जलवायु

जलवायु परिवर्तन और बाल विवाह के दोहरे संकट को झेलती बच्चियां, फिर भी योजनाओं से हैं नदारद

विश्लेषण से पता चला है कि अब से 2030 के बीच, करीब 60 फीसदी यानी 93.1 करोड़ बच्चियां कम से कम एक चरम मौसमी घटना जैसे बाढ़, सूखा या लू का सामना करने को मजबूर होंगी

Lalit Maurya

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर जारी नई रिपोर्ट में सेव द चिल्ड्रन ने चेताया है कि 2050 तक करीब चार करोड़ बच्चियों को बाल विवाह और जलवायु परिवर्तन के दोहरी संकट का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन इसके बावजूद विडम्बना देखिए की दुनिया में केवल दो फीसदी से भी कम राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं में लड़कियों की जरूरतों और साझेदारी पर ध्यान दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक हर साल करीब 90 लाख बच्चियों को जलवायु से जुड़ी आपदाओं और बाल विवाह के गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ता है। 

विश्लेषण से पता चला है कि अब से 2030 के बीच, करीब 60 फीसदी यानी 93.1 करोड़ बच्चियां कम से कम एक चरम मौसमी घटना जैसे बाढ़, सूखा या लू का सामना करने को मजबूर होंगी। वहीं 2021 में कम आय वाले देशों में रहने वाली करीब 40 लाख लड़कियां इन जलवायु सम्बन्धी घटनाओं के चलते अपनी शिक्षा पूरी करने से वंचित रह गई थी। इतना ही नहीं दुनिया भर में रहने वाले करीब 4.9 करोड़ लोग, जिनमें बच्चियां भी शामिल हैं, भुखमरी की कगार पर हैं। 

"ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2023: गर्ल्स एट द सेंटर ऑफ द स्टॉर्म" नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में करीब दो-तिहाई बाल विवाह उन देशों में होते हैं जहां जलवायु परिवर्तन का जोखिम औसत से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में करीब 2.99 करोड़ किशोर बच्चियां उन 10 देशों में रह रही हैं, जो बाल विवाह और जलवायु से जुड़े जोखिमों के लिए हॉटस्पॉट हैं। इन देशों में लड़कियों के कम उम्र में विवाह होने के साथ-साथ जलवायु सम्बन्धी खतरों की चपेट में आने की आशंका सबसे अधिक है।

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके मुताबिक अगले 27 वर्षों में इन हॉस्पॉट में बच्चियों का आंकड़ा करीब 33 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 3.99 करोड़ पर पहुंच जाएगा। इन देशों में बांग्लादेश, बुर्किना फासो, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड, गिनी, मलावी, माली, मोजांबिक, नाइजर और दक्षिण सूडान शामिल हैं। रिपोर्ट का कहना है कि इन देशों में युवाओं की आबादी तेजी से बढ़ रही है। 

गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन और बाल विवाह के बीच गहरा सम्बन्ध है। यह बात कई बार साबित भी हो चुकी है। ऐसा ही एक उदाहरण इथियोपिया में सामने आया था जब 2021 में पड़े भीषण सूखे और खाद्य संकट के बाद बाल विवाह के मामलों में 119 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। इसी तरह बांग्लादेश को लेकर 2020 में किए एक अध्ययन से पता चला है कि भीषण गर्मी के बाद बांग्लादेश में 11 से 14 वर्ष की बच्चियों में बाल विवाह की आशंका दोगुनी देखी गई थी।

2022 में पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ में भी ऐसा ही देखने को मिला था, जिसने 6.4 लाख बच्चियों पर हिंसा और बाल विवाह के जोखिम को बढ़ा दिया था। इसी तरह हाल ही में जिम्बाब्वे में भी इस तरह की रिपोर्टें सामने आई हैं कि वहां दो जून की रोटी की चाह में बच्चियां खुद अपने विवाह की पहल कर रही हैं। 

बांग्लादेश-अफ्रीका में बेहद चिंताजनक है स्थिति

जलवायु संकट और बाल विवाह ने बांग्लादेश और उप-सहारा अफ्रीका में लड़कियों के अधिकारों के लिए गंभीर स्थिति पैदा कर दी है। यह वो जगह हैं जहां इससे प्रभावित शीर्ष 10 देश स्थित हैं। इनमें भी सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, चाड और गिनी सबसे गंभीर चुनौतियों का सामना करने को मबजूर हैं। ये देश न केवल बेहद खतरनाक बल्कि बार-बार चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं कई मामलों में यह देश संघर्ष, उच्च गरीबी दर, लैंगिक असमानता और भूख जैसे संकटों से भी जूझ रहे हैं।

सिएरा लियोन में रहने वाली केपेमेह* जब 12 साल की थी तभी एक व्यक्ति ने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा था। चूंकि उनके माता-पिता जोकि पेशे से किसान हैं उस वक्ते जलवायु आपदाओं से जूझ रहे थे। उनके मुताबिक वो व्यक्ति उनके माता-पिता के पास आया और उनके सामने शादी की इच्छा व्यक्त की, आर्थिक दबाव के चलते वो इस विवाह के लिए सहमत हो गए। लेकिन केपेमेह अथक प्रयासों से इस विवाह को टालने में कामयाब रही। हालांकि दुनिया में करोड़ों बच्चियां केपेमेह जितनी भाग्यशाली नहीं होती। उन्हें पारिवारिक दबाव और स्थिति को देखते हुए विवाह के लिए मजबूर होना पड़ता है। अब केपेमेह अपने समुदाय में भी लड़कियों को शिक्षा मिल सके, इसके लिए संघर्ष कर रही हैं।

केपेमेह का कहना है कि, "बाल विवाह गरीबी के कारण होते हैं।" जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर उनका कहना है कि जलवायु बदल गई है। हमारे माता-पिता कृषि पर निर्भर हैं। जब बारिश होनी चाहिए तब वो नहीं होती। वहीं शुष्क और बरसात दोनों मौसमों में बारिश होती है, तब भी जब उसे नहीं होना चाहिए। इसकी पुष्टि अन्य शोध में भी हुई है।

रिसर्च से पता चला है कि बारिश में आया दस फीसदी का बदलाव बाल विवाह के मामलों में एक फीसदी की वृद्धि से जुड़ा है। बाल विवाह के मामलों में संघर्ष की भी बड़ी भूमिका है। संघर्ष से होने वाली मौतों में हर दस गुना वृद्धि के साथ बाल विवाह के प्रसार में 7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक जल्द शादी होने के लड़कियों पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। शादी के बाद उनकी शिक्षा पूरी होगी इसके बेहद कम संभावनाएं रह जाती हैं। इससे उनके लिए आर्थिक चुनौतियां भी पैदा हो जाती हैं। अक्सर यह बच्चियां समाज से अलग-थलग पड़ जाती हैं। इसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

साथ ही उन्हें शारीरिक और यौन हिंसा जैसे खतरों का भी सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं इसका असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ता है, क्योंकि बाल विवाह का शिकार इन बच्चियों को गर्भावस्था और प्रसव सम्बन्धी गंभीर जटिलताओं का भी सामना करना पड़ सकता है। हालांकि देखा जाए तो इस उम्र में उनका शरीर इसके लिए तैयार ही नहीं होता। देखा जाए तो यह सीधे तौर पर मानव अधिकारों का हनन है।

दुनिया में बाल विवाह की समस्या कितनी विकट है इसका अंदाजा यूएनएफपीए द्वारा जारी आंकड़ों से लगाया जा सकता है। इन आंकड़ों के मुताबिक हर साल करीब 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है। बाल विवाह एक ऐसी सामाजिक कुरीति है, जो सदियों से मानव समाज का हिस्सा रही है। भले ही पिछले कुछ दशकों में इस तरह के मामलों में कमी जरूर आई है, लेकिन सच यही है कि जलवायु में आता बदलाव और इस समस्या को कहीं ज्यादा प्रभावित कर रहा है।

भारत में भी 21.7 करोड़ हैं बाल विवाह का शिकार

यूनिसेफ ने भी अपनी रिपोर्ट "इस एन एन्ड टू चाइल्ड मैरिज विदइन रीच" में इस बात की पुष्टि की है कि जो मौजूदा हालात हैं, उन्हें देखते हुए इस कुरीति को पूरी तरह जड़ से खत्म करने में अभी और 300 वर्ष लगेंगें।

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में करीब 64 करोड़ महिलाओं और युवतियां का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो गया था। बाल विवाह की शिकार इनमें से करीब आधी महिलाएं और बच्चियां दक्षिण एशिया में रह रही हैं, जिनकी कुल संख्या 29 करोड़ है।

इसके बाद बाल विवाह की करीब 20 फीसदी (12.7 करोड़) शिकार उप सहारा अफ्रीका में, 15 फीसदी (9.5 करोड़) पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में जबकि नौ फीसदी (5.8 करोड़) महिलाएं और बच्चियां दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन की हैं। यदि सिर्फ भारत की बात करें तो देश में करीब 21.7 करोड़ महिलाओं और बच्चियों का विवाह 18 की उम्र से पहले हो गया था।

सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट 'ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021' से पता चला है कि बाल विवाह, हर रोज 60 से ज्यादा बच्चियों की जान लील रहा है। मतलब की इसकी वजह से हर साल 22,000 से ज्यादा बच्चियों की मौत हो जाती है। इसकी वजह से दक्षिण एशिया में हर रोज छह बच्चियों अपनी जान गंवा रही हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में बच्चियां और उनके परिवार सहित कम से कम 4.9 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर हैं। इसके लिए लम्बे समय तक पड़ता सूखा और यूक्रेन में जारी संघर्ष की वजह से है। 

सेव द चिल्ड्रेन की सीईओ इंगर एशिंग ने सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, संयुक्त राष्ट्र और इससे सम्बंधित अन्य लोगों से भुखमरी के साथ-साथ जलवायु संकट को लड़कियों के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। उनका कहना है कि, बच्चियों को आपदाओं के बाद पैदा हुई अराजक स्थिति में यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का सामना करने को मजबूर होना पड़ सकता है। जहां भीड़भाड़ और सुरक्षित सेवाओं की कमी उन्हें असुरक्षित बनाती है।"

उनके मुताबिक बच्चियों को 18 साल की उम्र से पहले ही विवाह के लिए मजबूर किया जाता है, क्योंकि वर्षों से सूखे का सामना कर रहा परिवार सभी को भरपेट खाना खिलाने में असमर्थ होता है।

उनका आगे कहना है कि दुनिया में बढ़ता जलवायु संकट पहले ही लड़कियों के जीवन और भविष्य को अन्धकार में धकेल रहा है। हालांकि बच्चों पर इन असमान प्रभावों के बावजूद दुनिया भर में दो फीसदी से भी कम राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं लड़कियों को संबोधित करती हैं और उनकी जरूरतों और भागीदारी पर प्रभावी ढंग से विचार करती हैं।

ऐसे में इस समस्या की गंभीरता पर ध्यान देना जरूरी है। न केवल कानूनी तौर पर बल्कि सामाजिक तौर पर भी बाल विवाह का विरोध जरूरी है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि बच्चियों को भी भी अपने फैसले लेने का हक है। उन्हें भी पढ़ने-लिखने, खेलने और बेहतर भविष्य बनाने का अधिकार है और यह उनसे छीना नहीं जा सकता।

* बदला हुआ नाम