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कृषि उपज से संबंधित चीजों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से बढ़ रहा है तीन-चौथाई उत्सर्जन

अध्ययन के मुताबिक दुनिया की लगभग 22 फीसदी फसल और चारागाह 1 अरब हेक्टेयर का उपयोग विदेशी उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों की खेती के लिए उपयोग किया जाता है।

Dayanidhi

वैज्ञानिकों की एक टीम ने एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के समृद्ध देशों में कृषि उपज से संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लेकर एक अध्ययन किया है। जिसमें पाया गया की विकसित देशों के कृषि उपज के उपभोक्ता विकासशील देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार हैं। उपभोक्ता कृषि उपज की पूर्ति के लिए विकासशील देशों पर निर्भर रहते हैं, जिनकी आपूर्ति व्यापार के जरिए की जाती हैं। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन और अन्य संस्थानों ने मिलकर किया है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि भूमि उपयोग से होने वाले उत्सर्जन में व्यापार, जो कृषि और भूमि उपयोग में होने वाले बदलावों से जुड़ा है। जिसकी वजह से कार्बन डाइऑक्साइड जो कि 2004 में 5.1 गीगाटन से हर साल बढ़ कर 2017 में 5.8 गीगाटन तक हो गई। यहां बताते चलें कि इसमें अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जैसे नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन भी शामिल हैं। 

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि भूमि-उपयोग में बदलाव, जिसमें खेतों और चरागाहों के लिए जगह बनाने के लिए कार्बन को अवशोषित करने वाले जंगलों को साफ करना भी शामिल है। इस सब ने कृषि से संबंधित उपजों के वैश्विक व्यापार द्वारा उत्पन्न होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को 2004 से लेकर 2017 लगभग तीन-चौथाई तक बढ़ा दिया है।

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान के यूसीआई प्रोफेसर और सह-अध्ययनकर्ता स्टीवन डेविस ने कहा कि यह सभी मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक चौथाई भूमि के उपयोग से होता है। अध्ययन से पता चलता है कि कम आय वाले देशों में इस उत्सर्जन का बड़ा हिस्सा अधिक विकसित देशों में खपत से संबंधित है।

अध्ययन की अवधि के दौरान भूमि उपयोग, भूमि उपयोग में बदलाव के चलते होने वाले उत्सर्जन के शीर्ष स्रोत ब्राजील में थे, जहां प्राकृतिक वनस्पतियों जैसे कि जंगलों को पशुओं के चरागाहों और खेतों के लिए जगह बनाने की प्रथा ने देश में भूमि उपयोग में बड़े बदलाव किए। इंडोनेशिया, जहां समृद्ध देशों को निर्यात हेतु ताड़ के तेल का उत्पादन करने के लिए जगलों को साफ कर ताड़ की खेती की गई। जिसने पुराने समय से कार्बन-भंडारण कर रहे जंगल को साफ कर डाला।

शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनिया की लगभग 22 फीसदी फसल और चारागाह 1 अरब हेक्टेयर का उपयोग विदेशी उपभोक्ताओं के लिए उत्पादों की खेती के लिए उपयोग किया जाता है। चावल, गेहूं, मक्का, सोयाबीन, ताड़ के तेल और अन्य तिलहन जैसी वस्तुएं व्यापारिक वस्तुओं के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि के लगभग एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। लगभग आधे से अधिक ग्रीनहाउस उत्सर्जन में व्यापार की देन है।

अध्ययन ने 2004 और 2017 के बीच कुछ क्षेत्रों में हुए बदलावों को दिखाया, प्रारंभिक चरण में, चीन कृषि वस्तुओं का शुद्ध निर्यातक था, लेकिन 2017 तक, यह माल और भूमि-उपयोग उत्सर्जन दोनों का आयातक बन गया था, इसमें ब्राजील भी पीछे नहीं रहा। उसी समय, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका को ब्राजील का निर्यात, जो 2004 में कृषि वस्तुओं में देश का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, उसमें गिरावट आई।

2017 में पिछले साल शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि निर्यात से संबंधित उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत ब्राजील था, इसके बाद अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, थाईलैंड, रूस और ऑस्ट्रेलिया थे। इस तरह के उत्सर्जन से जुड़े उत्पादों के सबसे बड़े शुद्ध आयातक चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी थे, जिनमें यूके, इटली, दक्षिण कोरिया और सऊदी अरब भी पीछे नहीं हैं।

वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों को बढ़ाने के अलावा, लोगों के भूमि उपयोग प्रथाओं ने महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान पैदा किया है, जिससे जैव विविधता कम हुई है, जल संसाधनों में कमी आई है और स्थानीय वातावरण में अन्य प्रकार के प्रदूषण बढ़े हैं।

आर्थिक दृष्टिकोण से, सबसे अधिक मात्रा में भूमि उपयोग उत्सर्जन का उत्पादन करने वाले निर्यातक भी सकल घरेलू उत्पाद में योगदान कर्ता के रूप में निर्यात कृषि पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

डेविस ने कहा हमें उम्मीद है कि यह अध्ययन भूमि-उपयोग उत्सर्जन को बढ़ाने में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाएगा। बदले में, आयातक सबसे अधिक उत्सर्जन करने वाले आयात को कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए 'स्वच्छ खरीदें' नीतियां अपना सकते हैं। किसका मतलब ऐसे कृषि उत्पादों से है, जहां ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन न के बराबर हो।

इससे विनाशकारी व्यापार से होने वाले फायदों पर लगाम लगेगी। उन्होंने कहा हम मानते हैं कि यूरोप, अमेरिका और चीन सहित कई क्षेत्रों में हाल के वर्षों में आपूर्ति श्रृंखला पारदर्शिता में सुधार के प्रयासों में वृद्धि देखी है जो कि पर्यावरण की नजर से वास्तव में एक अच्छा संकेत है। यह अध्ययन साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।