जलवायु

बड़े पैमाने पर विस्थापन को बढ़ा रहा है वैश्विक तापमान

2070 तक पृथ्वी के लगभग 19 प्रतिशत हिस्से में कम से कम 29 डिग्री सेल्सियस तक औसत वार्षिक तापमान होगा

Pulaha Roy

6,000 से अधिक वर्षों से मनुष्यों ने अपनी बस्तियों को एक ऐसे जलवायु स्थान तक सीमित कर दिया है, जहां औसत वार्षिक तापमान 11 डिग्री सेल्सियस से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच है। वर्तमान में पृथ्वी 1.1 डिग्री सेल्सियस प्रतिवर्ष की दर से गर्म हो रही है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के बावजूद ये दर 20 साल में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगी।

मई, 2020 में अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में पेश “फ्यूचर ऑफ द ह्यूमन क्लाइमेट” रिपोर्ट के अनुसार, इससे साल 2070 तक पृथ्वी के लगभग 19 प्रतिशत हिस्से में औसतन वार्षिक तापमान कम से कम 29 डिग्री सेल्सियस तक होगा। इतना उच्च तापमान अभी पृथ्वी के सिर्फ 0.8 प्रतिशत हिस्से में ही होता है और इसके कारण विस्थापन को और बल मिलेगा।

ऐसी स्थिति में तीन अरब से अधिक लोग उपयुक्त स्थान और परिस्थितियों की तलाश में प्रवास पर मजबूर होंगे, वहीं अन्य नौ अरब लोग उस तरह के वार्षिक औसत तापमान का सामना करेंगे, जो अभी केवल सहारा जैसे सबसे गर्म मरूस्थल में अनुभव किया जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार, उस समय तक भारत, एशिया के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से एक होगा।

गर्मी का असर

डाउन टू अर्थ ने ह्यूमन क्लाइमेट नीश रिपोर्ट में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अनुमानों का विश्लेषण किया है और इसे सबसे खराब जलवायु परिदृश्य माना है। ये आरसीपी 8.5 का प्रतिनिधित्व करता है जहां बिना किसी नीतिगत रुकावट के उत्सर्जन जारी रहता है। साथ ही शेयर्ड इकोनॉमिक पाथवे (एसएसपी-5) का भी जहां जीवाश्म ईंधन एक बड़ी भूमिका निभाता है और ऊर्जा की अधिक खपत वाली जीवनशैली से ये और बढ़ता है। ये भविष्य के प्रवास हॉटस्पॉट पर एक नजर है।



सदियों से मनुष्य ऐसे जलवायु में रहते आए हैं, जहां पर औसत वार्षिक तापमान 11 डिग्री सेल्सियस से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच हो। वर्तमान में पृथ्वी का सिर्फ 0.8 प्रतिशत हिस्सा ऐसा है, जहां पर औसत वार्षिक तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता है

2070 तक जलवायु उपयुक्तता

2070 तक पृथ्वी के लगभग 19 प्रतिशत हिस्से में कम से कम 29 डिग्री सेल्सियस तक औसत वार्षिक तापमान होगा, इससे तीन अरब से अधिक लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ेगा

निष्कर्ष

एशिया: विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप में सबसे अधिक जनसंख्या उछाल का अनुमान है। भारत इससे सबसे अधिक प्रभावित होगा और 1.6 अरब लोगों (2070 तक अनुमानित जनसंख्या) में से आधे से अधिक लोग उच्च तापमान से प्रभावित होंगे। अनुमानों के अनुसार अन्य देश जैसे संयुक्त अरब अमीरात, कंबोडिया, दक्षिण वियतनाम और पूर्वी पाकिस्तान के कुछ हिस्से रहने लायक नहीं रह जाएंगे।

अफ्रीका: 2075 तक अफ्रीका की आबादी 1.2 अरब तक होगी। नाइजीरिया की राजधानी लागोस सबसे अधिक आबादी वाला शहर बनने की ओर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नाइजीरिया की अनुमानित 47.7 करोड़ जनसंख्या में से 81 प्रतिशत लोग उच्च तापमान के संपर्क में होंगे।

यूरोप: यह एकमात्र ऐसा महाद्वीप है, जहां 29 डिग्री सेल्सियस से अधिक वार्षिक औसत तापमान नहीं देखा जाएगा, लेकिन स्कैंडिनेविया, पूर्वी रूस और भूमध्यसागरीय देशों के कुछ हिस्सों में तापमान में वृद्धि का अनुभव होगा। युद्धग्रस्त देशों से शरणार्थियों के आने के कारण पहले से ही प्रभावित यूरोप में यह देखा जाना बाकी है कि प्रवास के मामले में वैश्विक तापमान यूरोप को कैसे प्रभावित करेगा।

उत्तर और लैटिन अमेरिका: ब्राजील का बड़ा हिस्सा, जो वर्तमान में एमेजॉन की स्वदेशी जनजातियों द्वारा बसा हुआ है, सबसे खराब जलवायु परिदृश्य का शिकार बन सकता है। अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में भी तापमान में वृद्धि का अनुभव होगा। 29 डिग्री सेल्सियस के वार्षिक औसत तापमान से कम से कम दो करोड़ लोग प्रभावित होंगे।

ओशिनिया: दुनिया के सबसे छोटे इस महाद्वीप में अत्यधिक तापमान से प्रभावित क्षेत्र पापुआ न्यू गिनी और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया रहेंगे। विस्थापन के अलावा वैश्विक तापमान के कई और नतीजे भी हो सकते हैं, जिसमें खाद्य सुरक्षा एक प्रमुख मसला है। जलवायु परिवर्तन ने पहले से ही एक ऐसा परिदृश्य बना दिया है जहां गर्मी और उमस इतनी गंभीर हो गई है कि कई बार यह मनुष्य के बर्दाश्त से बाहर हो जाता है।

द लैंसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक तापमान के कारण 2018 में 150 अरब से अधिक काम के घंटे का नुकसान हुआ। जैसे-जैसे दुनिया में वैश्विक तापमान बढ़ेगा, वैसे-वैसे यह नुकसान पहले दोगुना और फिर चौगुना तक बढ़ जाएगा। वहीं इससे उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा भी प्रभावित होगी।

समय के साथ परिवर्तन

जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होती जाएगी, वैसे-वैसे वर्तमान जलवायु में भी बदलाव आएगा और समय के साथ यह परिवर्तन भविष्य में विस्थापन की गति को बढ़ावा दे सकता है