जलवायु

तेजी से पिघल रहे हैं एशिया के ऊंचे पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियर

Lalit Maurya

एशिया में जिस तरह गर्मियों के दौरान तापमान बढ़ रहा है, उसका असर ऊंचे पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियरों पर भी पड़ रहा है, और वो पहले के मुकाबले कहीं तेजी से से पिघल रहे हैं। यह जानकारी सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आई है। हैरानी की बात यह है कि जिन क्षेत्रों में पहले ग्लेशियर बढ़ रहे थे वहां भी अब ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 1960 के दशक में यूएस कोरोना जासूसी उपग्रह और 1970 के दशक में हेक्सागोन जासूसी उपग्रह के साथ-साथ कई आधुनिक उपग्रहों से प्राप्त चित्रों का उपयोग किया है। हिमनदविदों ने एशिया के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में विभिन्न ग्लेशियरों की जांच की है।  इसमें हिमालय से लेकर कई अन्य प्रमुख पर्वत श्रृंखलाएं जैसे पामीर, टीएन शान और तिब्बत के पहाड़ शामिल हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार ग्लेशियरों का व्यवहार यह स्पष्ट करता है कि उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन अपना असर दिखा रहा है। गौरतलब है कि ग्लेशियरों के यह ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र एशिया की कुछ सबसे बड़ी नदियों के स्रोत हैं, जिन पर करोड़ों लोग अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए निर्भर हैं। जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में छपे इस शोध के निष्कर्ष दिखाते हैं, कि भविष्य में इस क्षेत्र में काफी हद तक बर्फ पिघल सकती है। जिससे आने वाले दशकों में यह ग्लेशियर जो जल के विश्वसनीय स्रोत हैं, धीरे-धीरे खत्म होने लगेंगें।

1960 के बाद से लगातार बढ़ रही है ग्लेशियरों के नुकसान की दर

सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय से जुड़े इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता अतनु भट्टाचार्य ने बताया कि, "परिणाम दिखाते हैं कि 1960 के दशक से ग्लेशियर कितने घट चुके हैं साथ ही वो पहले के मुकाबले कितने पतले हो गए हैं। इस शोध में लगभग छह दशकों के दौरान हिमालय, तिब्बती पर्वत श्रृंखला, टीएन शान और पामीर सहित एशिया के कई उंचें पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियर के उतार-चढ़ाव का पहला बहु-अस्थायी रिकॉर्ड प्रदान किया गया है।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता डॉ टोबियास बोल्च, जिन्होंने यह अध्ययन शुरू और निर्देशित किया है, ने जानकारी दी कि "एशिया के अधिकांश ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में 1960 के बाद से ग्लेशियरों के नुकसान की दर लगातार बढ़ रही है। साथ ही बर्फ उन क्षेत्रों में भी घट रही है, जहां पिछले कई दशकों से ग्लेशियरों ने बहुत कम हिस्सा खोया था।

वहां शोधकर्ताओं ने ग्लेशियर को बड़े पैमाने पर होते नुकसान और बदलती जलवायु के बीच की कड़ी की भी जांच की है। इसे समझने के लिए उन्होंने अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित मौसम केंद्रों के नेटवर्क से प्राप्त माप और क्लाइमेट मॉडलिंग से प्राप्त आंकड़ों की मदद ली है, जिससे वो जान सकें कि किस जलवायु सम्बन्धी कारक के कारण वहां उस ऊंचाई पर बर्फ में कमी आ रही है।

नॉर्थेर्न ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय, कनाडा से जुड़ी डॉ कृति मुखर्जी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि, “परिणाम बताते हैं कि वहां घटती बर्फ और उसके नुकसान की दर में होने वाली वृद्धि मुख्य रूप से गर्मियों में बढ़ते तापमान का नतीजा हैं, जबकि उसमें परिवर्तनशीलता के लिए बारिश में आ रहे बदलाव जिम्मेवार हैं।