जलवायु

जी20 शिखर सम्मेलन: नई दिल्ली में पर्यावरण से जुड़े विभिन्न लक्ष्यों पर नेताओं में सर्वसम्मति से बनी सहमति

देशों ने जलवायु परिवर्तन सहित पर्यावरण से जुड़ी अन्य चुनौतियों से निपटने के लिए अपने प्रयासों में तत्काल तेजी लाने का संकल्प लिया है

Akshit Sangomla, Lalit Maurya

नई दिल्ली में चल रहे जी20 शिखर सम्मलेन के दौरान नौ सितंबर, 2023 को दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने जलवायु परिवर्तन सहित पर्यावरण से जुड़ी अन्य चुनौतियों से निपटने के लिए अपने प्रयासों में तत्काल तेजी लाने का वादा किया है।

इस दौरान जारी घोषणा पत्र में नेताओं ने सतत विकास के लक्ष्यों के साथ जलवायु वित्त, स्वच्छ ऊर्जा, प्लास्टिक प्रदूषण, आपदाओं के जोखिम को कम करना, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और बहाली के साथ महासागर आधारित अर्थव्यवस्था और मजबूत बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसे मुद्दों से निपटने की बात कही है।

इस घोषणा का एक लक्ष्य पेरिस समझौते और तापमान सम्बन्धी लक्ष्यों को पहले से ज्यादा मजबूत और अधिक प्रभावी बनाकर जलवायु में आते बदलावों का सामना करना है। इसमें निष्पक्षता को ध्यान में रखना और यह स्वीकार करना शामिल है कि देशों की व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर अलग-अलग जिम्मेदारियां और क्षमताएं (सीबीडीआर) हैं।

इस संदर्भ में सीबीडीआर से जुड़े सिद्धांतों का समावेश दिलचस्प है, क्योंकि अमेरिका जैसे कुछ विकसित जी20 देश अन्य संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) आयोजनों और प्रक्रियाओं में इन सिद्धांतों का समर्थन करने या उन पर जोर देने से झिझक रहे हैं।

उदाहरण के लिए, 2023 तक हानि और क्षति कोष (एलडीएफ) के संचालन से संबंधित बैठकों में भी ऐसा देखा गया है। बता दें कि एलडीएफ की स्थापना मिस्र के शर्म अल-शेख में नवंबर 2022 में हुए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के 27वें सम्मेलन (कॉप-27) के दौरान की गई थी।

जी20 देशों ने इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट का भी उल्लेख किया है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन 2020 से 2025 के बीच अपने उच्चतम बिंदु तक पहुंचने की आशंका है। यह उन परिदृश्यों में है जिनका लक्ष्य बढ़ते तापमान को न्यूनतम ओवरशूट के साथ 1.5 या दो डिग्री सेल्सियस पर सीमित करना है। इसी को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई की गई है।

हालांकि यह भी कहा गया है कि सभी देश उस समय सीमा के भीतर अपने उत्सर्जन के चरम तक नहीं पहुंच सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जब उत्सर्जन अपने चरम पर होता है तो वो सतत विकास, गरीबी से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयासों, निष्पक्षता और प्रत्येक देश की अनूठी परिस्थितियों जैसे कारकों से प्रभावित हो सकता है।

जी20 देशों ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े बड़े आर्थिक खतरों और बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर होने के रास्तों पर भी जोर दिया है। इस दौरान जी20 देशों ने प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ) को पूरी तरह और प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने का भी वादा किया है। उन्होंने अन्य देशों से भी इस प्रतिबद्धता में शामिल होने का आग्रह किया है।

देशों ने 2040 तक स्वैच्छिक रूप से भूमि क्षरण को 50 फीसदी तक कम करने पर जी20 की महत्वाकांक्षा का समर्थन किया है। उन्होंने गांधीनगर कार्यान्वयन रोडमैप और गांधीनगर सूचना मंच पर कोई विवरण दिए बिना उस चर्चा को उल्लेख किया है।

वनों के संबंध में, जी20 दस्तावेज में कहा गया है कि जंगल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों और पर्यावरण समझौतों का पालन करते हुए अनुचित हरित आर्थिक नीतियों से दूर रहेंगे। उन्होंने विभिन्न स्रोतों से, विशेषकर विकासशील देशों में वनों के लिए नई फंडिंग सुनिश्चित करने का भी वादा किया है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने जंगल की आग को रोकने और खनन से क्षतिग्रस्त भूमि को बहाल करने पर भी प्रतिबद्धता जताई है।

महासागर के संसाधनों की रक्षा करने और उनका बेहतर उपयोग करने के लिए, उन्होंने एक महासागरों पर आधारित एक स्थाई और मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए चेन्नई उच्च स्तरीय सिद्धांतों को मंजूरी दी है।

उन्होंने समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के तहत एक नए अंतरराष्ट्रीय बाध्यकारी समझौते के निर्माण का भी समर्थन किया है, जो राष्ट्रीय सीमाओं से परे समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और निरंतर उपयोग पर ध्यान केंद्रित करता है।

जी20 देशों ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्य समूह की स्थापना को मान्यता दी है, जिसका अध्यक्ष भारत है। इस समूह ने आपदाओं से जुड़े जोखिमों को कम करने और उससे जुड़े कार्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

दस्तावेज में आपदा से जुडी प्रारंभिक चेतावनियां प्रदान करने और शीघ्र कार्रवाई करने के प्रयासों को तेज करने पर भी चर्चा की गई है। इसमें राष्ट्रीय और स्थानीय क्षमताओं को मजबूत बनाना, परियोजनाओं को निधि देने के लिए रचनात्मक तरीकों का उपयोग करना, निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करना और ज्ञान साझा करना शामिल है।

सदस्यों ने सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए वैश्विक मंच और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन जैसी संयुक्त राष्ट्र की पहल का समर्थन किया है।