जलवायु

अच्छी खबर: विरंजन के बाद तेजी से बहाल हो रही हैं हिंद महासागर की मूंगे की चट्टानें

अध्ययनकर्ता ने प्रवाल कार्बोनेट बजट को मापने के लिए गणना आधारित रीफ बजट विधि विकसित की है

Dayanidhi

एक नए शोध से पता चला है कि बड़े पैमाने पर मूंगे की चट्टानों या प्रवाल भित्तियों के ब्लीचिंग या विरंजन होने के बाद ये ठीक हो सकती हैं। इस बात का पता हिंद महासागर के दूर के इलाकों या संरक्षित क्षेत्रों में मूंगे की चट्टानों के तेजी से ठीक होने से लगा है।

क्या है प्रवाल-भित्तियों का ब्लीचिंग या विरंजन होना

जब समुद्र का तापमान, प्रकाश या पोषण में किसी भी तरह का बदलाव होने से प्रवालों पर तनाव बढ़ता है तो वे अपने ऊतकों में निवास करने वाले सहजीवी शैवाल जूजैंथिली को निष्कासित कर देते हैं। जिस कारण प्रवाल सफेद रंग में बदल जाते हैं। इस घटना को कोरल ब्लीचिंग या प्रवाल विरंजन कहते हैं।

एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता के द्वारा "रीफ कार्बोनेट बजट" की जांच की जा रही हैं। जिसमें इस बात का पता लगाया जा रहा है कि समय के साथ प्रवाल भित्तियों की संरचना का कितना उत्पादन या नुकसान हो रहा है।

प्रवाल भित्तियों के कार्यों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए, उन्होंने 2015 और 16 में वैश्विक प्रवाल विरंजन घटना से पहले और बाद में हिंद महासागर में सुदूर चागोस द्वीप समूह में 12 मूंगे की चट्टानों की जांच पड़ताल की।

2018 से पूर्व में संपन्न मूंगे की चट्टानें सिकुड़ रही थीं, प्रवाल भित्तियों के आवरण और कार्बोनेट उत्पादन में 70 फीसदी से अधिक की गिरावट देखी गई और नष्ट होने की प्रक्रिया की तुलना में नए प्रवाल भित्तियों का विकास अधिक हुआ।

जब शोधकर्ता 2021 में लौटे, तो सभी चट्टानें ठीक होने के रास्ते पर थीं, हालांकि ठीक होने की गति अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग थी।

जहां प्रमुख प्रवाल प्रजातियां जल्दी लौट आईं और प्रवाल की संरचना बरकरार रही। प्रवाल के विरंजन होने घटना के छह साल बाद ही सकारात्मक विकास दिखा और यह तेजी से फैलता दिखाई दिया।

विरंजन या ब्लीचिंग पानी के बढ़ते तापमान के कारण होता है, जो प्रवाल या कोरल को उनके सहजीवी शैवाल को बाहर निकालने और सफेद होने को बढ़ा सकता है। प्रवाल या मूंगे इससे बच सकते हैं, लेकिन अत्यधिक गर्मी या लू के कारण बड़े पैमाने पर इनकी मृत्यु हो जाती है। बाद में बहाली होने की गति एक चट्टान के स्वास्थ्य और लचीलेपन का एक महत्वपूर्ण संकेत है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ इनेस लैंग कहते हैं कि गर्म होते समुद्र के चलते मूंगे की चट्टानों की बहाली की इतनी अधिक दर एक बहुत अच्छा संकेत है और इसका मतलब है कि यह हिस्सा कुछ लचीलापन दिखा रहा है। 

अगले कुछ वर्षों में चागोस द्वीपसमूह में चट्टानों की पूरी तरह बहाली की संभावना है यदि इस क्षेत्र को बढ़ते समुद्री तापमान की घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचाया जाता है।

डॉ लैंग ने कहा अध्ययन से पता चलता है कि दूरस्थ और संरक्षित क्षेत्रों में स्थानीय प्रभावों जैसे मछली पकड़ने या भूमि माध्यम से होने वाले प्रदूषण, प्रवाल भित्तियों और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले महत्वपूर्ण कार्यों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी होने के बाद भी अपेक्षाकृत जल्दी ठीक होने में सक्षम हैं।

स्वस्थ प्रवाल की निकटता और एक जटिल चट्टान संरचना के रखरखाव से बहाली की गति को बढ़ावा मिलता है, जो निकट भविष्य के लिए अनुमानित  विरंजन या ब्लीचिंग होने की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के खतरे के तहत चट्टानों को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है।

एक्सेटर विश्वविद्यालय के सह- अध्ययनकर्ता प्रोफेसर क्रिस पेरी ने प्रवाल कार्बोनेट बजट को मापने के लिए गणना आधारित रीफ बजट विधि विकसित की।

ये कार्बोनेट बजट समुद्री जीवन को आवास प्रदान करने, लहर ऊर्जा से तटरेखा की रक्षा करने और भविष्य में समुद्र के स्तर में वृद्धि के साथ प्रवाल भित्तियों के द्वीपों की मदद करने के लिए एक चट्टान की क्षमता के महत्वपूर्ण संकेत हैं।

पिछले सालों में प्रो. पेरी और डॉ लैंग ने प्रवाल भित्तियों के विकास और पैरटफिश के नुकसान की स्थानीय दरों को मापने के लिए इस विधि को हिंद महासागर के अनुसार ढाला है। यह शोध लिम्नोलॉजी और ओसेनोग्राफी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।