जलवायु

वैश्विक औसत से अधिक तेजी से पिघल रहा है हिंदु कुश हिमालय

वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के बाद भी यह क्षेत्र इस सदी अधिक तेजी से गर्म होगा

Richard Mahapatra

हिंदु कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र भारत, नेपाल और चीन सहित कुल आठ देशों में 3,500 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है। यह क्षेत्र वैश्विक औसत के मुकाबले अधिक तेजी से गर्म हो रहा है। वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के बाद भी यह इस सदी में गर्म होता रहेगा। यह चेतावनी हिंदु कुश हिमालय आकलन रिपोर्ट में जारी की गई है। 4 फरवरी 2019 को इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) ने यह रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट को 300 से अधिक शोधकर्ताओं ने तैयार किया है। चार साल की मेहनत के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, भविष्य में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के बाद भी हिंदु कुश क्षेत्र कम से कम 0.3 डिग्री सेल्सियस गर्म रहेगा जबकि उत्तर पश्चिम हिमालय और कराकोरम कम से कम 0.7 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होगा।

यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित है। हिंदु कुश देशों में प्रति व्यक्ति कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन वैश्विक औसत का छठा हिस्सा है। फिर भी क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन की मार पड़ रही है।

हिंदु कुश क्षेत्र को तीसरा पोल माना जाता है क्योंकि उत्तरी और दक्षिणी पोल के बाद यहां सर्वाधिक बर्फ होती है। यहां करीब 24 करोड़ लोग निवास करते हैं। यहीं से 10 नदी बेसिन की उत्पत्ति होती है जिनमें गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेकॉन्ग शामिल हैं। करीब 150 करोड़ लोगों का अस्तित्व इन नदी बेसिन से जुड़ा है।

यह इलाका आमतौर पर अत्यधिक ठंड के लिए जाना जाता है लेकिन अब इसमें बदलाव के लक्षण दिखाई देने लगे हैं।

पिछले 60 सालों में अत्यधिक ठंड के मौके कम होते जा रहे हैं जबकि गर्मी के मौके बढ़ते जा रहे हैं। न्यूनतम और अधिकतम तापमान में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। यह उत्तर की ओर बढ़ रहा है जो समग्र गर्मी का संकेत है।

हर दशक में हिंदु कुश में एक ठंडी रात आधा ठंडा दिन कम हो रहा है। जहां हर दशक में 1.7 गर्म रातें बढ़ रही हैं, वहीं 1.2 गर्म दिन हर दशक में बढ़ रहे हैं।

चिंताजनक तथ्य यह भी है कि इस हिमालय क्षेत्र में सतह के तापमान (1976-2005 के मुकाबले) में परिवर्तन वैश्विक औसत से अधिक है। यहां तक की दक्षिण एशियाई क्षेत्र से भी अधिक। रिपोर्ट में कहा गया है कि 21वीं शताब्दी के अंत तक हिंदु कुश क्षेत्र के सतह का अनुमानित तापमान वैश्विक औसत की तुलना में अधिक होगा। सामान्य परिस्थितियों में सदी के अंत तक तापमान में 2.5+/-1.5 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हो सकती है। जबकि असामान्य परिस्थितियों में यह तापमान 5.5+/-1.5 डिग्री तक बढ़ सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र की जलवायु में अतीत में भी बदलाव हुए हैं और आने वाले समय में भी इसमें नाटकीय परिवर्तन देखने को मिलेंगे। 1998-2014 के बीच वैश्विक तापमान में कमी आई थी लेकिन यह क्षेत्र लगातार गर्म होता रहा।

20वीं शताब्दी में हिंदु कुश क्षेत्र ठंडे और गर्मी के चरणों के बीच झूलता रहा। शुरुआती 40 सालों में यह गर्म हुआ लेकिन 1940-70 के बीच ठंडे चरण रहे। 1970 के बाद से यह गर्म हो रहा है और मौजूदा शताब्दी में भी यह सिलसिला चलता रहेगा। हालांकि गर्मी कृषि से लिहाज से अच्छी हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बुआई का मौसम प्रति दशक 4.25 दिन बढ़ा है जो कृषि के लिए सकारात्मक बदलाव है।

हिंदु कुश क्षेत्र का गर्म होना वैश्विक जलवायु का नतीजा है। यह क्षेत्र गर्मियों के मौसम में गर्मी का स्रोत है और ठंड में हीट सिंक का। तिब्बत के पठार के साथ यह क्षेत्र भारत में गर्मियों के मॉनसून को प्रभावित करता है, इसलिए इस क्षेत्र में मामूली बदलाव भी मॉनसून पर असर डाल सकता है जो पहले से वितरण और फैलाव के बदलाव से गुजर रहा है।

रिपोर्ट में चेताया गया है कि इस क्षेत्र में ज्यादा गर्मी से जैव विविधता का क्षरण हो सकता है, ग्लेशियर का पिघलना बढ़ सकता है और पानी की उपलब्धता कम हो सकती है। इससे हिंदु कुश क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवनयापन पर सीधा असर पड़ेगा।

यहां गर्मी से तेज बर्फबारी और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण बहुत सी झीलें बन गई हैं। ग्लेशियर झीलों के फूटने से बाढ़ सामान्य हो गई है जिससे स्थानीय लोगों को भारी नुकसान पहुंच रहा है। आईसीआईएमओडी ने अपने 1999 और 2005 के सर्वेक्षण में 801.83 वर्ग किलोमीटर में फैली 8,790 ग्लेशियर झीलें पता लगाई थीं। इनमें से 203 झीलों से बाढ़ का खतरा है।

हिंदु कुश क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से खत्म हो रहे हैं। ये नदियों के बहाव के लिए लगातार पानी उपलब्ध करा रहे हैं। तिब्बत के पठार में नदी में बहाव 5.5 प्रतिशत बढ़ गया है। ऊंचाई पर स्थित अधिकांश झीलों में जलस्तर 0.2 मीटर प्रति वर्ष बढ़ रहा है। दूसरी तरफ इनका दायरा भी बढ़ रहा है। यह बदलाव किसी बड़े खतरे की आहट हैं।