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जलवायु

महज 12 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली के दो जिलों में एक में कम सूखा तो दूसरे में बाढ़: जिम्मेवार कौन- शहरीकरण या बदलता मौसम

विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण एक दूसरे को बढ़ा भी सकते हैं और दबा भी सकते हैं, जिससे एक शहर के दो हिस्सों की बारिश में नाटकीय अंतर दिख सकता है

Akshit Sangomla

मानसून की हवाओं से आने वाली बरसात भारत के एक हिस्से में ज्यादा तो दूसरे हिस्से में कम होती है लेकिन ये हिस्से अब एक-दूसरे से बहुत कम दूरी पर हो रहे हैं, यहां तक कि एक शहर के दो छोटे हिस्सों में बारिश कहीं बहुत कम तो कहीं बहुत ज्यादा दर्ज की जा रही है। इस साल के दक्षिण-पश्चिमी मानसून में यह स्थिति राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अगल-बगल के दो जिले में देखी गई।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, यानी आईएमडी के एक जून से दस जुलाई 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान पश्चिमी दिल्ली जिले में सामान्य से 99 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई जबकि उससे जुड़े उत्तर-पश्चिमी जिले में सामान्य से 122 फीसदी ज्यादा बारिश रिकार्ड की गई। मात्रा के हिसाब से, पश्चिमी दिल्ली में जहां एक ओर 1 मिमी बारिश रिकार्ड की गई तो उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में 183 मिमी। आईएमडी के पश्चिमी दिल्ली स्थित पूसा के ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन यानी एडब्ल्यूएस और उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के पीतमपुरा के एडब्ल्यूएस के बीच की दूरी महज 12 किलोमीटर है। आईएमडी के पास मौसम का निरीक्षण करने के लिए 12 एडब्ल्यूएस, एक स्वचालित वर्षा गेज, चार अंशकालिक उपरिकक्षों और पांच संयुक्त हस्तचालित उपरिकक्षों का नेटवर्क है।

केवल दो जिलों में ही नहीं, दिल्ली के बाकी हिस्सों में भी बारिश बराबर नहीं रही। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में बारिश जहां सामान्य से 64 फीसदी कम रही, वहीं उत्तरी दिल्ली और नई दिल्ली में सामान्य से क्रमशः 84 फीसदी और 76 फीसदी ज्यादा रही। ये दोनों इलाके उत्तर-पूर्वी दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं हैं। 

आईएमडी द्वारा ’सामान्य वर्षा’ के रूप में परिभाषित बारिश के लिहाज से 1 जून से 10 जुलाई के बीच दक्षिण दिल्ली में बारिश 23 फीसदी कम हुई जबकि दक्षिण पश्चिम दिल्ली में -11 फीसदी और मध्य दिल्ली में -9 फीसदी बारिश हुई। दस जुलाई तक दिल्ली में हुई कुल बारिश 11 फीसदी अधिक हुई। आईएमडी के मुताबिक, पश्चिमी विक्षोभ और बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नमी के प्रवेश सहित कई अन्य मौसम प्रणालियों की मौजूदगी में मॉनसून 27-28 जून को मजबूती के साथ दिल्ली पहुंचा, जिससे मेसोस्केल कंवेक्टिव सिस्टम बना। मेसोस्केल कंवेक्टिव सिस्टम, तूफानी हवाओं का सम्मिश्रण होता है, जो बादलों को सौ किलोमीटर तक कवर कर सकता है।

इसकी वजह से 28 जून की सुबह दिल्ली में तेज बारिश हुई, जिससे यहां बाढ़ जैसे हालात बन गए। आईएमडी के सफदरजंग स्थित उपरिकक्ष ने उस एक दिन में 228 मिमी बारिश दर्ज की, जो जून में दूसरी सबसे अधिक बारिश का रिकॉर्ड है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, बाढ़ और उससे जुड़ी घटनाओं की वजह से 14 लोगों की जान चली गई। दिल्ली में रुक-रुक कर बारिश हुई।

इतना अंतर क्यों: हालांकि इतनी कम दूरी पर बारिश में इतने नाटकीय अंतर पर अध्ययन होना अभी बाकी है, फिर भी वैज्ञाानिक इसके लिए वायुमंडल के गर्म होने, भूमि की सतह के अलग-अलग ताप, हवाओं के कारण-सतह के घर्षण के कारण नमी, हरित आवरण के साथ धीमी गति से होने वाली जटिल अंतःक्रियाओं की ओर इशारा करते हैं।  इसके साथ ही ही जल निकायों की उपस्थिति और प्रदूषण ऐसे कारकों के रूप में हैं जो किसी शहर में  बारिश के वितरण को प्रभावित कर सकते हैं।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर में पृथ्वी, महासागर और जलवायु विज्ञान स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर वी विनोज ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) से कहा, ‘ इनमें से कुछ कारक जैसे कि, जैसे कि हरित आवरण और एयरोसोल (प्रदूषण) की उपस्थिति और सतह का अतिरिक्त ताप,  कुछ क्षेत्रों में बारिश बढ़ा सकते हैं जबकि अन्य कारक जैसे हवाओं की दिशा और शक्ति, बारिश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर सकते हैं।

नमी की मौजूदगी में भूमि की सतह के गर्म होने से निम्न दबाव वाले क्षे़त्रों का निर्माण होता है, जिनमें बारिश करने की क्षमता होती है। इमारतों की सतहें हवाओं के बहने के लिए घर्षण और प्रतिरोध पैदा करती हैं, जिससे कुछ जगहों पर नमी को कम किया जा सकता है और उसे रोका रखा सकता है। विनोज आगे कहते हैं- ‘ प्रदूषण इस स्थिति में एक एयरोसोल जीवंतता जैसे हालत पैदा करता है, जिससे तूफानी हवाओं के बादल के बनने की संभावना हो सकती है। पर्याप्त समय दिए जाने पर, ऐसे बादल बढ़ सकते हैं और कुछ क्षेत्रों में गरज और भारी बारिश का कारण बन सकते हैं”। ये सारे कारक वातावरण के गर्म होने और स्थानीय अस्थिरताओं से भी प्रभावित होते हैं। बदले में, ये कारक वार्मिंग को भी प्रभावित कर सकते हैं, जो शहरी ताप द्वीप प्रभाव में दिखाई देता है।

विनोज कहते हैं, - ‘इन कारकों के सटीक प्रभाव और एक-दूसरे के साथ उनके सहसंबंधों को चित्रित करने के लिए, विस्तृत शहर-आधारित अध्ययन किए जाने की जरूरत है और हर शहर में अलग तरीके के अध्धयन की जरूरत है।’ वह और आईआईटी भुवनेश्वर में उनके सहयोगी अलग - अलग शहरों जैसे- भुवनेश्वर, बेंगलुरू और देहरादून में अध्ययन कर रहे हैं कि स्थानीय मौसम और क्लाईमेट चेंज, शहरीकरण के प्रभावों के साथ मिलकर किस तरह छोटे- छोटे क्षे़त्रों, जैसे इस मामले में एक शहर के दो इलाकों में दैनिक मौसम और क्लाईमेट पर असर डाल रहे हैं।

विनोज कहते हैं - ‘ क्लाईमेट चेंज और शहरीकरण के प्रभाव एक दूसरे को बढ़ा भी सकते हैं और दबा भी सकते हैं, जिससे मौसम के अलग-अलग रूपों जैसे तापमान के बढ़ने और बारिश की स्थिति पैदा हो सकती है। हालांकि फिलहाल हम ये नहीं जानते कि यह कैसे होता है। यह भारत और दुनिया के लिए अध्ययन का नया सक्रिय क्षेत्र है।’

हालांकि इससे संबंधित कुछ जानकारियां मिली हैं। उदाहरण के लिए भुवनेश्वर के उन इलाकों में शहर के बाकी क्षे़़त्रों की तुलना में ज्यादा बारिश हुई, जिनमें जंगल और पहाड़ियां हैं। उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि भौगोलिक स्थिति में छोटे बदलावों, हरित आवरण और जल निकायों की उपस्थिति से बारिश के स्थानिक वितरण में बड़े बदलाव हो सकते हैं, हालांकि अक्सर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। हमने पाया है और कुछ अन्य अध्ययन भी संकेत देते हैं कि शहरीकरण के कारण बारिश के पुनर्वितरण की संभावना है, खासकर निचले इलाकों में।’ जिस दिशा से किसी शहर या किसी क्षेत्र पर हवा चलती है उसे ‘ऊर्ध्व दिशा’ के रूप में जाना जाता है और जिस दिशा की ओर हवा बहती है उसे ‘ नीचे की   दिशा’ के रूप में जाना जाता है।

जनवरी 2024 में एटमॉस्फेरिक केमिस्ट्री एंड फिजिक्स जर्नल में प्रकाशित कोलकाता पर एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि शहरी भूमि के उपयोग में वृद्धि हुई है और यहां तक कि वातावरण में थर्माेडायनामिक अस्थिरता के कारण तूफान भी आए, जिससे औसत मासिक बारिश में 14.4 फीसदी की वृद्धि हुई। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि तूफान का आगमन शहरी सतह के करीब बहने वाली हवाओं की गड़बड़ी के कारण हुआ, जिससे गतिशील रूप से गतिशील ऊर्जा उत्पन्न हुई।

शहरों को लेकर क्लाईमेट में इस सूक्ष्म स्तर के अध्ययन में कमी की पहली वजह आंकड़ों की कमी है। विनोज के मुताबिक, ‘ हमारे आज के ज्यादातर अध्ययन कम्प्यूटर मॉडल पर हैं। हालांकि वे भी एक निश्चित परिमाण में पर्यवेक्षण पर आधारित आंकडों पर निर्भर होेते हैं। बिना उन आंकड़ों के ये अध्ययन वास्तविक दुनिया की घटनाओं को री-क्रिएट नहीं कर सकेंगे।’ वास्तव में, वर्तमान मॉडलों में भी सबसे बारीक स्तर पर बारिश के स्थानिक वितरण की भविष्यवाणी करने में सक्षम होने के लिए आवश्यक समाधान नहीं हैं। एक शहर में सैटेलाइट पर्यवेक्षण दिन में एक या दो बार किए जाते हैं। ज्यादातर शहरों में मौसम केंद्र भी कम हैं। बारिश और तापमान मापने के लिए दिल्ली में स्वचालित और मानव-संचालित 22 मौसम केंद्र हैं। हालांकि भुवनेश्वर जैसे छोटे शहरों में केंद्रों की संख्या भी कम है। 

विनोज विस्तार से समझाते हैं- हमेें शहर आधारित मौसम रडार की जरूरत है, जो लगातार एक शहर में बारिश और अन्य पैमानों की माप कर सके।  डॉप्लर रडार जैसे मौसम रडार, न्यूनतम पैमाने पर बारिश और हवाओं को माप सकते हैं। ये वर्तमान में तट के किनारे उष्णकटिबंधीय चक्रवातों या पहाड़ों में बादल फटने की निगरानी और ट्रैक करने के लिए तैनात किए गए हैं।