जलवायु

2021 में भारत से लेकर दक्षिण सूडान तक दुनिया भर के देशों को जलवायु परिवर्तन की चुकानी पड़ी भारी कीमत

14 से 19 मई को भारत में आए चक्रवाती तूफान 'तौकते' से जहां 11,243 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था। वहीं 25 से 29 मई को आए तूफान 'यास' से करीब 22,487 करोड़ रुपए की आर्थिक क्षति हुई थी

Lalit Maurya

कहते हैं जब कुदरत अपना रौद्र रूप धारण करती है तब चाहे वो अमीर हो या गरीब कोई उसके कहर से नहीं बच पाता। ऐसे ही कुछ एक बार फिर 2021 में भी देखने को मिला था, जब जलवायु से जुड़ी चरम मौसमी घटनाओं ने भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका से लेकर दक्षिण सूडान, नाइजीरिया, चाड, कैमरून तक को अपना निशाना बनाया था।

इस बारे में हाल ही में अंतराष्ट्रीय संगठन क्रिश्चियन एड ने ‘काउंटिंग द कॉस्ट 2021: ए ईयर ऑफ क्लाइमेट ब्रेकडाउन’ नामक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें 2021 के दौरान आई जलवायु से जुड़ी सबसे विनाशकारी 15 आपदाओं के बारे में जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट में जिन 10 मौसमी आपदाओं को शीर्ष पर रखा गया है वो सभी आपदाएं जलवायु से जुड़ी थी और उन प्रत्येक आपदाओं से होने वाला नुकसान 11,000 करोड़ रुपए (150 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का था।  

रिपोर्ट के मुताबिक यदि 2021 में जलवायु से जुड़ी सबसे महंगी आपदा की बात करें जिससे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था तो वो 28 अगस्त से 02 सितम्बर 2021 के बीच अमेरिका में आया उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान 'इडा' था। इस तूफान में 95 लोगों की जान गई थी जबकि 14,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। वहीं इससे होने वाले कुल आर्थिक नुकसान की बात करें तो वो करीब 487,217 करोड़ रुपए (6,500 करोड़ डॉलर) के बराबर था।

इसी तरह 12 से 18 जुलाई 2020 के बीच आई विनाशकारी बाढ़ के चलते यूरोप में 240 लोगों की जान गई थी। इस आपदा में जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैंडस, बेल्जियम और लक्सम्बर्ग को करीब 3.2 लाख करोड़ रुपए (4,300 करोड़ डॉलर) की आर्थिक क्षति हुई थी।    

इसी तरह फरवरी में टेक्सास में आए शीतकालीन तूफान ने 210 लोगों की जान ली थी जबकि उससे करीब 172,499 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान अमेरिका को उठाना पड़ा था। वहीं चीन के हेनान में 17 से 31 जुलाई के बीच आई बाढ़ ने 302 जिंदगियों को लील लिया था, जबकि इसकी वजह से 10 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। इतना ही नहीं इस बाढ़ से चीन को करीब 131,923 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। 

भारत को भी इन आपदाओं के चलते उठाना पड़ा था भारी नुकसान

रिपोर्ट के मुताबिक 14 से 19 मई के बीच आए चक्रवात तूफान 'तौकते' ने भारत श्रीलंका और मालदीव्स में भारी तबाही मचाई थी, इस तूफान के चलते 198 लोगों की जान गई थी जबकि 2 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे। इतना ही नहीं इस तूफान के चलते दक्षिण एशियाई देशों को करीब 11,243 करोड़ रुपए (1,500 करोड़ डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ा था। गौरतलब है कि यह 1999 के बाद से गुजरात में आया अब तक का सबसे शक्तिशाली तूफान है। 

एक तरफ जहां भारत इस आपदा से पूरी तरफ उबरा भी नहीं था, वहीं तुरंत बाद 25 से 29 मई के बीच एक और उष्णकटिबंधीय चक्रवात 'यास' ने भारत और बांग्लादेश को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। इस तूफान से भी देश को भारी नुकसान हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक चक्रवात 'यास' के चलते दोनों देशों में करीब 19 लोगों की जान गई थी जबकि 12 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। वहीं यदि इससे होने वाले आर्थिक नुकसान की बात करें तो करीब 22,487 करोड़ रुपए (300 करोड़ डॉलर) के आसपास था। पश्चिम बंगाल में इसके कारण 10 हजार से ज्यादा गांवों को नुकसान पहुंचा था। 

रिपोर्ट के मुताबिक इन आपदाओं से होने वाला नुकसान अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है, क्योंकि रिपोर्ट में जो आंकड़े हैं वो उस नुकसान के हैं जिनका बीमा है, जबकि वास्तविकता में हुआ नुकसान उससे कहीं ज्यादा हो सकता है। इसी तरह भले ही दक्षिण सूडान में जुलाई से नवंबर 2021 के बीच जो बाढ़ आई थी उससे कितना नुकसान पहुंचा है उसका सही-सही आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है पर इतना पता है कि उस बाढ़ के चलते 8.5 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था।  इसी तरह 2020-21 के दौरान पूर्वी अफ्रीका में पड़े सूखे में केन्या, इथियोपिया और सोमालिया को नुकसान पहुंचा था। 

इस रिपोर्ट से इतना तो स्पष्ट हो गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर अब खुल कर हमारे सामने आने लगा है। इसके चलते मौसम से जुड़ी आपदाएं कहीं ज्यादा विनाशकारी रूप लेती जा रही हैं। भले ही हम साधनों और तकनीकों की वजह से इनसे साल दर साल होने वाली मौतों को कम करने में सफल रहे हो पर अभी भी यह आपदाएं हमें आर्थिक रूप से भारी नुकसान पहुंचा रही है। वहीं दूसरी तरफ कमजोर देशों में यह बड़े पैमाने पर जान-माल की हानि कर रही हैं। 

ऐसे में यह जरुरी है कि दुनिया भर में बढ़ते उत्सर्जन को जितना जल्द हो सके सीमित किया जाए। जिससे बढ़ते वैश्विक तापमान में लगाम लगाई जा सके। साथ ही विकसित और संपन्न देशों को चाहिए की वो इन आपदाओं से उबरने में कमजोर देशों की मदद करें, क्योंकि यह वो देश हैं जो जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेवार न होते हुए भी उसके विनाशकारी प्रभाव को झेलने के लिए मजबूर हैं। 

1 डॉलर = 74.96 भारतीय रुपए