जलवायु

जलवायु परिवर्तन के चलते प्रजनन क्षमता खो रहे हैं जीव: अध्ययन

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन से जैव विविधता पर असर पड़ रहा है, बहुत से ऐसे जीव हैं जो बढ़ते तापमान के चलते अपनी प्रजनन क्षमता खो रहे हैं और उनमें बांझपन बढ़ रहा है। अब यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के पारिस्थितिकीविदों ने एक नए अध्ययन के माध्यम से चेतावनी दी है कि गर्मी से होने वाले नर बांझपन कुछ प्रजातियों में जितना सोचा गया था जलवायु परिवर्तन के असर ने उसे और बढ़ा दिया है।ंं

वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रजातियों का नुकसान किस तरह होगा, ताकि वे प्रभावी संरक्षण रणनीतियों की योजना बना सकें। हालांकि, तापमान सहने को लेकर किए गए शोध ने आम तौर पर तापमान पर ध्यान केंद्रित किया है जो जीवों के लिए घातक ही नहीं बल्कि इसकी वजह से अब जीवों के प्रजनन में समस्या आने के बारे में पता चला है।

शोध में प्रकाशित 43 फ्रूट फ्लाई (ड्रोसोफिला) प्रजातियों के अध्ययन से पता चला कि लगभग आधी प्रजातियों के नरों में, घातक तापमान से बांझपन हो गया है। उदाहरण के लिए, ड्रोसोफिला लुमेई नर में चार डिग्री या उससे ऊपर के तापमान पर बांझपन आ जाता है। देखा जाए तो चार डिग्री उत्तरी इंग्लैंड और फ्रांस के दक्षिण में गर्मियों के बीच तापमान का अंतर होता है।  

लिवरपूल विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ स्टीवन पैराट ने कहा हमारे निष्कर्ष सुझाव देते हैं कि जहां प्रजातियां प्रकृति में जीवित रह सकती हैं, उस तापमान से निर्धारित होता है जिस पर नर बांझ हो जाते हैं, जबकि यह घातक तापमान नहीं होता है।  

शोधकर्ताओं ने कहा दुर्भाग्य से हमारे पास यह बताने का कोई तरीका नहीं है कि कौन से जीव घातक तापमान तक प्रजनन करने में सफल होंगे, और कौन से ठंडे तापमान पर निष्फल हो  जाएंगे। इसलिए, बहुत सी प्रजातियों में उच्च तापमान के प्रति छिपी क्षमता हो सकती है जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया है। यह संरक्षण को और अधिक कठिन बना देगा, क्योंकि हम यह  अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि धरती के गर्म होने पर कितनी प्रजातियां काम करेंगी।

शोधकर्ताओं ने 2060 के लिए तापमान के पूर्वानुमान का उपयोग करते हुए ड्रोसोफिला प्रजातियों में से एक को लेकर मॉडल बनाया और पाया कि आधे से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में जीवित रहने के लिए पर्याप्त ठंडा तापमान नरों के लिए उपजाऊ/प्रजनन करने के लिए बहुत गर्म होगा।

लिवरपूल विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ टॉम प्राइस ने कहा कि हमारा काम इस बात पर जोर देता है कि जलवायु परिवर्तन के दौरान तापमान से होने वाली प्रजनन हानि जैव विविधता के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है।

हमारे पास पहले से ही सूअर, शुतुरमुर्ग, मछली, फूल, मधुमक्खियां और यहां तक कि इंसानों के भी उच्च तापमान पर प्रजनन क्षमता के नुकसान के बारे में जानकारी है। दुर्भाग्य से, हमारे शोध से पता चलता है कि वे अलग-अलग मामले नहीं हैं और शायद सभी प्रजातियों में से आधे तापमान के बढ़ने से बांझपन की चपेट में होंगी।

अब हमें तत्काल उन जीवों की श्रेणी को समझने की आवश्यकता है जो प्रकृति में बढ़ते तापमान से उर्वरता में होने वाली हानियों को झेलने की क्षमता रखते हैं। हमें बुनियादी आनुवंशिकी और शरीर क्रिया विज्ञान को समझना चाहिए, ताकि हम अनुमान लगा सकें कि कौन से जीव असुरक्षित हैं, और शायद इन चुनौतियों के लिए अधिक मजबूत पशुओं की नस्लों को पैदा कर सकते हैं।

प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद में स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के प्रमुख डॉ. साइमन केर्ले ने कहा कि यह काम का एक बेहद रोमांचक हिस्सा है जो जलवायु परिवर्तन की भूमिका, दर और प्रभाव के बारे में हमारी सोच और धारणा को बदल देता है। यह वास्तव में शुरू होता है जानवरों की  बदलती परिस्थितियों में होने वाले सूक्ष्म प्रभाव से, जिन्हें हम शायद अब मान लेते हैं और पहले बदलते जलवायु के जोखिम को नहीं माना जाता था।

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के बीच संबंधों को बेहतर ढंग से समझने के लिए और शोध करने की आवश्यकता पर जोर देता है।