हर साल जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण दुनिया भर में लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हो जाते हैं। इस विस्थापन के एक बड़े हिस्से के लिए नदी की बाढ़ जिम्मेदार है। ग्लोबल वार्मिंग और हाइड्रोलॉजिकल चक्र पर इसके प्रभावों के परिणामस्वरूप नदी के बाढ़ के खतरों में बदलाव होने के आसार हैं।
एक नए अध्ययन से पता चलता है कि नदी में आने वाली बाढ़ के कारण जनसंख्या विस्थापन का खतरा ग्लोबल वार्मिंग के हर डिग्री के लिए 50 फीसदी तक बढ़ जाएगा। यदि बढ़ती जनसंख्या को देखा जाए, तो इसके सापेक्ष दुनिया भर में आने वाली बाढ़ से होने वाले विस्थापन का खतरा काफी अधिक है।
यह शोध एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया है, जिसमे स्विट्जरलैंड, जर्मनी, और नीदरलैंड के शोधकर्ता शामिल है। शोध में, वैश्विक जलवायु, जल विज्ञान और इनड्यूलेशन-मॉडलिंग श्रृंखला का उपयोग किया गया, जिसमें कई वैकल्पिक जलवायु और हाइड्रोलॉजिकल मॉडल भी शामिल हैं। इनका उद्देश्य वर्तमान और अनुमानित भविष्य की जनसंख्या के अनुसार विस्थापन के खतरे पर ग्लोबल वार्मिंग के असर को निर्धारित करना है।
2008 से प्राकृतिक खतरों के कारण होने वाली आपदाओं की वजह से 28.8 करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं, जो युद्धों, संघर्षों और हिंसा में होने वाले विस्थापन से तीन गुना अधिक है। सभी आपदाओं में होने वाले विस्थापनों में बाढ़ लगभग आधे से अधिक के लिए ज़िम्मेदार है। केवल बाढ़ से ही संघर्ष और हिंसा की तुलना में 63 फीसदी लोग अधिक विस्थापित हुए हैं।
शोधकर्ता बताते हैं विस्थापन की वजह से कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, यह अक्सर सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर भारी पड़ता हैं, जो अधिक खतरे वाले क्षेत्रों में रहते हैं। विस्थापित लोगों को उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, आजीविका, भूमि, व्यक्तिगत सुरक्षा और कई अन्य पहलुओं पर खतरों का सामना करना पड़ता है।
शोधकर्ता बताते हैं निजी तौर पर खतरे के अलावा, लंबे समय के परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो विस्थापित लोग आर्थिक विकास मे पीछे रह जाते हैं, यह उनके लिए सबसे बड़ा खतरा है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के अनुसार, विस्थापन और जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में लोगों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
क्योंकि बाढ़ विस्थापित करने में अहम भूमिका निभाती है, बांढ़ आने के पीछे का कारण जलवायु परिवर्तन हैं। यह जरूरी है कि हमें भविष्य के बाढ़ से विस्थापित होने के खतरों की बेहतर समझ हो। हमें यह भी समझना होगा कि जलवायु परिवर्तन, जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक कारकों को कैसे प्रभावित करेगा।
अध्ययन में जलवायु परिवर्तन और सामाजिक-आर्थिक विकास में लंबे समय में होने वाले बदलावों का अनुमान लगाया गया है। वैश्विक स्तर पर और क्षेत्रीय स्तर पर नदियों से आने वाली बाढ़ से होने वाले विस्थापन के बदलते रुझान का अनुमान लगाने के लिए परिदृश्य आधारित अनुमानों का उपयोग किया गया है।
शोधकर्ताओं ने इस बात का भी पता लगाया कि, क्या बाढ़ से होने वाले विस्थापन के खतरे जलवायु परिवर्तन, सामाजिक आर्थिक विकास या दोनों के द्वारा होते हैं। परिणाम बताते हैं कि अधिकांश क्षेत्रों में, बाढ़ और जनसंख्या दोनों में वृद्धि हुई है, जो नदियों में आने वाली बाढ़ से विस्थापित होने के खतरों को बढ़ाती है।
यदि जलवायु परिवर्तन को पेरिस समझौते से जोड़ दिया जाता है और जनसंख्या परिवर्तन के परिदृश्य का उपयोग किया जाता है, इस सदी के अंत तक नदी की बाढ़ से विस्थापित होने वाले लोगों का विश्व स्तर पर औसत खतरा दोगुना 110 फीसदी होने का अनुमान है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
लेकिन हमेशा की तरह जलवायु परिवर्तन के द्वारा विस्थापन के इस खतरे को 350 फीसदी तक बढ़ाने का अनुमान है। हालांकि, शहरी योजना और सुरक्षात्मक बुनियादी ढांचे द्वारा बाढ़ से होने वाले विस्थापन के इस खतरे को कम किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्ष में कहा कि ऐसी आबादी जो कि विस्थापित होने के अधिक खतरे में है इसे कम करने के लिए बाढ़ नियंत्रण के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, जलवायु परिवर्तन से तेजी से निपटने का सुझाव दिया।