पहले सितंबर और फिर उसके बाद अक्टूबर में देश में भारी बारिश हुई है। खासकर दो राज्यों, उत्तराखंड और केरल में बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन के चलते सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और यहां 80 से ज्यादा लोगों की जानें गईं।
इस बारिश का सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि यह ऐसे समय में हुई, जब दक्षिण- पश्चिमी मानसून लौटने की तैयारी में है, जबकि उत्तर-पूर्वी मानसून शुरू हो पाया है।
इन्हीं दो मानसूनों की वजह से देश में बारिश होती है। कहर ढाने वाली यह बारिश इन मानसूनों की बजाय भारतीय महाद्वीप में दूसरे कई मौसमी प्रणालियों के आपसी टकराव की वजह से हुई है।
इसके पीछे जो सबसे महत्वपूर्ण वजह मानी जा रही है-वह है वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन, जिसने स्थानीय मौसमों के साथ मिलकर तबाही मचाई। विनाशकारी बरसात ने यह भी दिखा दिया कि चाहे शहरी हो या ग्रामीण पर्यावरण, दोनों मिलकर भी इस स्थिति में नहीं है कि इस तरह की भारी बारिश के साथ सामंजस्य बिठा सकें।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, 1 अक्टूबर से 21 अक्टूबर तक, 22 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में छह में ज्यादा (एक्सेस) और 16 में बहुत ज्यादा (लार्ज एक्सेस) बारिश हुई है। ज्यादा बारिश तब होती है जब किसी क्षेत्र में सामान्य से 20 प्रतिशत से 59 प्रतिशत ज्यादा बारिश होती है। बहुत ज्यादा बारिश तब होती है जब किसी क्षेत्र में सामान्य से 60 प्रतिशत ज्यादा बारिश होती है।
उत्तर-पूर्व भारत को छोड़कर, जो एक लंबे शुष्क दौर से गुजर रहा है, बाकी पूरे देश के 59 प्रतिशत जिलों में 21 अक्टूबर तक ज्यादा या बहुत ज्यादा बारिश हुई है। 21 अक्टूबर के दिन देश में कुल अतिरिक्त बारिश 41 प्रतिशत थी। यह आंकड़ा 7 अक्टूबर को 23 प्रतिशत और 18 अक्टूबर को 25 प्रतिशत था। 19 अक्टूबर को कुल बारिश 36 प्रतिशत तक बढ़ गई थी।
उत्तराखंड में बारिश के अवलोकन से पता चलता है कि किस तरह इसने राज्य में सर्वकालिक बारिश के रिकॉर्ड तोड़ डाले, जिसकी परिणति बाढ़ के रूप में हुई। एक अक्टूबर से 21 अक्टूबर के बीच पूरे राज्य में इस अवधि के लिए सामान्य से 6 गुना बारिश हुई। 18 अक्टूबर को राज्य में सामान्य से 14 गुना बारिश हुई। राज्य के जिलों में चंपावत में सबसे अधिक 115.6 मिमी बारिश हुई, जो उस दिन की सामान्य बारिश का 21 गुना थी।
उसके बाद 19 अक्टूबर को बारिश और बाढ़ कई गुना बढ़ गई। उस दिन राज्य में आमतौर पर होने वाली बारिश से सौ गुने से भी ज्यादा बारिश हुई। आमतौर पर यहां 1.1 मिमी बारिश होती है लेकिन उस दिन 122.4 मिमी बारिश हुई। यहां के 13 जिलों में तो बारिश का पैमाना 125 मिमी तक पहुंच गया। सबसे ज्यादा मौते और नुकसान का सामना करने वाले नैनीताल जिले में तो रिकार्ड लगभग 280 मिमी बारिश हुई, जो औसतन होने वाली 1.1 मिमी बारिश से लगभग 250 गुना ज्यादा थी।
केरल में बाढ़ की शुरुआत 15 अक्टूबर को हुई, हालांकि राज्य में इस महीने की शुरुआत से ही बारिश हो रही है। 7 अक्टूबर तक केरल में 55 प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी। 18 अक्टूबर तक यह आंकड़ा बढ़कर 142 प्रतिशत हो गया था। 21 अक्टूबर तक यह आंकड़ा घटकर 128 प्रतिशत पर आ गया, लेकिन तब तक राज्य में मानसून के बाद होने वाली 90 प्रतिशत बारिश हो चुकी थी।
यह बारिश मुख्यतः उत्तर पूर्व मानसून के चलते होनी है, जो 26 अक्टूबर से ही शुरू होने जा रहा है। मौसम विभाग द्वारा अगले कुछ दिनों में और बारिश की भविष्यवाणी के कारण केरल अभी भी बाढ़ और भूस्खलन के लिए हाई अलर्ट पर है। यहां राज्य सरकार द्वारा पहली बार कई भूस्खलन संभावित क्षेत्रों को खाली कराया गया है।
देश के अलग- अलग हिस्सों में असामान्य समय पर हुईं ये बारिश देश और उसके पड़ोसी देशों में अनश्चित मौसमी प्रणालियों का नतीजा है।
16 अक्टूबर को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर और उससे सटे केरल तट पर एक कम दबाव का क्षेत्र (लो प्रेशर एरिया) है। इसके साथ ही तटीय आंध्र प्रदेश पर एक कम दबाव का क्षेत्र भी है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ेगा और अफगानिस्तान पर एक पश्चिमी विक्षोभ बनाएगा।
उसने पूर्वानुमान लगाया था कि अरब सागर पर कम दबाव का क्षेत्र केरल और दक्षिणी प्रायद्वीप में बारिश लेकर आएगा। केरल में आई ताजा बाढ़ और भूस्खलन इसी वजह से हुआ।
मौसम विज्ञान विभाग ने यह भी अनुमान लगाया था कि तटीय आंध्र प्रदेश पर एक कम दबाव का क्षेत्र और अफगानिस्तान पर पश्चिमी विक्षोभ एक दूसरे से टकराएंगे तो उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भारत में बारिश होगी। इस परस्पर टकराव से ही उत्तराखंड में तेज बारिश और बाढ़ आई।
इसी तरह की मौसम प्रणालियों के टकरावों के चलते यह राज्य पहले भी तबाही का शिकार बना है। 2013 में उत्तराखंड में बादल फटना और अचानक बाढ़ आना, ऐसे ही टकरावों की वजह से हुआ था, जिसमें 5000 से अधिक लोग मारे गए और हजारों करोड़ के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा था। जिस तरह से दुनिया गर्म हो रही है, भविष्य में इस तरह की घटनाएं और बढ़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
स्थानीय स्तर पर तापमान का बढ़ना भी राज्य में तबाही की एक वजह हो सकता है। उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार 50 वर्षीय महिपाल नेगी ने डाउन टू अर्थ को बताया - ‘ताजा बाढ़ से एक सप्ताह पहले मैंने नई टिहरी में तापमान में बढ़ोत्तरी महसूस की और इस बारे में अल्मोड़ा और नैनीताल में अपने दोस्तों से बात की थी। दोस्तों ने बताया कि उन्होंने भी अपने-अपने जिलों में ऐसा ही महसूस किया है। उस सप्ताह तापमान 32-33 डिग्री सेल्सियस था, जो आमतौर पर यहां मई-जून में होता है। हालांकि रात का तापमान सामान्य ही था, जो 15 डिग्री सेल्सियस के करीब रहता है।’
नेगी कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में अक्टूबर महीने में इस तरह का बढ़ा तापमान और उसमें उतार-चढ़ाव पहले कभी नहीं देखा। ऐसी गर्मी का अनुभव करने वाला उत्तराखंड अकेला राज्य नहीं था। इसी दौरान उत्तर-पूर्व भारत ने अक्टूबर के सबसे गर्म महीनों में से एक देखा है। 16 अक्टूबर तक के दिनों में कई उत्तर-पूर्व भारतीय शहरों में तापमान सामान्य से 4-5 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। 16 अक्टूबर को ईटानगर में तापमान 37.8 डिग्री सेल्सियस था।
इसके अलावा, इसमें वैश्विक जलवायु कारकों की भी एक भूमिका थी। मैरीलैंड विश्वविद्यालय में जलवायु वैज्ञानिक रघु मुतुर्गुडडे के मुताबिक, ‘यह चीजों का मारक संयोजन है। सितंबर के दौरान पश्चिमी यूरोप से यूरेशिया में एक बहुत ही ठंडी तापमानी विसंगति फैल गई, जो नम पश्चिमी विक्षोभ को स्पंदित कर रही थी, क्योंकि भूमध्यसागर बहुत गर्म था।’,
इसके अलावा गर्म आर्कटिक और समुद्री बर्फ के रिकॉर्ड नुकसान ने सितंबर के चरम को जन्म दिया, जिसने ग्रीष्मकालीन मानसून परिसंचरण (दक्षिण पश्चिम मानसून) को बनाए रखा, लेकिन परिसंचरण के कमजोर होने और पूर्वी लहरों की शुरुआत ने नमी को बंगाल की खाड़ी से भी स्पंदित करने का मौका दिया।’
उनके मुताबिक, ‘पूर्वी लहरें, उत्तर- पूर्वी मानसून की शुरुआत से जुड़ी हैं। ऐसी ही एक पूर्वी लहर के अगले कुछ दिनों में केरल में बारिश लाने की उम्मीद है, जिसके चलते मौसम विभाग ने राज्य के लिए अलर्ट भी जारी किया है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की कमजोर वापसी और उत्तर-पूर्व मॉनसून की कमजोर और देर से शुरुआत के कारण कम दबाव वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक नमी होती है और बहुत अधिक वर्षा होती है।’
वह आगे कहते हैं, ‘लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि भूमि-उपयोग में परिवर्तन (लैंड यूज चेंज) और पश्चिमी घाट (केरल के मामले में पश्चिमी और उत्तराखंड के मामले में हिमालय) हमेशा भारी बारिश को अचानक बाढ़ और भूस्खलन में बदलने में सक्षम हैं। प्रकृति हमें बारिश देती है और हम बाढ़ पैदा करते हैं।’