विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने पिछले 51 वर्षों का आंकड़ा जारी करते हुए जानकारी दी है कि 1970 से 2021 के बीच भारत में जलवायु से जुड़ी 573 चरम आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान, लू, भीषण गर्मी, भूस्खलन और दावाग्नि की वजह से 138,377 लोगों ने अपनी गंवाई है।
डब्ल्यूएमओ द्वारा यह जानकारी हर चार वर्षों में होने वाली विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस में जारी किए जाते हैं। यह कांग्रेस 22 मई 2023 से जेनेवा में शुरू हो चुकी है। इस कांग्रेस में अगले चार वर्षों में 2027 तक दुनिया के हर इंसान को इन आपदाओं से सुरक्षित रखने के लिए शुरुआती वार्निंग सिस्टम के दायरे में लाने के लिए कार्रवाई में तेजी लाने की बात की है। इसको लेकर उच्चस्तरीय वार्ता शुरू हो गई है।
इस मौके पर विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में पिछले 51 वर्षों में आई चरम मौसमी घटनाओं और उनके प्रभावों का लेखा-जोखा प्रकाशित किया है। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 51 वर्षों में दुनिया भर में जलवायु से जुड़ी करीब 11,778 चरम मौसमी घटनाओं ने दुनिया को अपना निशाना बनाया है।
इन आपदाओं में अब तक करीब 20,87,229 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। साथ ही आपदाओं ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 356 लाख करोड़ रुपए (4.3 लाख करोड़ डॉलर) की चोट पहुंचाई है। इस बारे में डब्ल्यूएमओ का कहना है कि जलवायु में आते बदलावों और वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के चलते यह चरम मौसमी घटनाएं कहीं ज्यादा प्रबल हो चुकी हैं। हालांकि समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों के बेहतर होने से लोगों की जानमाल की हानि को कम करने में मदद मिली है।
बदलती जलवायु और बढ़ते तापमान के साथ बिगड़ रहे हैं हालात
रिपोर्ट के मुताबिक इन आपदाओं में करीब 90 फीसदी मौतें विकासशील देशों में हुई है, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि यह देश इन आपदाओं के लिए तैयार नहीं हैं। इतना ही नहीं इन जलवायु आपदाओं से हुए नुकसान का करीब 60 फीसदी भी इन कमजोर देशों को ही वहन करना पड़ा है।
विश्लेषण से पता चला है इन आपदाओं में कमजोर देशों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है। पता चला हैं इन 51 वर्षों में इन कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को उनके जीडीपी के करीब 30 फीसदी के बराबर हानि हुई है। ऐसे में विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस में भी "यूनाइटेड नेशंस अर्ली वार्निंग्स फॉर ऑल इनिशिएटिव" की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
कमजोर तबके को चुकानी पड़ रही है भारी कीमत
वहीं यदि छोटे विकासशील द्वीपीय देशों के आंकड़ों को देखें तो उन्हें हर पांच में से एक आपदा के कारण जीडीपी के करीब पांच फीसदी के बराबर नुकसान हुआ है। वहीं कुछ आपदाएं तो इतनी विनाशकारी थी कि उनमें इनकी पूरी जीडीपी ही बर्बाद हो गई थी।
इस बारे में मौसम विज्ञान संगठन का कहना है कि सबसे कमजोर देशों और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों को उनकी अर्थव्यवस्था की तुलना में इन आपदाओं की बहुत ऊंची कीमत चुकानी पड़ी है। मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी तालस के मुताबिक, "सबसे सवेंदनशील हालातों का सामने करने वाले समुदायों को दुर्भाग्यवश, मौसम, जलवायु और जल से जुड़े जोखिमों का खामियाजा भुगतना पड़ता है।"
रिपोर्ट के अनुसार इन आपदाओं में सबसे ज्यादा जानें एशिया में गई हैं। आंकड़ों से पता चला है कि पिछले 50 वर्षों में इन आपदाओं से एशिया में 984,263 लोगों की जान गई है, जबकि अर्थव्यवस्था को 115,92,462 करोड़ रुपए (140,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ा है, जिसकी सबसे बड़ी वजह बाढ़ रही।
पता चला है कि 1970 से 2021 के बीच एशिया को जलवायु से जुड़ी कुल 3,612 चरम मौसमी आपदाओं ने अपना निशाना बनाया है। गौरतलब है कि इस दौरान दुनिया भर में इन आपदाओं में जितने लोगों की जान गई हैं उनमें से करीब 47 फीसदी एशिया में ही दर्ज की गई हैं। आंकड़ों के मुताबिक इन आपदाओं की वजह से सबसे ज्यादा बांग्लादेश में 520,758 लोगों की जान गई है। वहीं चीन में मरने वालों का आंकड़ा 88457 दर्ज किया गया है।
वहीं यदि अफ्रीका की बात करें तो 1970 से 2021 के बीच अफ्रीका में 1839 आपदाओं ने अपना निशाना बनाया है। इन चरम मौसमी आपदओं में 733 585 लोगों ने अपनी जानें गंवाई हैं, जबकि अर्थव्यवस्था को 4,300 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। इनमें से 95 फीसदी से ज्यादा मौतों के लिए सूखा की घटनाएं जिम्मेवार थी।
ऐसे में इनकी रोकथाम के लिए समय पूर्व चेतावनी प्रणाली के महत्व को बल देते हुए डब्ल्यूएमओ ने बताया कि यदि किसी भी मौसमी सम्बन्धी जोखिम के बारे में, 24 घंटे पहले सूचना मिलने से उससे होने वाली सम्भावित क्षति को 30 फीसदी तक कम किया जा सकता है। यही वजह है कि समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों को जलवायु अनुकूलन का एक ऐसा उपाय बताया गया है, जिसे आसानी से सच किया जा सकता है, और इसमें किए गए निवेश से 10 गुना ज्यादा फायदा होता है।