जलवायु

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बेहतर प्रदर्शन कर रहा भारत, सीसीपीआई 2024 में केवल तीन देशों से है पीछे

इस साल जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2024 में भारत को सातवें पायदान पर रखा गया है, हालांकि पहले तीन स्थानों के लिए उपयुक्त दावेदार न मिल पाने के कारण वो केवल तीन देशों से पीछे है

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत के प्रदर्शन के आधार पर उसे विश्व के शीर्ष देशों में शामिल किया गया है। कॉप-28 के दौरान जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2024 (क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स–सीसीपीआई 2024) में 70.25 अंकों के साथ भारत को सातवें पायदान पर रखा गया है।

हालांकि सही मायनों में देखें तो भारत केवल तीन देशों डेनमार्क, एस्टोनिया और फिलीपीन्स से पीछे है क्योंकि इस बार इस इंडेक्स में पहले तीन पायदानों के लिए कोई भी देश उपयुक्त नहीं पाया गया है।

इस इंडेक्स में भारत के प्रदर्शन को देखें तो वो रूस, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, यूनाइटेड किंगडम, स्वीडन, ब्राजील, सहित कई अन्य समृद्ध देशों से ऊपर है। जो कहीं न कहीं स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि भारत जलवायु परिवर्तन को लेकर कितना गंभीर है और इससे निपटने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है।

गौरतलब है कि इस साल जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स–सीसीपीआई 2024) में भारत को सातवें पायदान पर रखा गया है। मतलब की पिछले साल की तुलना में इस साल वो एक पायदान ऊपर आया है, पिछली बार इस इंडेक्स में भारत को आठवें पायदान पर जगह दी गई थी।

इस साल इंडेक्स में 75.59 अंकों के साथ डेनमार्क को चौथे पायदान पर जगह दी गई है। वहीं एस्टोनिया 72.07 अंकों के साथ दूसरे जबकि 70.7 अंकों के साथ फिलीपीन्स तीसरे स्थान पर है। वहीं 69.39 अंकों के साथ स्वीडन दसवें और 62.36 के साथ यूनाइटेड किंगडम बीसवें पायदान पर है।

65वें स्थान पर है कॉप-28 का मेजबान देश संयुक्त अरब अमीरात

इसी तरह 45.56 अंकों के साथ चीन 51वें, जबकि 42.79 अंकों के साथ अमेरिका 57वें स्थान पर है। वहीं इस बार के कॉप-28 के मेजबान देश संयुक्त अरब अमीरात को 65वें स्थान पर जगह दी गई है, जबकि 19.33 अंकों के साथ सऊदी अरब सबसे निचले 67वें पायदान पर है।

बता दें कि हर साल अंतराष्ट्रीय संगठन जर्मन वॉच न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट तथा क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स–सीसीपीआई) जारी किया जाता है।

यह इंडेक्स 2005 से साल दर साल जारी किया जा रहा है, जहां देशों को उनके द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उनके प्रयासों के आधार पर इस इंडेक्स में जगह दी जाती है। हर साल यह इंडेक्स अंतराष्ट्रीय संगठन जर्मन वॉच, न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित किया जाता है। इस साल इंडेक्स में यूरोपियन यूनियन सहित 63 देशों के प्रदर्शन को आंका गया है। बता दें कि यह वो देश है जो वैश्विक स्तर पर ग्रीनहॉउस गैसों के हो रहे करीब 90 फीसदी से ज्यादा उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार हैं।

यह इंडेक्स राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय जलवायु राजनीति और प्रयासों में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। यह इंडेक्स में देशों द्वार किए जा रहे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के साथ-साथ, अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा उपयोग और जलवायु सम्बन्धी नीतियों का विश्लेषण किया जाता है।

इस बारे में जारी रिपोर्ट के मुताबिक जहां भारत ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और ऊर्जा उपयोग में उच्च रैंकिंग हासिल की है। लेकिन जलवायु नीति और अक्षय ऊर्जा में पिछले साल की तरह ही उसका प्रदर्शन मध्यम रहा है। भारत दुनिया का सबसे आबादी वाला देश है इसके बावजूद यहां प्रति व्यक्ति उत्सर्जन बेहद कम है।

यदि इस लिहाज से देखें तो आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत दो डिग्री सेल्सियस से नीचे रहने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जोकि एक अच्छी खबर है। वहीं दूसरी तरफ अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में सकारात्मक रुझान तो देखें हैं लेकिन इस क्षेत्र में हो रहा विकास अभी भी धीमा है, जिस पर और ध्यान देने की जरूरत है।

सीसीपीआई विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत दीर्घकालिक नीतियों को लागू करके अपने राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (एनडीसी) को हासिल करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। इसके तहत अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। साथ ही वित्तीय सहायता देने पर भी जोर दिया जा रहा है। हालांकि इन प्रयासों के बावजूद, भारत की बढ़ती आबादी के साथ ऊर्जा की मांग भी बढ़ रही है। यही वजह है कि देश अभी भी ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतों के लिए मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल और गैस पर काफी हद तक निर्भर है। उसकी यह निर्भरता ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देती है और खासकर शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की वजह बनती है। ऐसे में इस मुद्दे पर गंभीरता से गौर करने की जरूरत है।