जलवायु

भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में तप रही धरती, लू से बांग्लादेश में स्कूल बंद करने की आई नौबत

गर्मियों के साथ तापमान का बढ़ना और लू जैसी आपदाओं का आना कोई नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों से इनका जोखिम बढ़ रहा है वो आम आदमी के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है।

Lalit Maurya

गर्मियों के साथ तापमान का बढ़ना और लू जैसी आपदाओं का आना कोई नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों से इनका जोखिम बढ़ रहा है वो आम आदमी के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है।

इस मामले में साल 2024 की शुरूआत भी कोई अच्छी नहीं रही जनवरी-फरवरी-मार्च तीनों महीनों ने लगातार बढ़ते तापमान के नए रिकॉर्ड बनाए थे। उसके बाद अप्रैल और अब मई में भी यह सिलसिला जारी है। यदि पिछले कुछ दिनों से देखें तो न केवल भारत बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से गर्मी और लू के बढ़ने की खबरे सामने आ रही हैं।

भीषण गर्मी और लू से हालात किस कदर खराब हो चुके हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फिलीपींस और दक्षिण सूडान में बढ़ती गर्मी से स्कूलों को बंद करना पड़ा था। इसी तरह बांग्लादेश में भी गर्मी का कहर इस कदर हावी हो चुका है कि वहां भी स्कूलों को बंद करने का आदेश देना पड़ा। इसी तरह एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में तो लगातार लू का कहर जारी है।

इस बारे में सेव द चिल्ड्रन ने अपनी वेबसाइट पर जानकारी दी है कि अप्रैल में पड़ रही भीषण गर्मी के चलते बांग्लादेश में स्कूलों को बंद करना पड़ा था। बांग्लादेश में भीषण गर्मी का यह सिलसिला अभी भी जारी है, जिसकी वजह से बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने एक और सप्ताह के लिए देश में सभी प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया गया है। बांग्लादेश में पारा 42 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है, जिसकी वजह से करीब 3.3 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा सके हैं।

बांग्लादेश उच्च न्यायालय के इस आदेश में विश्वविद्यालयों को शामिल नहीं किया गया है। साथ ही परीक्षा में बैठने वाले छात्रों को भी इससे छूट दी गई है। बांग्लादेश में स्कूल रविवार तक बंद रहेंगे। हालांकि इस बीच जिन स्कूलों में एयरकंडीशनिंग की व्यवस्था है उनमें पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी गई है।

बांग्लादेश मौसम विभाग ने भी बुधवार को जानकारी दी है कि अप्रैल 2024 का महीना अब तक का सबसे गर्म अप्रैल था। इस दौरान राजधानी ढाका के सबसे बड़े थोक बाजारों में से एक में सिगरेट स्टॉल के मालिक महफुजुर रहमान ने अंतराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी एएफपी के हवाले से कहा है कि पिछला सप्ताह 'असहनीय' था।

उन्होंने एएफपी को बताया कि, "पिछले कुछ दिन इतने गर्म थे कि ऐसा लग रहा था कि मेरा सिर घूम रहा है। इस गर्मी की वजह से में काम पर फोकस नहीं कर पा रहा।" उनका आगे कहना है कि मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों हो रहा है। शायद हमने धरती पर अत्याचार और पाप किए हैं।

सेव द चिल्ड्रन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु और पर्यावरण से जुड़े जोखिम हर साल 3.7 करोड़ से अधिक बच्चों की शिक्षा में व्यवधान पैदा कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक गर्मी का शिक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, गर्म वर्षों के दौरान स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बेहद कम हो जाती है।

बांग्लादेश में सेव द चिल्ड्रन के कंट्री निदेशक शुमोन सेनगुप्ता ने भीषण गर्मी के शिक्षा पर पड़ते प्रभाव को उजागर करते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि बांग्लादेश में भीषण गर्मी का मतलब है कि बच्चे इस सप्ताह स्कूल नहीं लौट पाए हैं। यह सभी के लिए एक चेतावनी है। जो जलवायु सम्बन्धी चुनौतियों की याद दिलाती है।" उनके मुताबिक लू और गर्मी जैसे जलवायु से जुड़े खतरों का शिक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जिस साल गर्मी ज्यादा पड़ती है उस साल स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति घट जाती है।

वहीं जो छात्र इस भीषण गर्मी में स्कूल पहुंच भी जाते हैं उन्हें भी ध्यान एकाग्र करने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। गर्मी का यह जोखिम देशों के बीच असमानता को भी उजागर करता है। बांग्लादेश जैसे कम आय वाले देशों के छात्रों के गर्मी से प्रभावित होने की आशंका कहीं ज्यादा होती है। वहीं दूसरी तरफ एयर कंडीशनिंग जैसे समाधानों तक उनकी पहुंच कम होती है।

दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के कई देश लू और भीषण गर्मी के कहर से झुलस रहे हैं। म्यांमार से लेकर फिलीपींस तक कई देशों में तो तापमान रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है। इस असाधारण रूप से बढ़ते तापमान में अल नीनो की भूमिका से भी पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता। कंबोडिया, म्यांमार, वियतनाम और भारत में मौसम विभाग ने भी आशंका जताई है कि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहेगा।

फिलीपीन्स में बढ़ती गर्मी के चलते रविवार को स्कूल बंद कर दिए थे। सोमवार को स्कूलों ने दो दिनों के लिए स्कूल में कक्षाएं स्थगित कर दी थी। फिलीपींस की राजधानी मनीला में गत शनिवार को तापमान 38.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। ऐसा ही कुछ हाल थाईलैंड का भी था, जहां देश के उत्तरी क्षेत्रों में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। वहीं राजधानी बैंकाक में भी तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है।

थाईलैंड के मौसम विभाग का अनुमान है कि इस साल गर्मियां, पिछले वर्ष की तुलना में एक से दो डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकती हैं। थाईलैंड के रोग नियंत्रण विभाग ने पिछले सप्ताह जानकारी दी थी कि इस साल अब तक गर्मी और हीट स्ट्रोक से कम से कम 30 लोगों की मौत हो चुकी है।

बढ़ते तापमान से बदहाल धरती

इसी तरह कंबोडिया के जल संसाधन और मौसम विज्ञान मंत्रालय के प्रवक्ता ने सोमवार को एसोसिएटेड प्रेस को जानकारी दी है कि इस साल कंबोडिया पिछले 170 वर्षों के सबसे अधिक तापमान का सामना कर रहा है। एजेंसी ने पूर्वानुमान लगाया है कि इस सप्ताह देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। इसी तरह सोमवार को मध्य मैगवे, मांडले, सागाइंग और बागो क्षेत्र ने रिकॉर्ड तापमान का सामना किया।

मीडिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक दक्षिण सूडान में तापमान के 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने की आशंका को देखते हुए स्कूलों को दो सप्ताह के लिए बंद कर दिया गया था। इसकी वजह से 22 लाख बच्चे प्रभावित हुए थे। गौरतलब है कि मार्च में पूर्वी अफ्रीका भीषण लू की चपेट में था।

इसी तरह इजराइल भी लू और गर्मी से झुलस रहा है। इजराइल मौसम विज्ञान सेवा (आईएमएस) का कहना है कि गत गुरुवार को ग्रेटर मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में पिछले 85 वर्षों में अप्रैल का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया था। इजराइल के तटीय शहर तेल अवीव में गत गुरुवार को तापमान 40.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

भारतीय मौसम विभाग ने भी जानकारी दी है कि 1901 के बाद से पूर्वी भारत के लिए यह अब तक का सबसे गर्म अप्रैल का महीना था, जब तापमान 28.12 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। पश्चिम बंगाल में पिछले 15 वर्षों के दौरान अप्रैल 2024 में सबसे ज्यादा लू वाले दिन दर्ज किए थे। इसी तरह ओडिशा में भी अप्रैल के दौरान गर्मी की स्थिति पिछले नौ वर्षों में सबसे खराब रही।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा ने रायटर्स में जानकारी साझा करते हुए कहा है कि अल नीनो वर्ष में कहीं ज्यादा गर्मी पड़ती है। उन्होंने जलवायु पैटर्न का जिक्र करते हुए कहा कि यह आमतौर पर एशिया में गर्म और शुष्क मौसम की वजह बनता है। वहीं अमेरिका के कुछ हिस्सों में इसकी वजह से भारी बारिश होती है।

मौसम विभाग ने मई के लिए जारी अपने आउटलुक में कहा है कि देश के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामने से अधिक रह सकता है। हालांकि इस दौरान पूवोत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों, उत्तर पश्चिम और मध्य भारत के कुछ हिस्सों, मध्य भारत और पूर्वोत्तर प्रायद्वीपीय भारत में अधिकतम तापमान सामान्य या सामान्य से नीचे रह सकता है।

इसी तरह उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों, गंगा के मैदानी इलाकों, मध्य भारत और उत्तरपूर्व भारत के अधिकांश हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य या सामान्य से नीचे रह सकता है। लू को लेकर जो अनुमान जारी किए गए हैं उनके मुताबिक मई के दौरान आमतौर पर करीब तीन दिन लू का कहर रहता है।

वहीं आशंका है कि इस साल दक्षिण राजस्थान, विदर्भ, मराठवाड़ा पश्चिमी मध्य प्रदेश, और गुजरात में सामान्य तौर पर जितने दिन लू चलती है उससे पांच से आठ दिन ज्यादा समय तक इसका खतरा बना रहेगा।भारत में भी गर्मी का कहर इस कदर हावी हो चुका है कि केरल में भी भीषण गर्मी और लू के चलते स्कूलों को सोमवार तक के लिए बंद करने का आदेश दिया गया है। 

भारत में भी बढ़ रही चुनौतियां

इसी तरह राजस्थान के शेष हिस्सों, पूर्वी मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ भागों के साथ-साथ ओडिशा के अंदरूनी इलाकों, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तरी कर्नाटक के कुछ हिस्सों, तेलंगाना, उत्तरी तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के इक्का-दुक्का इलाकों में सामान्य दिनों से दो से चार दिन ज्यादा लू चल सकती है।

रिसर्च भी इस बात की पुष्टि करती है कि जलवायु में आते बदलावों की वजह से गर्मी और लू का कहर बढ़ रहा है। जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में लू पर छपे एक शोध से पता चला है कि तापमान में हर दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ लोगों के लू की चपेट में आने का जोखिम करीब तीन गुना बढ़ जाएगा।

इसी तरह बढ़ते तापमान की वजह से भारत पर पड़ते प्रभावों को लेकर जो खुलासे किए गए हैं उनके मुताबिक तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ भारत में लू का कहर आम हो जाएगा। वहीं यदि तापमान में होती वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस को छू लेती है तो आम लोगों के इसकी चपेट में आने का जोखिम 2.7 गुणा बढ़ जाएगा। वहीं द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि भारत में भीषण गर्मी के कारण सालाना औसतन 83,700 लोगों की जान जा रही है। 

संयुक्त राष्ट्र और रेड क्रॉस ने अपनी रिपोर्ट “एक्सट्रीम हीट: प्रीपेरिंग फॉर द हीटवेब्स ऑफ द फ्यूचर” में कहा है कि भारत के कई हिस्सों में पिछले 60 वर्षों के दौरान सूखे और लू की आवृत्ति काफी बढ़ गई है। जो देश में लोगों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहीं हैं।

हाल ही में जर्नल वेदर एंड क्लाइमेट एक्सट्रीम्स में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला है कि 1970 से 2019 के बीच पिछले 50 वर्षों में देश में लू की 706 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें करीब 17,362 लोगों की जान गई है।

डीएसटी के महामना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सदी के अंत तक भारत में लू का जोखिम 10 गुणा तक बढ़ जाएगा। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में भारत के दक्षिणी और मध्य क्षेत्र में लू के कहर में सबसे ज्यादा वृद्धि होगी। अनुमान है कि आने वाले समय में भारत के तटवर्ती इलाकों में भी गर्मी का तनाव बढ़ जाएगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार भारत में, अप्रैल और जून 2023 के दौरान भीषण गर्मी और लू के कारण 110 लोगों की हीटस्ट्रोक से मौत हो गई थी।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट "स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया" में कहा है कि एशिया में बढ़ते तापमान के साथ लू का प्रभाव पहले से कहीं ज्यादा विकराल रूप ले चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक एशिया वैश्विक औसत से भी कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है। 1961 से 1990 की अवधि के बाद से देखें तो इस क्षेत्र में तापमान में होती वृद्धि की प्रवृत्ति करीब दोगुनी हो गई है।

भारत में मौसम में किस कदर बदलाव आ रहा है वह इसी बात से समझा जा सकता है, कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) को मार्च से पहले ही केरल और रायलसीमा क्षेत्र के लिए लू और उमस के चलते येलो अलर्ट तक जारी करना पड़ा था।

क्लाइमेट ट्रेंड्स ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए लिखा है कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है, देश भर में स्थानीय मौसम के पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं। नतीजन भारत में बसंत का मौसम सिकुड़ रहा है और देश के कई हिस्सों में समय से पहले गर्मी का कहर दिखने लगा है।

नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने अपनी के रिपोर्ट में कहा है कि इस बात की 55 फीसदी आशंका है कि 2024 जलवायु रिकॉर्ड का सबसे गर्म साल होगा। वहीं इसके पांच सबसे गर्म वर्षों में शुमार होने की 99 फीसदी आशंका है। इसका स्पष्ट मतलब है कि बढ़ते तापमान से 2024 में भी राहत की गुंजाइश न के बराबर है।

गौरतलब है कि अब तक के सबसे गर्म साल होने का रिकॉर्ड 2023 के नाम दर्ज है। जब साल का बढ़ता तापमान बीसवीं सदी के वैश्विक औसत से 1.18 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।

बढ़ते तापमान के यह रिकॉर्ड बड़े खतरे की ओर इशारा करते हैं। आज जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है और जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उससे जीवन का हर पहलू प्रभावित हो रहा है। बात चाहे शिक्षा की हो या स्वास्थ्य की वो इन बदलावों से प्रभावित हुए बिना नहीं है। बढ़ता तापमान लोगों की जेब से लेकर उनकी दिनचर्या तक को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में यदि हम इन बढ़ते खतरों को लेकर अब भी नहीं जागे तो न केवल मौजूदा पीढ़ी को बल्कि हमारी आने वाली नस्लों को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।