भारत ने इस साल के शुरूआती नौ महीनों में तकरीबन हर दिन एक न एक आपदा का सामना किया है। इनमें बाढ़, भूस्खलन, लू, शीत लहर, भारी बारिश और चक्रवातों से लेकर बिजली गिरने तक की चरम मौसमी घटनाएं शामिल हैं।
इन चरम मौसमी घटनाओं को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ (डीटीई) द्वारा किए विश्लेषण से पता चला है कि अब तक इन आपदाओं ने देश में 2,923 जिंदगियों को लील लिया है। इतना ही नहीं इन आपदाओं ने कृषि क्षेत्र पर भी गहरा असर डाला है, जिसके चलते 18.4 लाख हेक्टेयर में फसलें प्रभावित हुई हैं और करीब 92,519 मवेशी मारे गए हैं। इसके साथ-साथ इन आपदाओं की वजह से 80,563 घरों को नुकसान पहुंचा है।
यह रिपोर्ट देश में इन चरम मौसमी घटनाओं से जुड़े आंकड़ों की कमी की ओर भी इशारा करती है। रिपोर्ट के मुताबिक यह जो आंकड़े साझा किए गए हैं वो इन आपदाओं से हुए नुकसान की पूरी तस्वीर प्रस्तुत नहीं करते, क्योंकि न तो देश में घटी हर आपदा से जुड़े आंकड़ों को एकत्र किया जाता है और न ही सार्वजनिक संपत्ति या फसलों को हुए नुकसान की खाताबही तैयार की जाती है।
रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान मध्य प्रदेश ने सबसे ज्यादा चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया है। जो करीब-करीब औसतन हर दूसरे दिन दर्ज की गई। हालांकि, इन आपदाओं में बिहार में सबसे ज्यादा लोगों की जान गई है। आंकड़ों के अनुसार जून से सितम्बर के बीच जहां बिहार में 642 लोगों की मौत हो गई, वहीं हिमाचल प्रदेश में इन आपदाओं की भेंट चढ़ने वालों का आंकड़ा 365 और उत्तर प्रदेश में 341 दर्ज किया गया।
इसी तरह विश्लेषण के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा 15,407 घर क्षतिग्रस्त हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ पंजाब में सबसे ज्यादा 63,649 मवेशियों की मौत इन चरम मौसमी आपदाओं में हुई है।
सामान्य से गर्म रही इस बार सर्दियां
यदि इस साल सर्दियों में तापमान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो जहां जनवरी का महीना औसत से थोड़ा अधिक गर्म रहा, जबकि फरवरी 2023 में तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा दर्ज किया गया। बता दें कि जहां फरवरी का औसत तापमान सामान्य (1981-2010 के औसत तापमान) से 1.36 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया वहीं दिन के समय का औसत तापमान 1.86 डिग्री रिकॉर्ड किया गया। इस दौरान न केवल तापमान में इजाफा दर्ज किया गया साथ ही दोनों महीने भी सामान्य से कहीं ज्यादा शुष्क रहे। रिपोर्ट के अनुसार जहां जनवरी में होने वाली बारिश में 13 फीसदी की कमी दर्ज की गई, जो फरवरी में 68 फीसदी तक पहुंच गई।
देश में 2023 की सर्दियों के दौरान 59 में से 28 दिनों में चरम मौसमी घटनाएं देखी गईं, जिससे 21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रभावित हुए थे। इनका सबसे ज्यादा कोप पंजाब और हरियाणा को भोगना पड़ा। जहां इस दौरान करीब 15 दिनों तक चरम घटनाएं रिकॉर्ड की गई थी। इसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार रहे, जिन्होंने 14 दिन इन चरम मौसमी घटनाओं का सामना किया था।
मानसून से पहले कहां पड़ी आपदाओं की मार
यदि मानसून से पहले के मौसम यानी प्री-मानसून सीजन को देखें तो औसत तापमान के सामान्य के करीब होने के बावजूद, इसमें महत्वपूर्ण रूप से क्षेत्रीय विषमताएं भी देखी गई थी। इसके अतिरिक्त, बारिश भी औसत से अधिक रिकॉर्ड की गई। इस दौरान बिजली गिरने और तूफानों के साथ-साथ विशेष रूप से ओलावृष्टि की घटनाओं में असामान्य रूप से वृद्धि हुई, जिससे करीब-करीब पूरा देश प्रभावित हुआ है।
प्री-मानसून सीजन के दौरान देश को 92 में से 85 दिनों में चरम मौसमी घटनाओं का सामना करना पड़ा। इन आपदाओं में 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश प्रभावित हुए। इस दौरान 79 दिनों में तूफान और बिजली गिरने की सूचना मिली। वहीं 28 दिनों में लू का सामना देश को करना पड़ा, जबकि 16 दिनों में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं दर्ज की गई।
इस दौरान इन चरम मौसमी घटनाओं से महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ, जिसने करीब 41 दिनों तक चरम मौसम की घटनाओं का सामना किया था। इसके बाद राजस्थान में 33 दिनों तक मौसम की मार झेलनी पड़ी।
कैसा रहा मानसून का हाल
इस साल दक्षिण पश्चिम मानसून सात दिनों की देरी के बाद आठ जून 2023 को आया। हालांकि इसकी शुरूआत धीमी रही, लेकिन गति पकड़ने के बाद इसने सामान्य से करीब 15 दिन पहले ही 30 जून तक पूरे देश को कवर कर लिया था।
इस दौरान जहां चक्रवात बिपरजॉय के कारण कुछ पश्चिमी राज्यों में भारी बारिश दर्ज की गई। वहीं जुलाई में, पश्चिमी विक्षोभ के साथ एक असामान्य संपर्क के कारण हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ आ गई। अगस्त में पर्वतीय क्षेत्रों और पूर्वोत्तर भारत में भारी वर्षा हुई, जबकि देश के बाकी हिस्से अपेक्षाकृत शुष्क रहे। हालांकि सितंबर में कुछ बारिश जरूर हुई, लेकिन इसके बावजूद इसमें छह फीसदी की कमी रिकॉर्ड की गई। इन सभी घटनाओं के चलते भारत के लिए इस बार मॉनसून का मौसम करीब-करीब सामान्य रहा।
हालांकि मानसून के दौरान करीब-करीब सभी 122 दिनों में मौसम की चरम घटनाओं की सूचना मिली, जिन आपदाओं के चलते 2,594 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। दावा है कि इस दौरान करीब 8.1 लाख हेक्टेयर में फसलों को नुकसान पहुंचा है, जबकि 80,563 घर क्षतिग्रस्त हो गए थे।
क्या देश में बदल रहा है चरम मौसमी घटनाओं का चरित्र
अतीत में, चरम मौसमी घटनाओं को लेकर यह मान्यता थी कि यह ऐसी घटनाएं हैं जो जीवनकाल में एक बार घटित होती है। हालांकि मौजूदा समय में यह धारणा काफी बदल गई है। देखा जाए तो यह किसी एक घटना के बारे में नहीं है, बल्कि इन आपदाओं की बढ़ती संख्या के बारे में है। जो चरम घटनाएं हर सौ वर्षों में यदा कदा एक बार घटती होती थीं, वे अब हर पांच वर्षों में या उससे भी अधिक बार घटित हो रही हैं।
वहीं जिस तरह से महीन-दर-महीने नए रिकॉर्ड बन रहे हैं, उनसे स्थिति कहीं ज्यादा बदतर हो रही है। और भी बुरा यह है कि यह सब एक साथ घटित हो रहा है। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब तबके को भुगतना पड़ रहा है। जो न केवल इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है, बल्कि बार-बार होने वाली इन घटनाओं से निपटने की अपनी क्षमता को भी तेजी से खो रहा है।
इन घटनाओं की प्रकृति को देखें तो पिछले नौ महीनों में सभी प्रकार की चरम मौसम घटनाएं दर्ज की गई हैं। इस दौरान सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली गिरने और तूफान आने की सूचना मिली, जिसके चलते 711 लोग हताहत हुए हैं।
मानसून के तीन महीनों में जून से अगस्त के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में हर दिन भारी से बहुत भारी और अत्यधिक भारी वर्षा रिकॉर्ड की गई। इसकी वजह से कोई भी क्षेत्र बाढ़ की विभीषिका से बच नहीं पाया है। उदाहरण के लिए, इस बाढ़ में हिमाचल प्रदेश का एक बढ़ा हिस्सा पानी में डूब गया था, जिससे जान, माल और जीविका की भारी हानि हुई है।
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