जलवायु

गर्मी की अधिकता से 8 करोड़ नौकरियों पर खतरा!

आईएलओ की नई रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक तापमान में वृद्धि के चलते जिस तरह गर्मी बढ़ रही है, उससे 2030 में 8 करोड़ नौकरियों के समान उत्पादकता का नुकसान होगा।

Raju Sajwan

वैश्विक तापमान में वृद्धि के चलते जिस तरह गर्मी बढ़ रही है, उससे 2030 में 8 करोड़ नौकरियों के समान उत्पादकता का नुकसान होगा। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। आईएलओ ने यह अनुमान उस आधार पर लगाया है, जिसमें कहा गया है कि इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री बढ़ोत्तरी हो जाएगी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में 1.5 डिग्री वृद्धि से 2030 में दुनिया भर के कुल श्रमिक घंटों में 2.2 फीसदी का नुकसान होगा, जो 2400 बिलियन यूएस डॉलर का आर्थिक नुकसान के समान है।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि यह एक रूढ़िवादी अनुमान है, क्योंकि यह मान जा रहा है कि वैश्विक औसत तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होगी। वर्किंग ऑन ए वॉर्मर प्लानेट: इक्पैक्ट ऑफ हीट स्ट्रेस ऑन लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क शीर्षक से जारी आईएलओ की यह नई रिपोर्ट में जलवायु से वैश्विक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले उत्पादकता और रोजगार के वर्तमान एवं संभावित नुकसान का आकलन किया गया है।

गर्मी का दबाव से आशय है कि शरीर के झेलने की क्षमता कम हो जाए। ऐसी स्थिति तब आती है, जब तापमान 35 डिग्री से अधिक हो जाता है और आद्रर्ता की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है। काम के दौरान अधिक गर्मी होने पर स्वास्थ्य को भी नुकसान होने का खतरा रहता है। खासकर शारीरिक काम करने वाले लोगों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। जिसका असर उत्पादकता पर पड़ता है। इससे अधिक गर्मी होने पर हीटस्ट्रोक का खतरा रहता है, जिससे जान भी जा सकती है।

गर्मी की वजह से जो क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होता है, वह कृषि क्षेत्र है। दुनिया के लगभग 94 करोड़ लोग कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं और अनुमान लगाया गया है कि गर्मी का दबाव बढ़ने से 2030 तक इस क्षेत्र में लगभग 60 फीसदी श्रमिक घंटों (वर्किंग ऑवर्स) का नुकसान हो सकता है। इसके बाद निर्माण (कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र में गर्मी की वजह से काम का नुकसान होता है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया कि इस क्षेत्र में 19 फीसदी श्रमिक घंटों का नुकसान हो सकता है। इसके अलावा जो क्षेत्र प्रभावित होंगे, उनमें आपातकालीन सेवाएं, कचरा संग्रहण, पर्यटन, मरम्मत कार्य, औद्योगिक मजदूरी, परिवहन, खेल आदि क्षेत्र शामिल हैं।

गर्मी का असर सभी देशों में समान नहीं होगा। सबसे अधिक दक्षिण एशिया और पश्चिमी अफ्रीका के देशों पर इसका असर दिखाई ताग। इन क्षेत्रों में क्रमश: 4.3 करोड़ और 90 लाख नौकरियों के समान काम के घंटों का नुकसान होने के आसार हैं। गर्मी की अधिकता का सबसे अधिक गरीब देशों में होगा और उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना होगा।

आईएलओ रिसर्च विभाग के मुखिया कैथरीन सगेट ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से श्रमिकों की उत्पादकता प्रभावित होना एक गंभीर मसला है। इस तरह, कार्य करने की परिस्थितियां बिगड़ती हैं तो इससे उच्च आय वर्ग वाले देशों और कम आय वाले देशों में असमानता और गहराने की संभावना बढ़ सकती है। गर्मी के दबाव से करोड़ों महिलाओं पर बुरा असर पड़ रहा है, जो सबसे अधिक कृषि कार्य से जुड़ी थी, जबकि निर्माण उद्योग में पुरुषों की संख्या अधिक है। इससे अच्छे भविष्य के लिए गांवों से पलायन के मामले भी बढ़ सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यस्थलों पर ऐसे इंतजाम किए जाने की जरूरत है, ताकि श्रमिक उच्च तापमान में भी काम कर सके। जैसे कि गर्मी से बचने के लिए कार्यस्थल पर पीने के पानी का पर्याप्त इंतजाम होना चाहिए। गर्मी से बचने के इंतजाम होने चाहिए और श्रमिकों को गर्मी से बचाव का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए। नियोक्ता और श्रमिकों के बीच बातचीत होने चाहिए, जिसमें कामकाज के तरीकों में सुधार, बदलाव, काम के घंटों में बदलाव, नई तकनीक या उपकरणों का उपयोग, आराम का समय, छाया आदि के इंतजाम पर विचार विमर्श होना चाहिए।