2020 में लॉकडाउन के दौरान आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में करीब 8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। यह जानकारी अमेरिका और भारत के वैज्ञानिकों द्वारा सम्मिलित रूप से किए एक शोध में सामने आई है। यह शोध अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन की एक मीटिंग में प्रस्तुत किए शोध में सामने आई है।
शोधकर्ताओं के अनुसार लॉकडाउन के दौरान बिजली गिरने की घटनाओं में गिरावट के लिए कहीं हद तक वायु प्रदूषण में आई गिरावट एक वजह थी। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इस शोध से जुड़े के एक मौसम शोधकर्ता याकुन लियू ने इस बारे में जानकारी दी है कि, जब कोविड-19 के चलते दुनियाभर में लॉकडाउन करना पड़ा था तो उसकी वजह से हर जगह प्रदूषण में कमी दर्ज की गई थी।
क्या है इसके पीछे का विज्ञान
उनके अनुसार कम प्रदूषण का मतलब है कम सूक्ष्म कण आकाश को घेर रहे हैं। यह सूक्ष्म कण पानी की बूंदों और बर्फ के क्रिस्टल के लिए न्यूक्लियेशन के बिंदु के रूप में कार्य करते हैं। ऐसे में यदि तूफान पैदा करने वाले बादलों में जितने कम छोटे बर्फ के क्रिस्टल होंगे उतनी उनकी आपस में टकराने की सम्भावना कम होती जाएगी। शोधकर्ताओं का मानना है कि इन क्रिस्टल के आपस में टकराने से थंडरहेडस विद्युत आवेश पैदा करते हैं, जिसकी वजह से बिजली गिरती है।
अपने इस शोध में बिजली गिरने की घटनाओं को मापने के लिए शोधकर्ताओं ने ग्लोबल लाइटनिंग डिटेक्शन नेटवर्क (जीएलडी 360) और वर्ल्ड वाइड लाइटनिंग लोकेशन नेटवर्क (डब्लूडब्लूएलएलएन) द्वारा प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है। वहीं वायु प्रदूषण को दर्शाने वाले एयरोसोल को मापने के लिए उन्होंने प्रदूषण की मात्रा को दर्शाने वाले उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल किया है, जिसे एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ के रूप में मापा जाता है, जो एयरोसोल के प्रकाश को अवशोषित करने और प्रतिबिंबित करने के तरीके पर आधारित है।
मौसम दर मौसम 2018 से 2021 के आंकड़ों की तुलना करने पर शोधकर्ताओं को पता चला है कि दुनिया भर में लॉकडाउन के समय अधिकांश स्थानों पर एयरोसोल और बिजली गिरने की घटनाओं में कमी आई थी। पता चला है कि एयरोसोल प्रदूषण और बिजली गिरने की घटनाएं आमतौर पर एक ही पैटर्न का पालन करती हैं। यही वजह है कि अफ्रीका, यूरोप एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में इनमें गिरावट देखी गई थी जबकि अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में इनमें मामूली वृद्धि दर्ज की गई थी।
2020 के दौरान भारत में भी बिजली गिरने से गई थी 2,862 लोगों की जान
इससे पहले जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक अन्य शोध में भी इस बारे में जानकारी दी गई थी कि कैसे एयरोसोल, बिजली गिरने की घटनाओं को प्रभावित कर सकता है। शोध में दर्शाया गया था कि कैसे 2019-20 के दौरान ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से निकले धुंए ने बिजली गिरने की घटनाओं को प्रभावित किया था। वहां पिछले वर्ष की तुलना में उस दौरान तस्मान सागर के ऊपर बिजली गिरने की घटनाओं में 270 फीसदी का इजाफा हो गया था।
यदि भारत में बिजली गिरने की घटनाओं में मारे गए लोगों की बात करें तो 2020 के दौरान इन घटनाओं में करीब 2,862 लोग मारे गए थे, जबकि 2018 में मरने वालों का आंकड़ा 2,357 था। वहीं 2019 में यह आंकड़ा 2,876 दर्ज किया था। यह जानकारी 01 दिसंबर 2021 को लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में सामने आई है।
लाइटनिंग रेजिलिएंट इंडिया कैंपेन (एलआरआईसी) द्वारा भारत में बिजली गिरने की घटनाओं पर हाल ही में जारी दूसरी वार्षिक रिपोर्ट से पता चला है कि 01 अप्रैल, 2020 और 31 मार्च, 2021 के बीच भारत में बिजली गिरने की 1.85 करोड़ घटनाएं दर्ज की गईं थी, जोकि पिछले साल की तुलना में करीब 34 फीसदी ज्यादा है। गौरतलब है कि 01 अप्रैल, 2019 से 31 मार्च, 2020 के बीच बिजली गिरने की 1.38 करोड़ घटनाएं दर्ज की गई थी।
वहीं हाल ही में जर्नल एटमोस्फियरिक केमिस्ट्री एंड फिजिक्स में प्रकाशित एक प्री-प्रिंट पेपर से पता चला है कि सदी के अंत तक भारत में बिजली गिरने की आवृति में 10 से 25 फीसदी और उसकी तीव्रता में 50 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है। वहीं अनुमान है कि इसका सबसे ज्यादा जोखिम तटीय क्षेत्रों में है।