भारत जैसे देश अपनी कृषि, निर्माण, ऊर्जा उत्पादन जैसी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल पर निर्भर हैं; फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

सावधान! जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा भूजल का तापमान, सदी के अंत तक 3.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अंदेशा

भूजल के बढ़ते तापमान से न केवल उसकी संरचना बल्कि गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है। जो उससे जुड़े पूरे इकोसिस्टम पर असर डाल सकता है

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में होती वृद्धि का असर आज केवल धरती और महासागरों तक ही सीमित नहीं है। जमीन की गहराई में कई मीटर नीचे मौजूद भूजल भी बढ़ते तापमान का दंश झेल रहा है। इसकी वजह से न केवल भूजल के स्तर में गिरावट आ रही है, साथ ही भूजल पहले से कहीं ज्यादा गर्म हो रहा है।

इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से भूजल का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। अंदेशा है कि विभिन्न उत्सर्जन परिदृश्यों में सदी के अंत तक भूजल के तापमान में होती यह वृद्धि औसतन 2.1 से 3.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह भूजल कितना गर्म होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इंसान जलवायु में आते बदलावों से निपटने के लिए अपने उत्सर्जन में कितनी कटौती करते हैं।

शोधकर्ताओं ने इस बात की भी पुष्टि की है कि मध्य उत्सर्जन परिदृश्य यानी एसएसपी2-4.5 में सदी के अंत तक दुनिया के 18.8 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्रों में रहने को मजबूर होंगें, जहां भूजल इतना गर्म हो होगा कि वो पीने योग्य नहीं रह जाएगा। वहीं यदि उच्च उत्सर्जन परिदृश्य (एसएसपी5-8.5) में देखें तो यह आंकड़ा बढ़कर 58.8 करोड़ तक पहुंच सकता है। मतलब की इन क्षेत्रों में भूजल दुनिया के किसी भी देश के पेयजल मानकों के अनुरूप नहीं होगा।

यह अध्ययन चार्ल्स डार्विन विश्वविद्यालय (सीडीयू), द यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकैसल, डलहौजी विश्वविद्यालय, मार्टिन लूथर विश्वविद्यालय, जर्मनी के कार्ल्सरुहे इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, और यूनिवर्सिटी ऑफ वियेना से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुए हैं।

वैज्ञानिकों ने उथले भूजल के तापमान पर जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभावों को दर्शाने के लिए एक मॉडल भी विकसित किया है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में भूजल के बढ़ते तापमान को उजागर करना है। इस मॉडल से पता चला है कि मध्य रूस, उत्तरी चीन, उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों और अमेजन वर्षावन के भूजल के तापमान में होने वाली वृद्धि की दर सबसे अधिक होगी। हालांकि इसका असर भारत, ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के अधिकांश हिस्सों पर पड़ेगा।

जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करेगा भूजल का बढ़ता तापमान

इस अध्ययन और चार्ल्स डार्विन विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर डायलन जे इरविन ने भूजल के बढ़ते तापमान पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि भूजल का तापमान पारिस्थितिकी तंत्र, जल प्रक्रियाओं और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में यदि तापमान बढ़ता है तो भूजल पर निर्भर, कई तापमान के प्रति संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ सकते हैं।"

उनका आगे कहना है कि, "जलवायु परिवर्तन को लेकर ज्यादातर ध्यान चरम मौसमी घटनाओं और जल उपलब्धता पर रहा है। लेकिन हमें इसके भूजल पर पड़ते प्रभावों पर भी विचार करने की जरूरत है।"

शोधकर्ताओं के मुताबिक भूजल के बढ़ते तापमान से उसकी रासायनिक संरचना और मौजूद धातुओं के साथ-साथ सूक्ष्म जीवों पर भी असर पड़ेगा। इसकी वजह से जल गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। तापमान बढ़ने के साथ स्थानीय जलीय जीव प्रभावित हो सकते है। इससे उनके प्रजनन तंत्र जैसी गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं। इससे उन समुदायों और उद्योगों के लिए भी समस्याएं पैदा हो सकती हैं जो इन पारिस्थितिकी तंत्रों पर निर्भर हैं।

अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता डॉक्टर गेब्रियल सी राउ ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से चेताया कि भूजल का तापमान बढ़ने से उन पारिस्थितिकी तंत्रों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है, जो इसपर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए सूखे मौसम में नदियां प्रवाह को बनाए रखने के लिए भूजल पर निर्भर करती हैं। लेकिन जब पानी बहुत गर्म हो जाता है तो उसमें ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है। इसकी वजह से मछलियों जैसे जीवों के लिए जीवित रहना मुश्किल हो जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, वर्तमान में 125 में से केवल 18 देशों में ही पीने के पानी को कितना गर्म होना चाहिए, इस बारे में दिशा-निर्देश हैं। डॉक्टर राउ का कहना है कि यदि भूजल का स्तर लगातार गर्म होता रहेगा, तो इससे पेयजल की गुणवत्ता खतरे में पड़ सकती है, जो स्वास्थ्य पर भी असर डालेगी। इसे समझाते हुए उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि जैसे-जैसे भूजल का तापमान बढ़ता है, उसमें रोगाणुओं के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।

स्थिति विशेषतौर पर उन क्षेत्रों के लिए चिंताजनक है, जहां पहले ही साफ पानी तक पहुंच सीमित है। आज भी कई क्षेत्रों में लोग भूजल को बिना उपचार के पीने को मजबूर हैं। अध्ययन के मुताबिक भूजल का गर्म होना कई तरह की आर्थिक समस्याएं भी पैदा कर सकता है। उदहारण के लिए भारत जैसे देश अपनी कृषि, निर्माण, ऊर्जा उत्पादन जैसी कई जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल पर निर्भर हैं। ऐसे में यदि यह भूजल बहुत ज्यादा गर्म या दूषित हो जाता है तो इससे उनकी गतिविधियां बाधित हो सकती हैं, जो आर्थिक नुकसान की वजह बन सकता है।