जलवायु

तपता हिमालय: अब पहाड़ी लोग भी होंगे लू के शिकार

हिमालयी राज्यों में जनवरी-फरवरी में ठंड नहीं पड़ी, बर्फ नहीं गिरी और बारिश नहीं हुई। हिमालय के बदलते मौसम पर खास रिपोर्ट। पढ़ें, पहली कड़ी-

Raju Sajwan, Akshit Sangomla, Manmeet Singh, Rohit Prashar, Rayies Altaf

इतिहास का दूसरा सबसे गर्म वर्ष 2020 रहा, लेकिन 2021 के शुरुआती तीन महीने रिकॉर्ड के नए संकेत दे रहे हैं। खासकर भारत के लिए ये तीन महीने खासे चौंकाने वाले हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि भारत के मौसम के लिए बेहद अहम एवं संवेदनशील माने जाने वाले हिमालय से मिल रहे संकेत अच्छे नहीं हैं। पिछले तीन माह के दौरान हिमालयी राज्यों में बढ़ती गर्मी और बारिश न होने के कारण वहां के लोग चिंतित हैं। डाउन टू अर्थ ने पांच हिमालयी राज्यों के लोगों के साथ-साथ विशेषज्ञों से बात की और रिपोर्ट्स की एक ऋंखला तैयार की। पढ़ें, इस ऋंखला की पहली कड़ी-

मार्च का अंत होते-होते देश के कई राज्यों में अधिकतम तापमान सामान्य से काफी अधिक दर्ज किया गया और इन राज्यों में लू की स्थिति बन गई है। बेशक मार्च में लू की स्थिति बनना सामान्य बात नहीं है, लेकिन सबसे असामान्य बात यह है कि इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश भी शामिल है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक, 30 मार्च को देश के कई हिस्सों में लू की स्थिति बनी। इनमें हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों के अलावा मध्यप्रदेश, झारखंड, विदर्भ, ओडिशा, दक्षिण पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान शामिल हैं। विभाग के मुताबिक, 30 मार्च को हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड उन राज्यों में शामिल रहे, जहां का अधिकतम तापमान सामान्य से 5.1 डिग्री सेल्सियस से अधिक रिकॉर्ड किया गया। 

मौसम विज्ञान केंद्र, शिमला के मुताबिक 30 मार्च को सोलन में अधिकतम तापमान सामान्य से आठ डिग्री, शिमला व बिलासपुर में 7 डिग्री और ऊना व हमीरपुर में 6 डिग्री अधिक रहा। सबसे अधिक तापमान ऊना का 36 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। वहीं, 31 मार्च को उत्तराखंड के खटीमा का अधिकतम तापमान 37 डिग्री दर्ज किया गया।  

बारिश के मामले में भी हिमाचल प्रदेश में सर्दियों में होने वाली बारिश (विंटर रेन) सामान्य से काफी कम रही। मार्च में भी हिमाचल प्रदेश में सामान्य से 62 फीसदी कम बारिश हुई। जबकि इससे पहले फरवरी में 80 फीसदी, जनवरी में 58 फीसदी कम बारिश हुई थी। मौसम विज्ञान केंद्र के प्रभारी मनमोहन सिंह कहते हैं कि अभी पूरे प्रदेश में लू जैसी स्थिति नहीं बनी है, लेकिन इतना जरूर है कि कुछ इलाकों में सामान्य से अधिक तापमान रिकॉर्ड किया जा रहा है। इससे पहले 2010 में भी ऐसे ही हालात बने थे। 

दरअसल अकेला हिमाचल प्रदेश ही नहीं, बल्कि लगभग सभी हिमालयी राज्य इस साल गर्मी और कम बारिश का सामना कर रहे हैं। जनवरी-फरवरी जिसे सर्दी का सीजन कहा जाता है, उस दौरान हिमालयी राज्यों में रिकॉर्ड तोड़ अधिकतम तापमान दर्ज किया गया। दिलचस्प बात यह रही कि ला-नीना का प्रभाव होने के बावजूद अधिकतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। यहां यह उल्लेखनीय है कि ला-नीना की वजह से ठंड बढ़ती है।

जर्मनी के पोट्सडम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च की जलवायु वैज्ञानिक एलिना सुरोवयतकिना कहती हैं, “बड़े पैमाने पर वायुमंडलीय प्रक्रियाओं ने भारत में जनवरी और फरवरी में मौसम को प्रभावित किया, जिससे चरम विसंगतियां बनी”। उत्तर भारत में जनवरी के पहले और आखिरी सप्ताह में दो बार शीत लहरें चली। इसके बाद से तापमान में उछाल आने लगा। 28 फरवरी को अंत उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजेड) के भीतर हिंद महासागर के ऊपर बादल बने, जो घने हो गए और दक्षिण की ओर स्थानांतिरत हो गए, जिससे आकाश साफ हो गया। 

वह कहती हैं कि देश में प्रतिचक्रवात के बनने से अधिकतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई। साथ ही इसके चलते दैनिक तापमान में भी अत्यधिक अंतर देखा गया है। इसमें कोई शक नहीं है कि मानव जनित ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की वजह से तापमान बढ़ रहा है।

देश के अन्य हिस्सों में जनवरी और फरवरी के दौरान तापमान सामान्य से अधिक रहा, ऐसा तब हो रहा है, जबकि भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में मध्यम ला नीना की स्थिति बनी हुई है, जो कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में ठंड का कारण बनी हुई है। ला नीना, अल नीनो के विपरीत ठंडा माना जाता है। यह मध्य और पूर्व-मध्य भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के असामान्य ठंड का कारण बनता है और आमतौर पर भारत में सामान्य सर्दियों की तुलना में अधिक ठंडा माना जाता है।

वर्तमान ला नीना का प्रभाव अक्टूबर 2020 से शुरू हो गया था, लेकिन भारत में इसकी वजह से अधिक ठंड का अहसास नहीं हुआ। यहां तक कि नेशनल ओशिएनिक एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के मुताबिक 2020 को दूसरा सबसे अधिक गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया। इतना ही नहीं, अगस्त के बाद से भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर का पानी ठंडा गया था, जिसने ला नीना के संकेत दे दिए थे।

इसे ध्यान में रखते हुए यूरोपीय संघ के कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने विश्लेषण करते हुए कहा था कि 2020 और 2016 संयुक्त रूप से वैश्विक तौर पर गर्म वर्ष दर्ज किए गए हैं। यह भी तब, जब कि 2016 में भी बहुत मजबूत अल नीनो का असर देखा गया था। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) का अनुमान है कि मध्यम अल-नीनो की स्थिति मई माह तक जारी रहेगी और तब तक गर्मी से कोई राहत नहीं मिलेगी।

आईएमडी के मुताबिक, गर्मी (मार्च से मई) के मौसम में तापमान काफी अधिक रह सकता है। ऐसा देश के लगभग सभी हिस्सों में होगा, जिसमें हिमालयी राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश प्रमुख हैं।