जलवायु

ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्रीनलैंड की तैरती बर्फ में 42 फीसदी की गिरावट आई: वैज्ञानिक

वैज्ञानिक इसके पीछे समुद्र के तापमान में वृद्धि होना बता रहे हैं, जिससे क्षेत्र में गर्म धाराएं बह रही हैं और ग्लेशियर पिघल रहे हैं तथा पीछे हट रहे हैं

Dayanidhi

हाल के दशकों से ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर तेजी से पिघल रही है, जिसके कारण समुद्र के स्तर में 1.4 मिमी की हर साल वृद्धि हो सकती है। समुद्र में उभरते ग्लेशियर से जुड़ी हुई तैरती बर्फ के साथ तीन ग्लेशियर बचे हैं। नियोघलवफजर्ड्सब्रे जो उत्तर में 79 डिग्री अक्षांश पर स्थित है, इसलिए बोलचाल की भाषा में इसे 79एनजी कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण इसमें लगातार गिरावट देखी जा रही रही है।

यह शोध जर्मनी के हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर पोलर एंड मरीन रिसर्च में अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के डॉ. ओले जीसिंग और उनके सहयोगियों द्वारा किया गया है। शोधकर्ताओं ने बर्फ के बारे में पता लगाने के लिए रिमोट सेंसिंग, हवाई और जमीनी स्तर के मापों का उपयोग किया। यह शोध द क्रायोस्फीयर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है

उन्होंने पाया कि, 1998 के बाद से तैरती बर्फ 42 फीसदी तक पतली हो गई है। वैज्ञानिक इसके पीछे समुद्र के तापमान में वृद्धि होना बता रहे हैं, जिससे क्षेत्र में गर्म धाराएं बह रही हैं और ग्लेशियर पिघल रहे हैं तथा पीछे हट रहे हैं।

2010 के बाद से शोध में ग्लेशियर की सतह और आंतरिक संरचना की छवियां उत्पन्न करने के लिए एयरबोर्न रडार का उपयोग किया गया, जिससे पता चलता है कि 500 मीटर ऊंचे और एक किलोमीटर चौड़े ग्लेशियर के नीचे चैनल ने आधार पर ग्लेशियर को नष्ट कर दिया है। एक डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान अटलांटिक में उत्पन्न होने वाला खारे पानी के द्रव्यमान को बढ़ा देते हैं, जो 500 मीटर से 1000 मीटर की गहराई पर बहता है।

यह अटलांटिक के घने खारे पानी को ग्लेशियर के आधार पर लाता है, जहां यह नीचे की ओर बहता है और आसपास की बर्फ को गर्म करता है, जिससे वह पिघलती है। पिघला हुआ पानी फिर ग्लेशियर केआधार से ऊपर की ओर बहता है और ग्लेशियर का आधार तेजी से पिघलता है, जिसके कारण सबग्लेशियल चैनल भी बनते हैं और ग्लेशियर के नीचे ऊपर की ओर फैलते हैं जो पिघलने की दर को और बढ़ाते हैं।  

इस सबग्लेशियल के पिघलने के कारण पूरे ग्लेशियर की सतह हर साल 7.6 मीटर कम हो रही है और पिघला हुआ पानी हर साल 150 मीटर तक तेजी से बह रहा है। एक विशेष स्थान पर, 2010 के बाद से ग्लेशियर की सतह लगभग 57 मीटर कम हो गई है। इस सबग्लेशियल चैनल के ऊपर केवल 190 मीटर बर्फ बची है, जो आसपास की बर्फ की मोटाई का 30 फीसदी है, जिससे यह ऊपर और नीचे की ओर तेजी से पिघल सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्म वायुमंडलीय तापमान के अनुरूप गर्मियों में ग्लेशियर के पिघलने से पिघले पानी की दरों और मात्रा में वृद्धि का भी सुझाव दिया गया है। दरअसल, शोधकर्ताओं ने पाया कि 2005 के बाद से ग्लेशियर के 70 किमी के क्षेत्र में 50 फीसदी तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से ऊपर था, जिससे गर्मियों में सतह का पिघलना बढ़ गया।

ग्लेशियर के उभरे हुए हिस्से में दरारें बन गई हैं जो टूटने का एक संकेत हो सकता है और ग्लेशियर के पीछे हटने की प्रक्रिया को बढ़ा देगा।

शोधकर्ताओं ने गौर किया कि 2014 तक के पिछले अध्ययनों से पता चला है कि 1999 के बाद से ग्लेशियर 30 फीसदी पीछे हट गया है, इसलिए निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान तक 42 फीसदी की गिरावट हाल के वर्षों में पिघलने में तेजी का संकेत नहीं देती है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सदी के दौरान जारी बढ़ता तापमान  और बर्फ एल्बिडो फीडबैक के प्रभाव इस चीज को नहीं बदलेंगे।

आइस अल्बेडो फीडबैक 'सफेद' बर्फ को पिघलाने का काम करता है, जिससे 'अंधेरी' भूमि का अधिक हिस्सा सूर्य से आने वाले सौर विकिरण के संपर्क में आ जाता है। इसलिए, इस विकिरण का अधिक भाग अंतरिक्ष में वापस परावर्तित होने के बजाय भूमि द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है, जिससे निकटवर्ती बर्फ पिघल जाती है, जो अधिक 'अंधेरे' सतह को उजागर करती है और इसलिए लूप जारी रहता है।

आप जाड़ों में काले कपड़े पहनने के बारे में सोचते हैं, जो आपको सफेद कपड़ों की तुलना में गर्म रखता है। वहीं गर्मियों में सफेद कपड़े पहनते हैं जो गर्मी को प्रतिबिंबित करने और ठंडे तापमान को बनाए रखने में मदद करता है।

फिर भी, जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन जारी रहेगा, बर्फ की चादरें पिघलती रहेंगी और ध्रुवीय क्षेत्र गर्म महासागरों के प्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएंगे, जिसके कारण प्रकृति पर कई तरह के असर पड़ेंगे, जिन्हें हम अपना घर कहते हैं।