जलवायु

पालतू जानवरों के भोजन से कितना पड़ रहा है पर्यावरण पर दबाव, वैज्ञानिकों ने की जांच

हर साल 4.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि का उपयोग पालतू जानवरों जैसे कुत्ते और बिल्लियों का पेट भरने के लिए किया जा रहा है

Lalit Maurya

पालतू जानवरों के फ़ूड प्रोडक्शन से पर्यावरण पर कितना दबाव पड़ रहा है, वैज्ञानिकों ने उसकी जांच की है। शोधकर्ताओं का अनुमान है की हर साल पालतू जानवरों जैसे कुत्ते और बिल्लियों के सूखे भोजन के लिए 4.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि का उपयोग किया जा रहा है। यदि इस कृषि भूमि के विस्तार को समझें तो यह जमीन ब्रिटेन के आकार से लगभग दोगुनी है। इस जमीन से उतना भोजन उत्पन्न होता है जोकि इन जानवरों के लिए जरुरी खाद्य पदार्थ की बिक्री का करीब 95 फीसदी होता है।

इसके साथ ही शोध में इस उद्योग से होने वाले कार्बन उत्सर्जन का भी पता लगाने का प्रयास किया गया है। अनुमान है कि पालतू जानवरों से जुड़े खाद्य उद्योग से जितना उत्सर्जन हो रहा है, वो मोज़ाम्बिक और फिलीपींस जैसे देशों द्वारा उत्सर्जित की जा रही ग्रीनहाउस गैसों से भी ज्यादा है।

दुनिया भर में जैसे-जैसे जानवरों को पालतू बनाने का शौक बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे इन जानवरों का पेट भरने के लिए उनसे जुड़ा खाद्य उद्योग भी फलता-फूलता जा रहा है। ऐसे में यह उद्योग पर्यावरण के दृष्टिकोण से कितना सस्टेनेबल है, उसका विश्लेषण भी जरुरी हो जाता है। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने अमेरिका और यूरोप में उपलब्ध पालतू जानवरों के 280 से भी ज्यादा खाद्य पदार्थों और उसमें मौजूद घटकों का विश्लेषण किया है। गौरतलब है कि अमेरिका और यूरोप दुनिया भर में बिकने वाले जानवरों के खाद्य पदार्थों के दो-तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।   

पता चला है कि करीब आधे शुष्क खाद्य पदार्थों के निर्माण के लिए फसलों का उपयोग किया जाता है, जिसमें मक्का, चावल और गेहूं प्रमुख हैं। जबकि बाकी के निर्माण के लिए मांस और मछली का उपयोग किया जा रहा है।

हर साल 10.6 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कर रहा है यह उद्योग

इस उद्योग से होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की बात करें तो इससे हर साल करीब 10.6 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है। हालांकि इसके बावजूद शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव अनुमान से कहीं ज्यादा है, क्योंकि इस शोध में पालतू जानवरों के सिर्फ शुष्क खाद्य उत्पादों को ही सम्मिलित किया गया है।

इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता पीटर अलेक्जेंडर के अनुसार पालतू जानवरों के खाद्य उत्पादों से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को वर्षों से नजरअंदाज कर दिया जाता था, लेकिन यह सही है कि इसका पर्यावरण और जलवायु पर व्यापक असर पड़ रहा है। यही वजह है कि इस उद्योग का विश्लेषण भी जरुरी हो जाता है। इस शोध में यही जानने का प्रयास किया गया है कि किस तरह जलवायु और जैव विविधता को हो रहे नुकसान को सीमित करते हुए पालतू जानवरों का पेट भरा जा सकता है।