1850 से 2021 के बीच वैश्विक तापमान में हुई 0.08 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए भारत जिम्मेवार है। यदि अन्य देशों से तुलना करें तो इस मामले में भारत का पांचवा स्थान है। मतलब की इस अवधि के दौरान वैश्विक तापमान में जितनी वृद्धि हुई है उसके 4.8 फीसदी के लिए भारत द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन वजह है।
यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर तीन प्रमुख गैसों कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन और उनके कारण तापमान में हो रही वृद्धि का अध्ययन किया है।
रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि 1851 से 2021 के बीच भारत में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन की वजह से वैश्विक तापमान में 0.04 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वहीं मीथेन (सीएच4) तापमान में 0.03 डिग्री सेल्सियस और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) तापमान में हुई 0.006 डिग्री सेल्सियस वृद्धि के लिए जिम्मेवार थी। रिसर्च के अनुसार भारत वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के लिए जिम्मेवार देशों की लिस्ट में पांचवे स्थान पर है।
यदि 1850 से वैश्विक तापमान में हुई वृद्धि के लिहाज से देखें तो इसका सबसे ज्यादा जिम्मेवार अमेरिका है। आंकड़ों के अनुसार अमेरिका ने इन वर्षों में जितना उत्सर्जन किया है, उससे वैश्विक तापमान में 0.28 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। मतलब की वैश्विक तापमान में हुई 17.3 फीसदी की वृद्धि के लिए अकेला अमेरिका जिम्मेवार है।
इसी तरह चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर है, जिसकी वजह से वैश्विक तापमान में 0.20 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वहीं तीसरे पायदान पर रूस का स्थान है, जो 0.10 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ तापमान में हुई 6.1 फीसदी की वृद्धि की वजह है।
इसी तरह ब्राजील की वजह से तब से लेकर अब तक 0.08 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। जो 4.9 फीसदी की वृद्धि के लिए जिम्मेवार है। यही वजह है कि उसे चौथे स्थान पर रखा गया है। इसके बाद भारत की बारी आती है। वहीं इंडोनेशिया, जर्मनी, यूके, जापान, कनाडा की बारी आती है। यह सभी देश वैश्विक तापमान में 0.03 से लेकर 0.05 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए जिम्मेवार हैं।
तापमान में 69.1 फीसदी की वृद्धि के लिए जिम्मेवार है अकेले कार्बन डाइऑक्साइड
यदि इन तीनों गैसों की बात करें तो इनमें से कार्बन डाइऑक्साइड ने वैश्विक तापमान में होती वृद्धि में सबसे ज्यादा योगदान दिया है। 1850 से 2021 के बीच तापमान में हुई 1.11 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए सीओ2 उत्सर्जन ही जिम्मेवार है।
वहीं यदि मीथेन उत्सर्जन को देखें तो उसने तापमान में होती वृद्धि में 0.41 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का योगदान दिया है। वहीं नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) की वजह से तापमान में 0.08 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
देखा जाए तो 2021 तक इन तीनों गैसों की वजह से तापमान में जितनी वृद्धि हुई है उसके 69.1 फीसदी हिस्से के लिए अकेले कार्बन डाइऑक्साइड जिम्मेवार है। हालांकि देशों के आधार पर देखें तो इसकी हिस्सेदारी कम-ज्यादा हो सकती है। देखा जाए तो जिन क्षेत्रों में कृषि निर्भरता ज्यादा है। वहां मीथेन और एन2ओ उत्सर्जन का बड़ा स्रोत हैं।
कहीं न कहीं यह तीनों गैसें जलवायु में आते बदलावों के लिए जिम्मेवार हैं। यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन में देशों के योगदान को ट्रैक करने के लिए यह अहम टूल लांच किया है।
इस बारे में रिसर्च से जुड़े डॉक्टर मैथ्यू जोन्स का कहना है कि “देशों ने बाढ़, सूखा, जंगल में लगती आग, समुद्र के स्तर में होती वृद्धि सहित जलवायु में आते बदलावों के सबसे हानिकारक प्रभावों से बचने के लक्ष्य के साथ सीओ2, मीथेन और एन2ओ के अपने उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता जताई है।“
उन्हें भरोसा है कि यह नया डेटासेट राष्ट्रीय उत्सर्जन के ग्लोबल वार्मिंग पर बदलते प्रभावों को ट्रैक करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होगा। विशेष तौर पर पेरिस समझौते के बाद से जिस तरह से जलवायु नीतियों में बदलाव किया गया है इसकी गणना महत्वपूर्ण है।
उन्हें उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में सभी देशों द्वारा वैश्विक तापमान में किया जा रहा योगदान घटता जाएगा। इसके बाद साल-दर-साल इसमें कोई इजाफा नहीं होगा, क्योंकि ज्यादातर देशों की शुद्ध-शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने की प्रतिबद्धता या तो पूरी हो गई है या फिर उसको पार कर गई है।