इतिहास का दूसरा सबसे गर्म वर्ष 2020 रहा, लेकिन 2021 के शुरुआती तीन महीने रिकॉर्ड के नए संकेत दे रहे हैं। खासकर भारत के लिए ये तीन महीने खासे चौंकाने वाले हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि भारत के मौसम के लिए बेहद अहम एवं संवेदनशील माने जाने वाले हिमालय से मिल रहे संकेत अच्छे नहीं हैं। पिछले तीन माह के दौरान हिमालयी राज्यों में बढ़ती गर्मी और बारिश न होने के कारण वहां के लोग चिंतित हैं। डाउन टू अर्थ ने पांच हिमालयी राज्यों के लोगों के साथ-साथ विशेषज्ञों से बात की और रिपोर्ट्स की एक ऋंखला तैयार की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे हिमालयी राज्यों में मार्च में ही लू के हालात बन गए। दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा कि जनवरी-फरवरी में कई हिमालयी राज्यों में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी। अगली कड़ी में आपने पढ़ा, तपते हिमालय से पर्यटन और कृषि को हो रहा है नुकसान । अगली कड़ी में आपने पढ़ा, हिल स्टेशनों में भी चलाने पड़ते हैं एसी-कूलर । पढ़ें, आगे की कड़ी-
दुनिया के मुकाबले हिंदुकुश हिमालय अधिक तेजी से गर्म हो रहा है, जो चिंता का कारण है हिमालयी क्षेत्र में बढ़ती गर्मी की बात वैज्ञानिक भी कर रहे हैं। आईआईटीएम द्वारा जून 2020 में प्रकाशित असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर दी इंडियन रीजन रिपोर्ट में कहा गया है कि 1901 से 2014 के बीच हिमालयी क्षेत्र में 0.1 डिग्री सेल्सियस की दर से तापमान में वृद्धि हुई, जो 1951 से 2014 के बीच लगभग दोगुणा हो गया था।
तिब्बती पठार में हर दशक 0.5 डिग्री सेल्सियस की दर से वृद्धि हुई। यहां पिछले 60 साल में 3 डिग्री सेल्सियस की वृ़द्धि हो चुकी है। ऐसा तब है जब 1980 से वैश्विक तापमान 0.18 डिग्री की दर से बढ़ रहा है। हिंदुकुश में औसतन हर दशक में एक ठंडी रात कम हो रही है। यहां हर दशक में 1.7 गर्म रातें बढ़ रही हैं, वहीं 1.2 गर्म दिन हर दशक में बढ़ रहे हैं।
आईआईटीएम, पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं कि तापमान में मामूली सी भी वृद्धि से कई बड़े प्रभाव देखने को मिलते हैं। उदाहरण के लिए, ताजा क्लाइमेंट चेंज असेसमेंट रिपोर्ट में भारत में औसतन 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
वैश्विक अथवा स्थानीय तापमान में वृद्धि से चरम मौसमी घटनाएं बढ़ चुकी हैं और बारिश का पैटर्न बदल चुका है। जहां एक ओर अधिकतम दिनों तक सूखा रहता है तो दूसरी ओर भारी बारिश की घटनाएं बढ़ी हैं। हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के पीछे हटने की प्रक्रिया भी तेज हुई है।
ग्लेशियरों के पिघलने और सागर के गर्म होने के कारण भारतीय सागरों में समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। वह कहते हैं कि तापमान में वृद्धि से महासागरों और अन्य जल स्रोतों से अधिक वाष्पीकरण होता है जो वायुमंडल की नमी को बढ़ाता है। इस वजह से बारिश का पैटर्न बदल जाता है।
हिमालय के पहाड़ों का दक्षिण पश्चिम मानसूनी हवाओं पर काफी प्रभाव है और उनके गर्म होने से देश के बाकी हिस्सों में भी बारिश के पैटर्न में बदलाव हो सकता है। बारिश के पैटर्न में बदलाव से क्षेत्र में रहने वाले लोगों, विशेषकर किसानों के लिए पानी की कमी और उनकी आजीविका पर असर पड़ सकता है।
उल्लेखनीय है कि हिमालय राज्यों में खेती अधिकांशतः वर्षा आधारित होती है। पूरे हिमालय क्षेत्र की निगरानी करने वाली संस्था आईसीआईएमओडी के आकलन में पाया गया कि बढ़ती गर्मी का क्षेत्र के लोगों और पारिस्थितिकी पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
सबसे बड़ा असर खेती, फसलों की वृद्धि और उत्पादकता पर पड़ेगा, जिससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। जमीन के अधिक गर्म होने का मतलब मिट्टी की नमी का नुकसान भी होगा, जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। 1.5-2.5 डिग्री सेल्सियस के गर्म होने से चावल, गेहूं और मक्का जैसी खाद्य फसलों की उत्पादकता में कमी आएगी।
सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद के रामाराव सीए द्वारा प्रकािशत रिपोर्ट एटलस ऑन वलनरबिलिटी ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर टु क्लाइमेट चेंज के मुताबिक 1961-90 के मुकाबले 2021-50 में हिमालयी क्षेत्र के ज्यादातर जिलों में अधिकतम तापमान में कम से कम 1.5 से 2 डिग्री वृद्धि हो सकती है।
फरवरी 2019 को आईसीआईएमओडी ने हिंदुकुश हिमालय आकलन रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक औसत तापमान के मुकाबले हिमालय का तापमान अधिक तेजी से गर्म हो रहा है। भविष्य में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री तक सीमित भी कर दिया जाता है, तब भी हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र कम से कम 0.3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहेगा, जबकि उत्तर पश्चिम हिमालय और कराकोरम कम से कम 0.7 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होगा। इस अध्ययन का हिस्सा रहे गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति एसपी सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हिमालयी क्षेत्र वैश्विक तापमान के मुकाबले अलग व्यवहार कर रहा है।
1998-2014 के बीच जहां वैश्विक तापमान में कमी आई थी, लेकिन यह क्षेत्र लगातार गर्म होता रहा। 1940 से 1970 के बीच इस क्षेत्र में न्यूनतम तापमान में वृद्धि देखी गई थी, लेकिन 1970 के बाद से लगातार तापमान बढ़ रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 21वीं शताब्दी के अंत तक हिंदुकुश क्षेत्र के सतह का अनुमानित तापमान वैश्विक औसत की तुलना में अधिक रहेगा। सामान्य परिस्थितियों में सदी के अंत तक तापमान में 2.5+/-1.5 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि हो सकती है। जबकि असामान्य परिस्थितियों में यह तापमान 5.5+/-1.5 डिग्री तक बढ़ सकता है। हिंदुकुश क्षेत्र का गर्म होना वैश्विक जलवायु का नतीजा है। यह क्षेत्र गर्मियों के मौसम में गर्मी का स्रोत है और ठंड में हीट सिंक का।
तिब्बत के पठार के साथ हिमालयी क्षेत्र भारत में गर्मियों के मॉनसून को प्रभावित करता है, इसलिए इस क्षेत्र में मामूली बदलाव भी मॉनसून पर असर डाल सकता है, जबकि मॉनसून पहले ही बदलाव के दौर से गुजर रहा है।
एसपी सिंह कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्र में बढ़ती गर्मी से जैव विविधता का क्षरण हो रहा है। ग्लेशियर का पिघलना बढ़ सकता है और पानी की उपलब्धता कम हो सकती है। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवनयापन पर सीधा असर पड़ेगा। यहां गर्मी से तेज बर्फबारी और ग्लेशियरों के पिघलने के कारण बहुत सी झीलें बन गई हैं।
आईसीआईएमओडी ने अपने 1999 और 2005 के सर्वेक्षण में 801.83 वर्ग किलोमीटर में फैली 8,790 ग्लेशियर झीलें पता लगाई थीं। इनमें से 203 झीलों से बाढ़ का खतरा था। हिंदुकुश क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से खत्म हो रहे हैं। ये नदियों के बहाव के लिए लगातार पानी उपलब्ध करा रहे हैं। तिब्बत के पठार में नदी में बहाव 5.5 प्रतिशत बढ़ गया है। ऊंचाई पर स्थित अधिकांश झीलों में जलस्तर 0.2 मीटर प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। दूसरी तरफ इनका दायरा भी बढ़ रहा है। यह बदलाव किसी बड़े खतरे की आहट है।
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