जलवायु

वैश्विक स्तर पर हर साल झीलों से उत्सर्जित हो रही है 4.2 करोड़ टन मीथेन : रिसर्च

दुनिया भर में करीब 28 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में झीलें हैं जोकि आकार में करीब अर्जेंटीना के बराबर है

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में झीलें हर साल कितनी मीथेन वातावरण में छोड़ रही हैं, यदि नहीं तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हर साल यह झीलें करीब 4.2 करोड़ टन मीथेन वातावरण में उत्सर्जित कर रही हैं। गौरतलब है कि दुनिया भर में करीब 28 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में झीलें हैं जोकि आकार में करीब अर्जेंटीना के बराबर है।

यदि मीथेन की बात करें तो यह एक एक प्रमुख ग्रीनहॉउस गैस है, जो वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ते तापमान की एक वजह है। यदि पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में देखें तो आज वायुमंडल में मीथेन का स्तर करीब तीन गुना बढ़ गया है। वहीं दूसरी तरफ यदि जलवायु परिवर्तन पर इस गैस के पड़ने वाले असर को देखें तो वो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से वातावरण को गर्म कर रही है। ग्लोबल वार्मिंग के मामले में यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में करीब 28 गुना ज्यादा शक्तिशाली है।

अनुमान है कि वैश्विक तापमान में अब तक जितनी भी वृद्धि हुई है उसके करीब 25 फीसदी हिस्से के लिए मीथेन ही जिम्मेवार है। हालांकि हम इंसानों द्वारा उत्सर्जित हो रही मीथेन में बड़ी तेजी से इजाफा हो रहा है, इसके बावजूद प्राकृतिक स्रोतों जैसे आर्द्रभूमियों, नदियों, झीलों और जलाशयों से होने वाले उत्सर्जन को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।

देखा जाए तो इन जलस्रोतों से निकली मीथेन पानी में फैल सकती है या फिर वो  झील के तल पर जमा तलछट से बुलबुला बनकर उत्सर्जित हो सकती है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर मीथेन बजट की मात्रा का निर्धारण करने में इसकी गणना एक बड़ी चुनौती है। इसी को ध्यान में रखते हुए जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: बायोजियोसाइंसेस में प्रकाशित इस नई रिसर्च में झीलों से उत्सर्जित होने वाली कुल मीथेन की गणना की गई है।  

इस रिसर्च में मीथेन की गणना करते समय उससे जुड़े कई सम्बंधित कारकों के बारे में नवीनतम आंकड़ों को एकत्र किया था, जिसमें झीलों का क्षेत्रफल, मीथेन उत्सर्जन पर तापमान से सम्बंधित मौसमी बदलावों का प्रभाव शामिल थे। इसी तरह यह झीलें साल में कितने समय तक बर्फ से ढंकी रहती हैं इस बात की गणना भी उपग्रहों की मदद से की है। वहीं अलग-अलग क्षेत्रों में अलग जलवायु और पारिस्थितिकी के बीच इन झीलों से उत्सर्जित होने वाली मीथेन में कितना अंतर है, उसकी भी गणना की गई है।

लाखों लोगों की जिंदगियां बचा सकती है मीथेन उत्सर्जन में होने वाली गिरावट

इस अध्ययन में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार यह झीलें हर वर्ष करीब 4.16 करोड़ टन मीथेन उत्सर्जित कर रही हैं। जानकारी मिली है कि इनमें से 1.41 करोड़ टन मीथेन प्रसार के माध्यम से, 2.34 करोड़ टन बुलबुलों के रूप में जबकि 0.41 करोड़ टन बर्फ या पानी के माध्यम से उत्सर्जित हो रही है। जो पिछले अनुमानों की तुलना में कम है।

इस बारे में हाल ही में जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन के हवाले से पता चला है कि मीथेन के वैश्विक उत्सर्जन में जलीय पारिस्थितिक तंत्र की हिस्सेदारी करीब 41 से 53 फीसदी के बीच हो सकती है। वहीं जिस तरह से इंसान प्राकृतिक जलीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर रहा है, उसके चलते मीथेन उत्सर्जन भी बढ़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि यदि प्रयास किए जाएं तो इस दशक में मानव उत्सर्जित मीथेन को 45 फीसदी तक कम किया जा सकता है। यह कटौती 2045 तक तापमान में होती वृद्धि को 0.3 डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकती है। देखा जाए तो इसकी मदद से पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी।

अनुमान है कि इस कटौती की मदद से हर साल 2.6 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है। वहीं बढ़ते तापमान की वजह से हर साल 2.5 करोड़ टन फसलों को होने वाले नुकसान को टाला जा सकता है।