 लोगों की मौत हो चुकी है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा शोध के परिणाम बताते हैं कि हिमालयी सड़कों पर भूस्खलन का साया सबसे अधिक मंडरा रहा हैं। जलवायु परिवर्तन और इस तीर्थ यात्रा मार्ग के साथ बढ़ते जोखिम से भविष्य में एनएच-सात पर भूस्खलन के खतरों में और वृद्धि होने की आशंका जताई गई है।

यहां बताते चलें कि यह शोध वर्तमान में नेचुरल हैजर्ड्स एंड अर्थ सिस्टम साइंसेज (एनएचईएसएस) पत्रिका के लिए समीक्षाधीन है।