क्या आपने कभी सोचा है कि जिस जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में हम इंसान भी संघर्ष कर रहे हैं। वो कीटों की दुनिया को कैसे प्रभावित करता है और उन नाजुक जीवों के पास ऐसा क्या है जो इन बदलावों का सामना करने में इन जीवों की मदद कर रहा है। इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल द्वारा चीटियों पर एक नया अध्ययन किया गया है जिस में जलवायु परिवर्तन और चीटियों के संघर्ष को उजागर किया है।
धरती पर पाए जाने वाले अनोखे जीवों में चीटियां भी एक हैं। जो अपने गजब की मेहनत, आपसी सहयोग के लिए जानी जाती हैं। इंसानों की तरह ही चीटियां भी एक सामाजिक जीव हैं। जो अपना भोजन जमा करती हैं। देखा जाए तो चीटियों की उत्पत्ति आज से करीब 16.8 करोड़ वर्ष पहले क्रिटेशियस युग में हुई थी।
यदि मौजूद आंकड़ों को देखें तो दुनिया में चीटियों की 17,000 से ज्यादा प्रजातियां ज्ञात हैं। जो अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग सभी महाद्वीपों पर पाई जाती हैं। यदि इनकी संख्या और बायोमास को देखें तो वो भी अच्छा-खासा है। छोटा सा यह जीव इकोसिस्टम के लिए भी बहुत मायने रखता है।
यह कीटों को नियंत्रित रखने, बीजों के फैलाव और मिट्टी को उपजाऊ बनाने में मदद करती हैं। हालांकि इसके बावजूद बदलता तापमान और जलवायु इन जीवों को कैसे प्रभावित कर रहा है इस बारे में हमारे पास बहुत सीमित जानकारी उपलब्ध है।
जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित इस शोध में वैज्ञानिकों ने तापमान में आते बदलाव के प्रति चीटियों की प्रतिक्रिया को समझने का प्रयास किया है जिसके लिए उन्होंने अन्य शोधों और उपलब्ध जानकारी की समीक्षा की है।
उनके अनुसार चींटियां एक सामाजिक कीट है जो मिलकर कॉलोनियों में रहती हैं, जो छोटी या बड़ी हो सकती हैं। साथ ही इनकी जटिल संरचना और प्रबंधन कमाल का होता है। इनमें कुछ श्रमिक चींटियां होती हैं जो भोजन एकत्र करती हैं और बहुत छोटी आबादी जो प्रजनन करती हैं उनकी मदद करती हैं।
बढ़ते तापमान से कैसे सुरक्षित रखता हैं इनका सामाजिक व्यवहार
शोध से पता चला है कि चीटियों की यह सामाजिक संरचना उन्हें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनने और बदलावों को सहने के काबिल बनाती है। जबकि इसके विपरीत अकेले रहने वाले जीव ऐसा नहीं कर सकते।
यह भी पता चला है कि उष्णकटिबंधीय और ऐसे क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियों जहां तापमान बहुत ज्यादा ऊपर नीचे होता है वहां बढ़ता तापमान कहीं ज्यादा असर डाल सकता है| वहीं इसके विपरीत चींटियों की समशीतोष्ण क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियां जो भूमि में अपना घर बनाती हैं, और अपने अंडों को सेने के लिए गहराई में रखती है, जहां तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता है, ऐसी में वो बढ़ते तापमान का कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से मुकाबले कर पाती हैं। इस तरह उनकी आने वाली पीढ़ियां कहीं ज्यादा सुरक्षित रहती हैं और उन्हें बढ़ते तापमान से फायदा भी हो सकता है।
शोध में उन हॉटस्पॉट को पहचानने का प्रयास किया गया है जो जलवायु परिवर्तन के चलते चींटियों के लिए बेहतर और नुकसान देह हो सकते हैं। हालांकि इसके बावजूद कार्बन डाइऑक्साइड, बारिश जैसे कारक इन जीवों को कैसे प्रभावित करते हैं और पूरे इकोसिस्टम पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है इसे समझने के लिए अभी और शोध करने की जरुरत है।
लेकिन इतना स्पष्ट है कि इन चीटियों का सामाजिक व्यवहार इन्हें जलवायु परिवर्तन का सामना करने और उसके अनुकूल बनने में मदद करता है। जैसा की एकांत रहने वाले जीवों के मामले में नहीं होता है।
इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल में इकोलॉजिस्ट और शोध की प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर केट पार का कहना है कि जलवायु परिवर्तन इन चींटियों की आबादी को कैसे प्रभावित करता है और पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका कितना व्यापक प्रभाव होगा यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसे समझने में हमारा शोध मददगार हो सकता है।
चींटियां लगभग सभी पारिस्थितिक तंत्रों के प्रमुख कीटों में से एक हैं जो कई पारिस्थितिक तंत्र सम्बन्धी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, ऐसे में उनकी आबादी में आया कोई भी बदलाव या उनकी कुछ प्रजातियों को होने वाला नुकसान पारिस्थितिकी तंत्र पर व्यापक असर डाल सकता है।