जलवायु परिवर्तन के खिलाफ नई दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करते बच्चे। फाइल फोटो: विकास चौधरी  
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जलवायु परिवर्तन के बारे में कैसे बदलें जनमानस की सोच !

Anil Ashwani Sharma

जलवायु परिवर्तन के बारे में लोगों के विचार कैसे बदलें? देखा जाए तो इस विषय पर विज्ञान ने कई स्तरों पर अपनी बातें कही है। अब तक हुए अध्ययन में पाया गया है कि इस संबंध में वैज्ञानिकों के बीच की “आम सहमति” लोगों को अधिक विश्वसनीय लग सकती है, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि आमजन मानस से व्यक्तिगत बातचीत भी जरूरी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के बारे में लोगों के विचार बदलने के मामले में आप जलवायु संबंधी सूचनाएं कैसे देते हैं, यह अधिक मायने रखता है।

लोगों को यह बताना कि वैज्ञानिक लगभग सर्वसम्मति से इस बात पर सहमत हैं कि मानव के कारण ही जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उनकी सोच को उस दिशा में ले जाने में मदद कर सकता है। पिछले महीने नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकाशित एक अध्ययन ने 27 देशों में इस “आम सहमति वाले संदेश” का कई स्तरों पर परीक्षण किया गया और पाया कि जलवायु विज्ञान के प्रति संदेह रखने वाले लोगों के सामने इसे पेश किए जाने पर उनमें अपना दृष्टिकोण बदलने की संभावना सबसे अधिक दिखी।

नेचर से बात करने वाले जलवायु-संचार शोधकर्ताओं का कहना है कि ये निष्कर्ष सामाजिक विज्ञान के बढ़ते हुए बड़े समूहों में शामिल हैं, जो लोगों को इस अवधारणा को समझने में मदद करने के लिए सर्वोत्तम रणनीतियों की पहचान करते हैं कि जलवायु परिवर्तन वास्तविक है, लेकिन आम सहमति संदेश हमेशा दृष्टिकोण में स्थायी बदलाव नहीं लाते हैं।

न्यू हावेन में जलवायु परिवर्तन संचार पर येल कार्यक्रम के निदेशक एंथनी लीसेरोविट्ज सुझाव देते हैं कि स्थायी बदलाव के लिए, संदेश को व्यक्तिगत रूप से प्रासंगिक होना जरूरी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जलवायु परिवर्तन उन लोगों, स्थानों और चीजों को प्रभावित कर रहा है, जिन्हें हम अभी प्यार करते हैं।

कई अध्ययनों में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक सहमति के बारे में लोगों को सूचित करने से उनका दृष्टिकोण बदला जा सकता है। एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक बोजाना वेक्कालोव और उनके सहकर्मी यह देखना चाहते थे कि क्या यह संदेश क्रॉस-कल्चरल रूप से काम करता है। यहां पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के बारे में झूठे बयान लोगों को परेशान करते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया और ई-मेल न्यूज लेटर्स के माध्यम से एक ऑनलाइन सर्वेक्षण साझा किया। इसमें शामिल 27 देशों के 10,527 लोगों की प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया गया। उत्तरदाताओं ने जलवायु वैज्ञानिकों की सहमति का अनुमान लगाया जो उन्हें लगता है कि मानव के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहा है। शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को कई तथ्य दिखाए, जिसमें यह भी शामिल था कि 97 प्रतिशत जलवायु वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि मानव के कारण जलवायु परिवर्तन वास्तविक है।

समाजशास्त्री और मेलबर्न में गैर-लाभकारी संगठन क्लाइमेट कम्युनिकेशंस ऑस्ट्रेलिया के मुख्य कार्यकारी डेविड होम्स कहते हैं कि देखा जाए तो इस अध्ययन ने पिछले अध्ययनों की पुष्टि की है जो यह दर्शाता है कि सर्वसम्मति संदेश वैश्विक स्तर पर भी काम करता है। हालांकि, वह चाहते हैं कि टीम विभिन्न देशों के स्तर पर उनके रुझानों को समझा सकती थी कि विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणों का परिणाम पर प्रभाव पड़ा है या नहीं। वह कहते हैं कि इस अध्ययन ने यह भी परीक्षण नहीं किया कि परिवर्तन स्थायी था या नहीं।

हालांकि, इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि जलवायु-संचार रणनीतियां अधिक परिष्कृत हो गई हैं क्योंकि शोधकर्ताओं ने सीख लिया है कि क्या काम करता है। स्थिति की गंभीरता को समझाने के लिए पिघलती बर्फ की चादर से चिपके हुए ध्रुवीय भालू को दिखाने के दिन अब लद गए हैं। लीसेरोविट्ज कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बात करना महत्वपूर्ण है, अब ध्रुवीय भालू के मुद्दे के रूप में नहीं, बल्कि लोगों के मुद्दे के रूप में बात करना जरूरी है।

पर्यावरण संबंधी चिंता के बढ़ने से वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का भी एहसास हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शोध का एक उभरता हुआ क्षेत्र जो आशाजनक है, वह है व्यक्तिगत बातचीत के आधार निष्कर्ष निकालना। येल विश्वविद्यालय में जलवायु-संचार शोधकर्ता मैथ्यू गोल्डबर्ग कहते हैं कि अपने दर्शकों की रुचि वाली चीजों से बातचीत की शुरुआत करें, जैसे कि महंगाई, देश की राष्ट्रीय सुरक्षा या मछली पकड़ना आदि। वह कहते हैं कि लगभग हर चीज में जलवायु-परिवर्तन का पहलू जुड़ा होता है। मोंटाना बर्गेस (कनाडा) के कैसलगर में एक गैर-लाभकारी संगठन ने कनाडा के एक ग्रामीण शहर में लोगों को अक्षय-ऊर्जा नीति का समर्थन करने के लिए एक अभियान चलाने में सफलता प्राप्त करने के बाद एक जलवायु-संवाद टूलकिट बनाया। गोल्डबर्ग कहती हैं कि अगला कदम ध्यान से सुनना और किसी व्यक्ति के अनुभव और स्थानीय जलवायु जानकारी के बीच के “बिंदुओं को जोड़ना” है। यह रणनीति एक ऐतिहासिक अध्ययन पर आधारित है, जिसमें प्रचारक मियामी, फ्लोरिडा में घर-घर गए और मतदाताओं के साथ दस मिनट की बातचीत की। इसका उद्देश्य ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति पूर्वाग्रह को कम करना था। अपने विचार साझा करने के बाद मतदाताओं से उस समय के बारे में बात करने के लिए कहा गया, जब उन्हें दूसरों से अलग होने के कारण अदालत का सामना करना पड़ा था। बातचीत ने गैर-भेदभाव कानून के लिए समर्थन बढ़ाया और तीन महीने बाद जब प्रतिभागियों का फिर से सर्वेक्षण किया गया तो यह सामाजिक स्वीकृति बनी रही।

जलवायु परिवर्तन के साथ विशेष रूप से इस रणनीति का उपयोग करने के लिए अभी भी व्यवस्थित रूप से परीक्षण किया जा रहा है। लीसेरोविट्ज का एक व्यक्तिगत अनुभव है, जिसमें वे सुझाव देते हैं कि यह रणनीति अवश्य काम करेगी। उनके परिवार के एक सदस्य जलवायु परिवर्तन से हमेशा से इनकार करते आए थे। वह कहते हैं, "उनका मन बदलने के लिए मुझे धीरे-धीरे, सावधानी से, प्रेमपूर्वक उनसे बातचीत करके उन्हें बदलने में लगभग 20 साल लग गए।"