आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू (एएसआर) जिले के किसानों को 2020 और 2021 में लगातार दो सीजन में रागी और छोटे बाजरा (रागी) के बीज उत्पादन में नुकसान उठाना पड़ा। करीब 20 किसानों के समूह ने 2019 में आंध्र प्रदेश सामुदायिक प्रबंधित प्राकृतिक खेती (एपीसीएनएफ) परियोजना के तहत रागी के बीज उत्पादन का काम शुरू किया था।
संबंधित क्षेत्र में आदिवासी किसानों के साथ काम कर रहे वाटरशेड सपोर्ट सर्विसेज एंड एक्टिविटीज नेटवर्क (वासन) के कार्यक्रम प्रबंधक एमएल सन्यासी राव डाउन टू अर्थ से कहते हैं कि दोनों वर्षों में जुलाई और अगस्त के महीने में अधिक वर्षा ने फसलों की सेहत को प्रभावित किया। वह कहते हैं, “यदि अनाज की गुणवत्ता जैसी सोची गई थी, वैसी नहीं है तो यह सीधे बीज की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। अधिक वर्षा ने पौधों को मिट्टी से पोषण नहीं लेने दिया।
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इससे बीजों के जीवित रहने की संभावना कम हो गई और अंकुरण (जर्मिनेशन) के विफल होने की संभावना बढ़ जाती है।” यदि निम्न गुणवत्ता वाले बीजों को अंकुरण के लिए लगाया जाए तो उन बीजों की गुणवत्ता ठीक नहीं होती है जिसके परिणामस्वरूप बाद में फसल की उपज कम होती है। 2021 में किसानों को 20 टन (20,000 किलोग्राम) बीज की उम्मीद थी। लेकिन जब नवंबर में फसल काटी गई तो उन्हें केवल 15 टन उपज मिली और अनाज बीज उत्पादन और क्षेत्र के अन्य किसानों की आपूर्ति के लिए काम का नहीं पाया गया।
राव कहते हैं, “अनाज कमजोर थे और उसमें एंडोस्पर्म गायब था। एंडोस्पर्म बीज का वह हिस्सा जो एक पौधे के विकास के लिए भोजन का भंडारण करता है और बीज के अंकुरण के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए बीज उत्पादन के लिए उसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। 20,000 किलो बीज को करीब 35 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाना था। हालांकि उसे 25 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा गया। इससे किसानों को 3.25 लाख रुपए का सीधा नुकसान हुआ।
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हरियाणा के करनाल जिले के एक किसान विकास चौधरी जो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के बीज उत्पादन कार्यक्रम के अधीन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के साथ एक सहभागी किसान के तौर पर काम कर रहे हैं, कहते हैं, “हल्के वजन या कमजोर अनाज की संख्या में पिछले साल लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आमतौर पर यह करीब 5-7 फीसदी होता है लेकिन पिछले साल यह 20-22 फीसदी था। इन अनाजों का उपयोग बीज उत्पादन के लिए नहीं किया जा सकता क्योंकि बाद में उपज कम होगी।”
देश ने मार्च, 2022 में भीषण गर्मी की लहर देखी, जिसने गेहूं के दानों को झुलसा दिया था। इससे फसल की मात्रा और गुणवत्ता प्रभावित हुई थी और इसके परिणामस्वरूप उत्तर और मध्य भारतीय राज्यों में गेहूं की पैदावार कम हुई। भारत ने 2021-22 फसल सीजन में 106.84 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन किया जबकि 2021 में 109.59 मिलियन टन उत्पादन था।
गेहूं और धान देश में मुख्य खाद्यान्न हैं, जो सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीब आबादी को वितरित किए जाते हैं। ये हमारी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। वर्ष 2016 में एग्रीकल्चर जर्नल में प्रकाशित शोध “जलवायु परिवर्तन: बीज उत्पादन और अनुकूलन के लिए विकल्प” के मुताबिक, अधिकांश पौधे हल्के तापमान परिवर्तन को सहन कर सकते हैं।
अधिक तापमान होने पर पहले यह बीज के अंकुरण प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाते हैं फिर इसका असर उपज पर पड़ता है। बीजों के परिपक्व होने से पहले ही यदि उच्च तापमान का तनाव उन तक पहुंचे तो यह अंकुरण को कम कर सकता है या फिर बीजों की इस हद तक क्षति होती है कि वह अंकुरित होने की क्षमता खो देते हैं। इसके अलावा जर्मिनेशन के लिए जरूरी प्रक्रिया को भी बाधित कर सकता है।
चौधरी बताते हैं कि तापमान में वृद्धि से फसल के विकास में भी तेजी आती है, जिससे बीज भरने की अवधि कम हो जाती है। यह प्रजनन विकास और पराग निर्माण को भी गति देता है और छोटे बीजों के विकास की ओर ले जाता है। किसान बता रहे हैं कि वे गेहूं और धान के दानों में सिकुड़न देख रहे हैं। अगस्त, 2022 के दौरान धान में बौना वायरस पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड से रिपोर्ट किया गया था।
इस बीमारी के कारण स्टंटिंग और बौनापन हो गया और विशेषज्ञों ने कहा था कि मई और जून के महीनों के दौरान उच्च तापमान इसका एक कारण हो सकता है। अत्यधिक गर्मी फूलों के आने की प्रक्रिया को या तो जल्दी या देरी कर सकती है।
सूखे और उच्च तापमान के प्रति चावल की बीज गुणवत्ता की संवेदनशीलता पर दिसंबर 2019 में सीड साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि चावल में बीज की गुणवत्ता को सबसे अधिक नुकसान तब होता है, जब संक्षिप्त गर्म मौसम शुरुआती बीज विकास के साथ मेल खाता है। और सूखा बीजों के शुरुआती विकास के दौरान परिपक्वता पर उनकी गुणवत्ता को भी कम कर देता है। जब ये दोनों चीजें एक साथ होती हैं तो नुकसान और भी ज्यादा होता है।
धान के मामले में अधिक वर्षा से भी अनाज का रंग खराब हो जाता है। करनाल के किसान गुरनाल सिंह कहते हैं, “2022 में पहले बारिश कम हुई थी और धान के पौधों की जड़ें पहले से ही कमजोर थीं और फिर जब अचानक अधिक बारिश हुई तो पत्तियां क्लोरोफिल नहीं ले सकीं।”
पिछले 15 साल से बीज उत्पादन से जुड़े किसान हरभगवान घई का कहना है कि कुछ सालों में लगातार और भारी बारिश से धान के पौधे में फूल आने की अवस्था पर असर पड़ रहा है। इससे धान की मजबूती व चमक प्रभावित होती है। फूल बनने की अवस्था में अधिक वर्षा होती है, तो यह परागण को प्रभावित करती है।
पराग न होने का सीधा मतलब है कि बीज नहीं बनना। इस साल भी तापमान में वृद्धि के अलावा किसानों के लिए एक और चिंता तेज हवाओं की रही है जो आमतौर पर मार्च के महीने में होने वाली घटना है। लेकिन इस बार फरवरी में भी तेज हवाएं चल रही हैं।
हरियाणा के सीधेपुर गांव के वीरेंद्र कुमार कहते हैं, “यह वह समय है, जब गेहूं की फसल फूलों की अवस्था में होती है और परागण हो रहा होता है। अगर तेज हवा चले और किसान इस समय पानी दें तो पौधे की जड़ें हिलती हैं और अनाज मनचाहा नहीं उगता।”
सेंट्रल यूरोपियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने कैनोला में बीज के विकास पर गर्म तापमान के प्रभाव का अध्ययन किया और पाया, “बीज का एक हिस्सा फल के अंदर अंकुरित हो रहा है और बुवाई के अगले दौर के लिए संग्रहीत नहीं किया जा सकता है जबकि दूसरा भाग अव्यवहार्य भ्रूण पैदा करता है। बीज के भीतर पल रहा भ्रूण (मां के गर्भ में बच्चे की तरह) एक नए पौधे में अंकुरित होगा।
एक अव्यवहार्य भ्रूण विकसित नहीं होगा और इसलिए बीज की एक पूरी पीढ़ी नष्ट हो जाती है।” विभिन्न शोध अध्ययनों से पता चला है कि विभिन्न फसलों में उच्च तापमान और अनाज की उपज पर प्रभाव के बीच संबंध के वैश्विक प्रमाण हैं।
मक्के में 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान से अनाज की सिंक क्षमता और उपज कम हो जाती है। जैसे ही औसत तापमान 23 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ता है, सोयाबीन में बीज वृद्धि दर और बीज का आकार 39 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान पर शून्य तक पहुंचने तक घट जाता है। सोयाबीन के बीज प्रोटीन सांद्रता को 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान पर दिखाया गया है। बीज भरने के चरण के दौरान गर्मी के तनाव की प्रतिक्रिया में तेल और प्रोटीन सांद्रता विपरीत रूप से संबंधित थे।