जलवायु

आईपीसीसी रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन न थमा तो गंभीर परिणाम झेलेंगे आज पैदा हुए बच्चे

जो बच्चे 2020 में पैदा हुए हैं वो 2040 में 20 साल के होंगे, जबकि सदी के अंत तक उनकी उम्र 80 वर्ष होगी ऐसे में जलवायु परिवर्तन का यह खतरा ने केवल हमारे भविष्य बल्कि वर्तमान पर भी मंडरा रहा है

Lalit Maurya

भले ही जलवायु परिवर्तन को लेकर 2050 और सदी के अंत तक के लिए जारी अनुमान हमें दूर के बात लगें, पर देखा जाए तो यदि हमने इसपर आज ध्यान न दिया तो भविष्य में हमारी माजूदा नस्लें इस आने वाले विनाशकारी खतरों को झेलने के लिए मजबूर होंगी। यह चेतावनी जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा आज जारी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट “क्लाइमेट चेंज 2022: इम्पैटस, अडॉप्टेशन एंड वल्नेरेबिलिटी” में दी गई है। 

समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यदि तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो दुनिया में करीब 300 करोड़ लोग पानी की गंभीर समस्या से त्रस्त होंगी जबकि 4 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग पर यह आंकड़ा बढ़कर 400 करोड़ के पार चला जाएगा।

सूखे और पानी की यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप आज से ही लगा सकते हैं जब दुनिया के कई प्रमुख शहर और देश इस समस्या से निजात पाने का हल ढूंढ रहें हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। 

रिपोर्ट का अनुमान है कि दक्षिण अमेरिका जैसे महाद्वीप इससे गंभीर रूप से त्रस्त होंगें। जहां ऐसे दिनों की संख्या कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी जब लोगों को पानी की कटौती और उसकी कमी का सामना करना पड़ेगा। विशेष रूप से भारत जैसे उन देशों के लिए यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर होगी जहां एक बड़ी आबादी अपनी जल सम्बन्धी जरूरतों के लिए ग्लेशियरों पर निर्भर हैं।

बढ़ते तापमान के चलते इन ग्लेशियरों के पिघलने की दर पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा तेज होती जा रही है जिससे यह ग्लेशियर दिन प्रतिदिन सिकुड़ते जा रहे हैं, जिसका नतीजा पानी की उपलब्धता में आती कमी के रूप में सामने आ रहा है। वहीं दूसरी तरफ मध्य अमेरिका सहित अनेक क्षेत्र विनाशकारी तूफानों, भारी बारिश और बाढ़ का सामना करने को मजबूर हो जाएंगे। 

तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के चलते कृषि के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी 8 फीसदी भूमि

जलवायु में आते इन बदलावों का सीधा असर कृषि और खाद्य उत्पादन पर भी पड़ेगा। अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते भारत सहित अफ्रीका के अनेक देशों में खाद्य उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि कुछ उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिले हैं लेकिन वो घटती उत्पादकता की भरपाई नहीं कर सकते।

रिपोर्ट का अनुमान है कि यदि सदी के अंत तक तापमान में होती वृद्धि 1.6 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहती है तो भी करीब 8 फीसदी कृषि भूमि खाद्य उत्पादन के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी। साथ ही इसका असर पशुधन पर भी पड़ेगा। 

 ऐसा ही कुछ असर मत्स्य उत्पादन पर भी पड़ेगा, जोकि दुनिया के कई देशों में पोषण और आय का प्रमुख स्रोत है। अनुमान है कि इन्हीं परिस्थितियों में अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थानीय मछलियों में आती गिरावट के चलते सदी के अंत तक समुद्री मतस्य उत्पादन 41 फीसदी तक घट सकता है।

देखा जाए तो मछलियां अफ्रीका में रहने वाले करीब एक-तिहाई लोगों के प्रोटीन का प्रमुख स्रोत हैं। साथ ही यह 1.23 करोड़ लोगों की जीविका का भी प्रमुख स्रोत हैं। ऐसे में यदि बढ़ते तापमान के चलते इनके उत्पादन में गिरावट आती है तो आज के मुकाबले कहीं ज्यादा लोग अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में कुपोषण का शिकार होंगे। 

रिपोर्ट की मानें तो भविष्य में कितने ज्यादा लोग भुखमरी का शिकार होंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इस खतरे का सामना किस तरह करते हैं और इससे निपटने के लिए किस तरह की नीतियां बनाते हैं। अनुमान है कि 2050 में भुखमरी का शिकार हुए लोगों की संख्या 80 लाख से 8 करोड़ के बीच हो सकती है। 

पर यह आंकड़ा क्या होगा यह हमारी नीतियों पर निर्भर करता है। भुखमरी का सबसे ज्यादा असर अफ्रीका, दक्षिण एशिया और मध्य अमेरिका पर पड़ेगा। इस बारे में अनुमान है कि 2050 तक जलवायु परिवर्तन के चलते कमजोर देशों में अतिरिक्त 18.3 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार होंगें। 

रिपोर्ट के मुताबिक जो बच्चे 2020 में पैदा हुए हैं वो 2040 में 20 वर्ष के होंगे, जबकि सदी के अंत तक उनकी उम्र 80 वर्ष होगी ऐसे में यह खतरा ने केवल हमारे भविष्य बल्कि वर्तमान पर भी मंडरा रहा है। ऐसे में ग्रीनहाउस गैसों में की गई कटौती और जलवायु अनुकूल कदम उनके जीवन और उनके बच्चों के जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेंगें। यह स्वास्थ्य, कल्याण और सुरक्षा पर गहरा प्रभाव डालेंगें।

हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि 2050 तक दुनिया की करीब 70 फीसदी आबादी शहरों में रह रही होगी, जिनमें से कई अनियोजित बस्तियों में रहने को मजबूर होंगें। जिसके चलते हमारा वर्तमान और आने वाली पीढ़ियां जलवायु परिवर्तन के चलते बाढ़, गर्मी, पानी की कमी, गरीबी, भूख जैसे खतरों की जद में होगी।  

ऐसे में यह जरुरी है कि हम जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को समझें, क्योंकि यहां सवाल हमारी मौजूदा नस्लों के साथ-साथ आने वाले पीढ़ियों का भी है। उनका भविष्य हमारे आज के फैसलों पर निर्भर करेगा। यह हम पर है कि हम अपने बच्चों के लिए कैसा भविष्य चुनते हैं।