जलवायु

ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलों के बढ़ते खतरे के लिए ग्लोबल वार्मिंग है जिम्मेवार

अध्ययन में पेरू के एंडीज में पाल्कोकाचा झील के मामले की जांच की गई, जो 1.5 लाख लोगों के लिए विनाशकारी हो सकता है

Dayanidhi

जैसे ही धरती गर्म होती है, ग्लेशियर खिसकने लगते हैं जिसकी वजह से दुनिया की पर्वतीय जल प्रणालियों में बदलाव आ रहे हैं। पहली बार ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और वाशिंगटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मानवजनित जलवायु परिवर्तन को दुनिया की सबसे बड़ी बाढ़ के खतरों में से एक ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलों को माना है।

अध्ययन में पेरू के एंडीज में पाल्कोकाचा झील के मामले की जांच की गई, जिससे हुआराज शहर में रहने वाले लगभग 1.5 लाख निवासियों के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित नए अध्ययन ने सबूत दिए हैं जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को इन सब के लिए जिम्मेदार माना गया है।

वैज्ञानिक, यूडब्ल्यू अंतरिक्ष विज्ञान के प्रोफेसर और सह-अध्ययनकर्ता जेरार्ड रो ने कहा वैज्ञानिक चुनौती यह थी कि जलवायु परिवर्तन और बदलते बाढ़ के खतरों के बीच की कड़ी को स्पष्ट और सहीं तरीके से इसका मूल्यांकन करना था।

2016 में अध्ययनकर्ता रो और उनके सहयोगियों ने एक ग्लेशियर के अपने स्थान से खिसक जाने को क्या मानवजनित जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा सकता है यह निर्धारित करने के लिए एक तरीका विकसित किया। पर्वतीय ग्लेशियरों के अपने स्थान से हटने के कई परिणाम हैं, जिसमें खिसकने वाले ग्लेशियर द्वारा छोड़े गए स्थान का घाटी में बदल जाना शामिल है।

ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलों (ग्लेशियल झीलों) के निर्माण के लिए इन घाटियों में वर्षा और पिघला हुआ पानी इकट्ठा होता है। हाल के शोध में पता चला है कि दुनिया भर में ऊंचाई वाले ग्लेशियल झीलों की संख्या और आकार में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

रो ने बताया कि अध्ययन मानवजनित जलवायु परिवर्तन और बाढ़ के खतरे में बदलती ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलों (ग्लेशियल झील) के बीच संबंधों का आकलन करने वाला पहला अध्ययन है।  हमारे अध्ययन में उपयोग की जाने वाली विधियों को निश्चित रूप से दुनिया भर में अन्य ग्लेशियरों पर लागू किया जा सकता है।

नए अध्ययन ने पहले पल्काराजू ग्लेशियर के आसपास औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से तापमान वृद्धि में मानव उत्सर्जन की भूमिका की गणना की। इस बात की जानकारी है कि 1880 के बाद से इस क्षेत्र का तापमान 1डिग्री सेल्सियस बढ़ने के लिए 95 फीसदी मानव गतिविधियां जिम्मेदार है।

अध्ययनकर्ताओं ने तब इन बढ़े तापमानों और ग्लेशियर के लंबे समय तक खिसकने के बीच संबंध का आकलन करने के लिए यूडब्ल्यू तकनीक का उपयोग किया, जिससे पालकोचा झील का विस्तार हुआ है। परिणाम बताते हैं कि पल्काराजू ग्लेशियर के खिसकने के पीछे 99 फीसदी से अधिक कारण मानवजनित जलवायु परिवर्तन हैं।

ऑक्सफोर्ड के डॉक्टरेट, मुख्य-अध्ययनकर्ता रूपर्ट स्टुअर्ट स्मिथ ने ग्लेशियल झील के प्रकोप से बाढ़ के खतरे का आकलन करने के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल किया, जिसमें एक हिमस्खलन, भूस्खलन या रॉकफॉल एक सूनामी जैसी लहर को उत्पन्न करती है जो झील के किनारों को पूरी तरह भर देता है, जिसके कारण पालकोचा झील की वजह से हुआराज शहर के सामने आने वाली बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

स्टुअर्ट-स्मिथ ने कहा कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के माध्यम से जलवायु पर मानवजनित प्रभाव तापमान के बढ़ने के लिए जिम्मेदार है जैसा कि इस क्षेत्र में देखा गया है। अध्ययन से पता चलता है कि बढ़ते तापमान की वजह से पल्काराजू ग्लेशियर खिसका है, जिसके कारण बाढ़ का खतरा बहुत बढ़ गया है।

यह अध्ययन जर्मन अदालतों में चल रहे एक मामले के लिए भी नए सबूत प्रदान करता है जिसमें हुआराज के एक किसान शाऊल लुशनो लिउए ने ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने की भूमिका को लेकर जर्मनी के सबसे बड़े बिजली उत्पादक आरडब्ल्यूई पर मुकदमा दायर किया है। मुक़दमें में वर्तमान और भविष्य के बाढ़ के खतरों में कमी के उपायों की प्रतिपूर्ति की मांग की गई है।

स्टुअर्ट स्मिथ ने कहा हमारे निष्कर्ष, उत्सर्जन और सुरक्षा उपायों को लागू करने की आवश्यकता के बीच एक सीधा संबंध स्थापित करते हैं, साथ ही भविष्य में बाढ़ से होने वाले किसी भी नुकसान से निपटने की बात करते हैं।

यह पहली बार नहीं है जब हुआराज शहर को जलवायु परिवर्तन से खतरा हुआ है। 1941 में, एक झील और पहाड़ खिसकने के परिणामस्वरूप, पाल्कोकाचा झील से भयंकर बाढ़ ने कम से कम 1,800 लोगों की जान ले ली थी। अध्ययन में यह भी पाया गया कि यह बाढ़ मानवजनित जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है। यह जलवायु परिवर्तन के सबसे पहले पहचाने गए घातक प्रभावों में से एक है।

रो ने कहा दुनिया भर में, पहाड़ी ग्लेशियरों का खिसकना जलवायु परिवर्तन के सबसे स्पष्ट संकेतकों में से एक है। बाढ़ का खतरा कई पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों को है, लेकिन यह जोखिम विशेष रूप से हुआराज और साथ ही एंडीज और नेपाल, भारत और भूटान जैसे देशों में भी गंभीर है, जहां अधिकतर आबादी संभावित बाढ़ के पानी के रास्ते में रहते हैं।