झारखंड में चालू मानसून के दौरान 431 लोगों की मौत हुई
इनमें से 186 की जान बिजली गिरने से गई।
आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक गंभीर है
सरकार ने मुआवजा देने की व्यवस्था की है, लेकिन कागजी प्रक्रिया जटिल है
बिजली सुरक्षा पर शमन परियोजना के तहत राज्य के पांच जिलों को शामिल किया गया है
झारखंड में आसमान से मौत बनकर टूटती बिजली की घटनाएं बढ़ रही हैं। राज्य सरकार के मुताबिक मौसम आधारित आपदाओं के कारण मानसून की वर्तमान अवधि में 431 लोगों की जान गई है। इनमें अकले आकाशीय बिजली से 186 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। सैकड़ों पशुओं की मौत हुई है। लेकिन कई मौत ऐसी भी है, जिनकी रिपोर्टिंग नहीं होती।
झारखंड, भारत के उन छह राज्यों में से एक है, जो गरज और आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों के मामले में सर्वाधिक संवेदनशील है। जलवायु रेजिलिएंट अवलोकन प्रणाली संवर्धन परिषद (सीआरओपीसी) की वार्षिक रिपोर्ट (2023-24) के मुताबिक एक दशक के दौरान झारखंड में कम से कम 1669 लोगों की मौत आकाशीय बिजली की चपेट में आने से हुई, जबकि पिछले पांच सालों से औसत 4 लाख 36 हजार 250 आकाशीय बिजली का सामना यह राज्य करता रहा। खतरे के लिहाज से इसे रेड जोन में माना जाता है।
सीआरओपीसी की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 से पता चलता है आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों में 96 प्रतिशत गांवों के लोग शामिल होते हैं। इनमें 68 से 70 प्रतिशत आदिवासियों की मौत होती है। दुखद पहलू यह कि आकाशीय बिजली से 38 प्रतिशत बच्चों की मौत हो रही है।
हाल में 21 अगस्त को रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर नरकोपी थाना क्षेत्र के हिन्दोपीड़ी गांव में आकाशीय बिजली से एक साथ तीन स्कूली और आदिवासी बच्चियों की मौत ने उस इलाके के ग्रामीणों को झकझोर कर रख दिया है।
सीआरओपीसी के अध्यक्ष और वज्रपात सुरक्षित भारत अभियान के संयोजक कर्नल संजय श्रीवास्तव की इन घटनाओं को लेकर देश के साथ झारखंड पर पैनी नजर रही है।
हाल के दिनों में आकाशीय बिजली और चक्रवाती तूफान भारत में सबसे चुनौतीपूर्ण खतरों में से एक के रूप में उभरे हैं। जलवायु परिवर्तन का सबसे गंभीर असर बिजली की आवृत्ति, उसकी तीव्रता और भौगोलिक विस्तार में तेज वृद्धि के रूप में दिख रहा है। राज्य स्तर पर सरकारों को रोकथाम, शमन और प्रतिक्रिया के लिए तेज गति से कदम उठाने की जरूरत है। आकाशीय बिजली एक अनोखा और तात्कालिक खतरा है, जो पल भर में ही घटित हो जाता है और पीड़ित को पता भी नहीं चलता कि उसे कब बिजली लगी। यह बिजली सूखे, बाढ़ आदि जैसे अन्य सभी खतरों, आपदाएं से अलग है। सरकार और समुदाय (कम्युनिटी) दोनों को इसे समझने और इससे निपटने के लिए तत्काल और उपयुक्त जागरूकता विकसित करने की आवश्यकता है।कर्नल संजय श्रीवास्तव
क्या हैं जमीनी हालात
रांची जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर तमाड़ थाना क्षेत्र के देगादाड़ी चोगागुटू गांव के 52 वर्षीय दुखन मुंडा की 17 अगस्त को वज्रपात से मौत हुई है। उनकी पत्नी इंदी देवी पैर से लाचार दिव्यांग हैं। पति की मौत के बाद उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।
दुखन मुंडा के भतीजे मंगल सिंह मुंडा बताते हैं, “हमारे पास कुछ टुकड़े ही खेत हैं। बारिश के भरोसे खेती होती है। चाचा खेत में काम कर रहे थे। बारिश होने लगी, तो वे छाता लेने घर लौट रहे थे। इसी दौरान रास्ते में बिजली गिरी और उन्होंने दम तोड़ दिया। अब चिंता इसकी है कि विकलांग चाची की देखरेख कैसे हो। उनके कोई बच्चे नहीं हैं। मुआवजा की आस है। कब तक मिलेगा कुछ पता नहीं।”
वज्रपात से मौत होने पर राज्य सरकार चार लाख रुपए का मुआवजा देती है। घायलों को दो लाख रुपए तक और घर के क्षतिग्रस्त होने पर 2100 से 95,100 रुपए तक का भुगतान किया जाता है। जानवरों की मौत पर 3000 से 30 हजार रुपए देने का प्रावधान है।
राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव राजेश शर्मा बताते हैं कि मुआवजे के लिए पर्याप्त राशि जिलों को उपलब्ध कराई गई है। जिला उपायुक्त आपदा प्रबंधन के मामलों को हेड करते हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुपालन करने के निर्देश समय-समय पर सभी जिलों को दिए जाते रहे हैं।
हालांकि कई पीड़त परिवारों से बातचीत में ये तथ्य उभर कर सामने आए हैं कि मुआवजे के लिए कागजी प्रक्रिया पूरी करना बहुत आसान नहीं होता, इसलिए उन्हें महीनों इंतजार करना पड़ता है।
आपदाओं से जुड़े एक सवाल के जवाब में पिछले छह अगस्त को गृह मंत्रालय ने राज्यसभा में जानकारी दी है कि केंद्र सरकार ने देश के दस राज्यों, जिसमें झारखंड भी शामिल है के 50 बिजली संभावित जिलों के लिए 186.78 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय वाली बिजली सुरक्षा पर शमन परियोजना को मंजूरी दी है।
इस परियोजना का उद्देश्य बिजली गिरने से होने वाली मौतों, पशुधन की हानि और बुनियादी ढांचे को होने वाले नुकसान को कम करने के साथ बिजली गिरने के जोखिम प्रबंधन के क्षेत्र में अनुसंधान, विकास, विनिर्माण और तकनीकी प्रगति के माध्यम से आत्मनिर्भरता विकसित करना भी है।
राज्य सरकार के एक आला अधिकारी के मुताबिक झारखंड के पांच जिले- रांची, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, पलामू और बोकारो को इस परियोजना में शामिल किया गया है। ये सभी जिले आकाशीय बिजली की घटनाओं को लेकर संवेदनशील रहे हैं। आदिवासी बहुल जिला गुमला में इस मानसून में 33 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें अधिकतर आदिवासी थे. रांची जिले के आंकड़े भी चिंताजनक रहे हैं। रांची जिले के अपर समाहर्ता सह आपदा प्रंबधन पदाधिकारी के मुताबिक 2024 में यहां 43 लोगों की मौत रिकॉर्ड की गई।
मौसम केंद्र रांची के प्रमुख और वरिष्ठ वैज्ञानिक अभिषेक आनंद डाउन टू अर्थ से कहते हैं, “झारखंड का विविध भूगोल, जिसमें पहाड़ियां, पठार और वन शामिल हैं, विशेष रूप से प्री-मानसून और मानसून के दौरान आंधी और बिजली गिरने के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करता है। बढ़ती घटनाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन का भी सीधा असर देखा जा सकता है।“
पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली का असर
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक प्रोटोकॉल के अनुसार “जीवन की हानि को कम करने के लिए” एक प्रभावी चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया गया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, दामिनी, सचेत मोबाइल ऐप के ज़रिए आम जनता को घटना से लगभग 30-40 मिनट पहले सीधे चेतावनी देता है। मौसम, उमंग और मेघदूत जैसे अन्य मोबाइल ऐप के ज़रिए भी बिजली गिरने की चेतावनी दी जाती है।
रांची स्थित मौसम विभाग के द्वारा संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान (एनडब्ल्यूपी) मॉडल और संक्षिप्त-स्तरीय विश्लेषण का उपयोग करते हुए, तूफान और बिजली गिरने की चेतावनी 5 दिन पहले तक जारी करता रहा है। ये पूर्वानुमान मौसम विज्ञान उप-विभाग और जिला स्तर पर बहु-खतरा रंग-कोडित प्रारूपों में प्रदान किए जाते हैं, और हर छह घंटे में इसे अद्यतन किए जाते हैं।
दूरदराज के ग्रामीण और जनजातीय बहुल इलाकों में कितना प्रभावी हो रहा है, इस सवाल पर मौसम विज्ञानी अभिषेक आनंद कहते हैं, रंग-कोडित प्रारूपों के साथ जो पूर्वानुमान और चेतावनी जारी किए जाते हैं, वह असरदार है और लोग इसे भरोसेमंद भी मानते हैं।
आनंद आगे कहते हैं, “आपदा प्रबंधन की चुनौतियां कम करने, बचाव को व्यापक बनाने, जागरूकता अभियान चलाने और उच्च तकनीक के इस्तेमाल के लिए राज्य सरकार के स्तर पर निरंतर काम जरूरी है। सिर्फ मुआवजे के भरोसे इस आपदा को नहीं छोड़ा जा सकता। दूसरे कई राज्यों में इस दिशा में कहीं ज्यादा प्रभावी कार्य हो रहे हैं।”
जनजातीय बहुल खूंटी जिले में जमीनी स्तर पर काम करते रहे स्थानीय पत्रकार अजय शर्मा बताते हैं, “ डिजिटली तौर पर आदिवासी इतने सशक्त नहीं होते कि पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली से जुड़े ऐप का इस्तेमाल करें। इसलिए सामुदायिक सहभागिता से स्थानीय भाषा में जागरूकता के लिए वीडियो तथा ऑडियो फॉर्मेट में अभियान जरूरी है।”
वज्रपात और स्कूलों की सुरक्षा
14-15 साल पहले राज्य के अधिकतर सरकारी स्कूलों में तड़ित चालक लगाकर झारखंड ने आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में एक अच्छा उदाहरण पेश किया था। अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता नसीम अहमद बताते हैं, “समय के साथ अधिकतर स्कूलों के विद्युत रोधक खराब हो गए या चोरी चले गए। स्कूली शिक्षा विभाग को इस दिशा में नए सिरे से काम करना चाहिए।
21 अगस्त को झारखंड की राजधानी रांची से करीब 60 किलोमीटर दूर नरकोपी थाना क्षेत्र के हिन्दोपीड़ी गांव में आकाशीय बिजली से एक साथ तीन स्कूली और आदिवासी बच्चियां- बासमती उरांव, अंजलिका कुजुर और परी उरांव की मौत हो गई। बासमती 12 साल, अंजलिका 5 साल और परी 4 साल की थी।
मेरी बेटी राजकीय मध्य विद्यालय कुल्लू में पढ़ती थी। स्कूल की छुट्टी होने पर वहां से प्राथमिक विद्यालय हिन्दोपीड़ी में अपने छोटे भाई रमा उरांव को लेने आई थी। स्कूल के ठीक सामने एक इमली का पेड़ भी है। इसी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाली गांव की दो अन्य बच्चियां अंजलिका कुजूर और परी उरांव बासमती के साथ स्कूल से बमुश्किल तीन- चार फर्लांग आगे बढ़ी होंगी कि तीनों बच्चियां वज्रपात की चपेट में आ गई। मुआवजे के लिए तीनों परिवार प्रक्रिया पूरी करने में जुटे हैंशिवनाथ भगत, पिता, बासमती उरांव
राजकीय प्राथमिक विद्यालय हिन्दोपीड़ी की प्रधान शिक्षिका निर्मला जेयती किंडो डाउन टू अर्थ से बताती हैं, “स्कूल में तड़ित चालक लगा नहीं है। उस दिन बासमती का भाई रमा कुछ आगे बढ़ गया था, जिससे उसकी जान बच गई। घटना के वक्त स्कूल के कई बच्चों ने झटके महसूस किए। हम सभी इस घटना से भयभीत हैं। इस घटना के बाद स्कूल में बच्चों की उपस्थिति कम दर्ज की जा रही है।
गौरतलब है कि झारखंड में 35 हजार सरकारी स्कूल हैं। इनमें 70 लाख बच्चे पढ़ते हैं। बोकारो ज़िले के एक स्कूल में 23 जुलाई, 2022 को बिजली गिरने से छह छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे। तब तत्कालीन स्कूली शिक्षा साक्षरता मंत्री जगरनाथ महतो ने स्कूल का दौरा किया था और विभाग को स्कूलों में तड़ित चालक लगाने के निर्देश दिए थे।