रिपोर्ट के मुताबिक, टीम ने यह जानने का प्रयास किया कि पिछले 11,000 सालों में उनकी सीमा की तुलना में आज उष्णकटिबंधीय ग्लेशियर कितने छोटे रह गए हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

दुनिया भर में ग्लेशियर अनुमान से कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं, एंडीज की चट्टानें दे रही हैं बड़ा संकेत

शोध रिपोर्ट के मुताबिक, एंडीज पर्वत में चार ग्लेशियरों के आस-पास की चट्टानों के नमूनों के विश्लेषण से पता चला है कि ग्लेशियरों के पीछे हटने की घटना बहुत तेजी से हो रही है।

Dayanidhi

पेरू के एंडीज पर्वत जहां प्राचीन काल से बर्फ से ढकी हुई चट्टानें हाल ही में बिना बर्फ के दिखने लगी हैं, यह होलोसीन युग, यानी 11,700 सालों से अधिक पुराने उष्णकटिबंधीय ग्लेशियर अब सिकुड़ गए हैं। जिससे पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय इलाके पहले से ही होलोसीन युग की सीमाओं को पार कर चुके हैं।

वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमान लगाया है कि ग्लेशियर पिघलेंगे या पीछे हटेंगे, क्योंकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तापमान बढ़ रहा है। लेकिन एंडीज पर्वत में चार ग्लेशियरों के आस-पास की चट्टानों के नमूनों के विश्लेषण से पता चलता है कि ग्लेशियरों के पीछे हटने की घटना बहुत तेजी से हो रही है।

बोस्टन कॉलेज के शोधकर्ताओं ने साइंस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि हमारे पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि ये ग्लेशियर पिछले 11,000 सालों की तुलना में आज बहुत छोटे हो गए हैं।

यह देखते हुए कि आधुनिक ग्लेशियरों के पीछे हटने का ज्यादातर कारण तापमान में वृद्धि है। कम बर्फबारी या बादलों के आवरण में बदलाव के विपरीत शोध रिपोर्ट के निष्कर्षों से पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय इलाके पहले से ही अपने होलोसीन सीमा से बाहर और एंथ्रोपोसीन में पहुंच कर गर्म हो चुके हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लेशियरों को अब होलोसीन इंटरग्लेशियल काल के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। जो एक ऐसा युग था जिसने सभ्यता का जन्म होते देखा, जहां पानी का प्रवाह और समुद्र का स्तर तय होता था जिसके आधार पर यह तय किया जाता था कि शहर और कस्बे कहां बनें और जहां कृषि और व्यावसायिक गतिविधि होंगी। इसके बजाय, उन्हें एक ऐसे युग में ले जाया जा सकता है जो शायद अपने अंत की ओर बढ़ रहा है जिसे एंथ्रोपोसीन कहा जाता है

शोध रिपोर्ट के निष्कषों से पता चलता हैं कि दुनिया के अधिकतर ग्लेशियर अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी से पीछे हट रहे हैं, यह दशकों पहले होने वाली एक गंभीर जलवायु में बदलाव के कारण होने वाली घटना है।

रिपोर्ट के हवाले से शोधकर्ता ने कहा यह ग्रह का पहला बड़ा इलाका है, जहां हमारे पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि ग्लेशियर एक महत्वपूर्ण सीमा को पार कर चुके हैं।

दुनिया भर में पिछली सदी से ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि पिछले कई सहस्राब्दियों में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव की सीमा की तुलना में इस पीछे हटने की मात्रा कितनी है। टीम ने यह जानने का प्रयास किया कि पिछले 11,000 सालों में उनकी सीमा की तुलना में आज उष्णकटिबंधीय ग्लेशियर कितने छोटे रह गए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने कोलंबिया, पेरू और बोलीविया की यात्रा की, ताकि उष्णकटिबंधीय एंडीज में फैले चार पिघलते ग्लेशियरों के रसायन विज्ञान को मापा जा सके। दो दुर्लभ समस्थानिक - बेरिलियम-10 और कार्बन-14 की सतहों में तब बनते हैं, जब वे बाहरी अंतरिक्ष से ब्रह्मांडीय विकिरण के संपर्क में आते हैं।

चट्टानों के इन समस्थानिकों की मात्रा को मापकर यह निर्धारित किया जा सकता है कि अतीत में ये चट्टानें कितने समय तक बिना बर्फ के रही थी, जो हमें बताता है कि ग्लेशियर आज की तुलना में कितनी बार इनका आकार घटा, कुछ हद तक जैसे कि सनबर्न से पता चलता है कि कोई व्यक्ति कितनी देर तक धूप में रहा होगा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि शोधकर्ताओं द्वारा चार उष्णकटिबंधीय ग्लेशियरों के सामने मापे गए 18 बेडरॉक नमूनों में से किसी में भी बेरिलियम-10 या रेडियोकार्बन-14 नहीं पाया गया। इससे हमें पता चलता है कि पिछले हिमयुग के दौरान इन ग्लेशियरों के बनने के बाद से ब्रह्मांडीय विकिरण के संपर्क में आने से पहले कभी कोई बड़ा बदलाव नहीं आया था।