ग्रीनहाउस गैसें गर्मी को फसा कर हमारी धरती को गर्म करती हैं। पिछले 150 वर्षों में वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों में हुई सभी तरह की वृद्धि के लिए मानवजनित गतिविधियां जिम्मेवार हैं। दुनिया भर में मानवजनित गतिविधियों से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत ताप बिजली और यातायात के लिए जीवाश्म ईंधन का जलना है।
अब एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैसों में भारी वृद्धि से भूमध्यरेखीय इलाकों में बारिश में कमी आ सकती है, जिसके कारण वनस्पतियों में भी बदलाव आ सकता है। पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और अंडमान के सदाबहार वनों से युक्त भारत के जैव विविधता वाले हिस्सों की जगह पर्णपाती जंगल ले सकते हैं।
बढ़ती गर्मी की घटनाओं के कारण भविष्य में जलवायु के पूर्वानुमान इसी के अनुरूप होंगे। हालांकि गर्मी की इन बढ़ती घटनाओं का असर मुख्य रूप से मध्य और उच्च अक्षांश वाले इलाकों में होगा साथ ही इससे संबंधित आंकड़ों से भी इसकी पुष्टी होती है। वहीं, भूमध्यरेखीय या उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से मात्रात्मक आंकड़ों की कमी के कारण पूर्वानुमान लगाना कठिन होगा।
यह अध्ययन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूशन ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) के शोधकर्ताओं ने किया है। जिसमें बताया गया कि उन्होंने इओसीन थर्मल मैक्सिमम 2 (ईटीएम-2), जिसे एच-1 या एल्मो के नाम से भी जाना जाता है, से प्राप्त जीवाश्म पराग और कार्बन आइसटोप के डेटा का उपयोग लगभग 5.4 करोड़ वर्ष पहले हुई वैश्विक वार्मिंग की अवधि के स्थलीय जल विज्ञान चक्र को मापने के लिए किया।
अध्ययन में कहा गया है कि इसी अवधि के दौरान दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर अपनी यात्रा के दौरान भारतीय प्लेट, भूमध्य रेखा के पास रुकी थी। यह घटना भारतीय प्लेट को एक आदर्श प्राकृतिक प्रयोगशाला बनाता है जो ईटीएम-2 के दौरान भूमध्य रेखा के पास वनस्पति-जलवायु संबंधों को समझने का एक अनोखा अवसर प्रदान करता है। ईटीएम 2 के जीवाश्मों की उपलब्धता के आधार पर, शोधकर्ताओं ने गुजरात के कच्छ में पन्ध्रौं लिग्नाइट खदान का चयन किया और वहां से जीवाश्म पराग एकत्र किए।
शोधकर्ताओं ने पराग का विश्लेषण करते हुए पाया कि जब पैलियो-भूमध्य रेखा के पास वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) की मात्रा 1000 पीपीएमवी से अधिक थी, तो वर्षा में काफी कमी आई, जिससे पर्णपाती जंगलों का विस्तार हुआ।
अध्ययन में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण भूमध्यरेखीय, उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों और जैव विविधता हॉटस्पॉट के अस्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए हैं। यह सीओ2 और हाइड्रोलॉजिकल चक्र के बीच संबंधों को समझने में मदद कर सकता है और भविष्य में जैव विविधता हॉटस्पॉट के संरक्षण में सहायता कर सकता है। यह अध्ययन जियोसाइंस फ्रंटियर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।