जलवायु

जलवायु कार्रवाई, जलवायु न्याय और नई जीवन शैली की यात्रा हो जी20

Kanhaiya tripathi

जागरूक जीवन शैली की कवायद अब तेज हो गयी है। दुनिया में बदलाव से जीवन शैली प्रभावित हुई है। संघर्ष और समाधान की तलाश करते अनेकों जनजीवन इस जागरूक जीवन शैली को जानने के लिए उत्सुक हैं कि उनका आने वाला समय बेहतरीन होगा या चुनौतीपूर्ण ही रहेगा।

जी-20 जैसे बड़े अंतर्संबंधों से बंधे देश जब भारत में एकत्रित हो रहे हैं तो उन्हें इस अवधारणा को समझने की कोशिश करनी चाहिए कि जलवायु परिवर्तन से उनके देशों के नागरिकों के जीवन शैली प्रभावित हो रही है तो क्यों हो रही है।

हाल ही में भारत में इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने के लिए दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में ‘मॉडल जी-20’ आयोजित किया गया और यह जानने की कोशिश की गई कि युवाओं के भीतर जलवायु कार्यवाई, जीवनशैली और चुनौतियों के बारे में क्या राय है।

विभिन्न चुनौतियों के बीच जी-20 की अनिवार्य-डिप्लोमेसी तथा सरोकारों से युवाओं की अंतश्चेतना में जलवायु की समझ विकसित करने की यह कोशिश निश्चित ही एक अच्छी पहल के रूप में रेखांकित की जा रही है। देश के ग्रामीण अंचलों से लेकर आदिवासी क्षेत्रों में यद्यपि जी-20 जैसी कोई बड़ी बैठकें विभिन्न उद्देश्यों को लेकर भारत में चल रही है, इसकी भनक तक नहीं है।

शहरी और उच्च मध्य-वर्ग से आने वाले युवा भले जी-20 को लेकर थोड़ी समझ रख रहे रहे हों लेकिन यह एक सच है कि भारत की रिमोट एरिया में रहने वाली जनसंख्या जी-20 के नफे नुकसान से ज्यादा परिचित नहीं है।

क्या है लाइफ?

लाइफ आन्दोलन का उद्देश्य, सामूहिक कार्रवाई की शक्ति का उपयोग करना है और दुनिया भर में लोगों को अपने दैनिक जीवन में सरल जलवायु-अनुकूल कार्य करने के लिए प्रेरित भी करना है। इसके अतिरिक्त, लाइफ-आन्दोलन, जलवायु के आसपास के सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करने के लिए युवाओं और सामाजिक संपर्कों की ताकत का लाभ उठाने का भी प्रयास करता है।

लाइफ की योजना “प्रो प्लैनेट पीपुल” (पी-3) नामक एक ऐसे वैश्विक नेटवर्क बनाने व पोषित करने की कोशिश है, जहां पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली को अपनाने और उसे बढ़ावा देने के लिए साझा प्रतिबद्धता सुनिश्चित होगी। अब पी-3 समुदाय के माध्यम से, लाइफ एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की कोशिश करेगा, जो पर्यावरण अनुकूल शैली को व्यवहार में लाने का प्रयास करेगा।

प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पीके मिश्रा ने एक संबोधन में कहा था, “प्रो प्लैनेट पीपुल की अवधारणा और व्यक्तिगत व्यवहार पर ध्यान प्रकृति के करीब रहने के हमारे लोकाचार से लिया गया है। हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए मां प्रकृति से लेना इसमें शामिल है न कि हमारे लालच के लिए।”

इस प्रकार, यह अभियान पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली को बढ़ावा देता है, जो “नासमझ और बेकार खपत” के बजाय, “सचेत एवं सोच-समझकर उपभोग” करने पर केन्द्रित हो। लाइफ से एक ऐसे नेटवर्क की उम्मीद है जो 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कॉप-26 के संकल्पों की संवेदना को समझे और एक उत्कृष्ट जीवन शैली के लिए अग्रसर हो। भारत का और जी-20 देशों के हित लाइफ के साथ सुरक्षित होते हैं तो यह तो एक शानदार मंच और प्रेरक श्लोगन हमारे लिए हो सकता है। 

देश के सभी अंचलों में ‘यूथ फॉर लाइफ’ थीम की जागरूकता की जरूरत

जी-20 बैठक की विशिष्ट प्रक्रिया से परिचित कराने के लिए “यूथ फॉर लाइफ” एक शानदार मंच है जिसमें जी-20 के वैशिष्ट्य का बोध शामिल है। इसमें जलवायु कार्रवाई और जलवायु चुनौतियों के लिए मत-अभिमत ज्यादा मायने रखने वाले तथ्य हैं।

युवाओं के भीतर संयुक्त राष्ट्र की ओर से ऐसी पहल कर जी-20 के लिए एक नया विश्वास और संवेदना पैदा करने की जरूर इसे एक कोशिश माना जा सकता है लेकिन जिस देश की युवा आबादी 60 प्रतिशत है, उसे एक छोटे से आयोजन द्वारा पूरी 60 प्रतिशत आबादी के मानस पर प्रभाव नहीं समझा जा सकता है।

इसे अनुकरण का एक अभ्यास, समझना ठीक बात है, जहां स्कूली छात्रों ने जी-20, अतिथि देशों एवं अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों की भूमिका निभाकर, जी-20 बैठकों की कार्रवाई का अनुभव लिया। ऐसी अनुभव की देश के अधिकांश भागों में जरूरत है।

युवा संसाधन जागरूकता पाने के लिए उम्मीद भरी निगाहों से बेसब्री से इंतजार में हैं लेकिन शहरी क्षेत्रों के आस-पास की युवा आबादी को लक्षित करके उन्हें किसी कार्यक्रम में शामिल कर लेना काफी नहीं लगता।

भारत सरकार की संयुक्त राष्ट्र के साथ ऐसी महत्वाकांक्षी रणनीति ग्रामीण अंचलों, वन-क्षेत्रों और बॉर्डर एरिया में रह रहे युवाओं को भी लाभान्वित करने के लिए होनी चाहिए। जी-20 के इस महान संकल्प आयोजनों के हिस्सा तो वे भी हैं जो हाशिये पर रहते हैं।

युवा भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता

युवा भविष्य के वैज्ञानिक और कल के नेता हैं। यद्यपि जलवायु संरक्षण की जिम्मेदारी सबकी है। लेकिन युवा मन से जलवायु ज्यादा संरक्षित होगी, ऐसी उम्मीद करना आवश्यक है। ग्रेटा थनबर्ग और दूसरी अनेकों किशोरियों ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर अपना प्रतिरोध इस बात पर दर्ज करते हुए आह्वान कर चुकी हैं कि हमारा जलवायु एजेंडे का अभियान समस्त देश सक्रियता से लागू करें ताकि आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित भविष्य हम दे सकें।

युवा भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि जब युवा एक स्वर से आवाज देंगे तो नींद में सोये लोग संभव हैं कि जागकर अपने आने वाले भविष्य के लिए तत्पर हों।

प्रधान मंत्री के प्रमुख सचिव पीके मिश्रा ने एक संबोधन में एक बात गांधी जी के संबंध में कही कि मुझे गांधीजी के शब्द याद आते हैं, “मैं चाहता हूं कि सभी देशों की संस्कृतियां मेरे घर के चारों ओर यथासंभव मुक्त रूप से प्रवाहित हों।” संस्कृतियों का सम्मिलन एक जरूरी बात है लेकिन जलवायु विनिर्मित संस्कृतियां यदि मिलेंगी तो एक असरकारक और स्थायी सामाजिक अवसंरचना हम बुन सकेंगे।

हमारे सरोकारों का सम्मिलन मनुष्य-केन्द्रित तो हो लेकिन इसमें प्रकृति केन्द्रित सरोकारों का सम्मिलन आवश्यक लगता है। इस महनीय अभियान के लिए जलवायु केन्द्रित जीवन शैली की आवश्यकता है।

जलवायु कार्रवाई अब मिशन के रूप में आवश्यक

गरम होती पृथ्वी, समुद्री चिंताएं और पिघलते ग्लेशियर इस बात के संकेत हैं कि हमारी पृथ्वी और प्रकृति संकट में हैं। विगत दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा था, “समन्दर जीवन है। समन्दर आजीविका है और समन्दर इतिहास व संस्कृतियों में मानवता को एक साथ बांधता है। अब सटीक समय है– लाभ और समन्दर की सुरक्षा के बीच मौजूद झूठे विरोधाभास को समाप्त करने का।

अगर हम समन्दर को, भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने में नाकाम रहते हैं तो, किसी के लिए भी कोई लाभ नहीं बचेगा।” केवल समुद्र ही नहीं अनेकों ऐसे उदाहरण हैं प्रकृति के क्षरण होने के जिनसे मनुष्यता और अनेकों जीव-जन्तु संकट में आने वाले हैं। ग्रीनहाउस गैसों जैसे कार्बन डाईऑक्साइड इत्यादि के उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है, इसलिए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का आह्वान एक समय सापेक्ष संदेश के रूप में लिया जाए तो अच्छा है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की बहुत सी अवधारणाओं को तोड़ती जलवायु समस्याओं की ओर ध्यान केन्द्रित करने की बारी है तो जी-20 में शामिल हो रहे देशों के बीच जलवायु और जीवन-शैली से संबंधित एक सामूहिक श्रेष्ठ संकल्प-पत्र पर संकल्पित होने की आवश्यकता है ताकि जी-20 के देश अपनी युवा मानसिकता के साथ युवा संसाधन का उपयोग करते हुए उदाहरणीय कार्ययोजना बना सकें। “यूथ फॉर लाइफ” यह केवल एक श्लोगन नहीं बने तो अच्छा है बल्कि इसको जीवन शैली में उतारना भी राष्ट्रों की नैतिक जिम्मेदारी है।

जलवायु न्याय से समाधान

जलवायु न्याय का औचित्य कुछ देश मानने को तैयार नहीं हैं लेकिन जलवायु न्याय की अवधारणा देशों द्वारा अपनाने की कोशिश बढ़नी चाहिए। हानि और क्षति कोष की पुनर्बहाली से पुनर्वास और सतत जीवन की प्रत्याशा है, इसलिए भी जलवायु न्याय की बात कॉप-27 में उठी थी और उस पर विभिन्न देश काफी गंभीर लगे।

सतत विकास लक्ष्य-2030 के उद्देश्यों को प्राप्त करने की कोशिश में यदि जलवायु न्याय को शामिल नहीं किया गया तो सतत विकास लक्ष्य के उद्देश्यों की प्राप्ति की वकालत बेमानी हो जाएगी। इसलिए दुनिया की चिंता जलवायु न्याय की ओर मुड़ चुकी है।

अब यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि पहले की अपेक्षा ज्यादा जागरूकता जलवायु को लेकर है लेकिन उन देशों की भागीदारी सुनिश्चित यदि होती है जो जलवायु संकट की बड़ी बातें करते हैं लेकिन काफी मात्रा में ग्रीन हाउस गैस का उत्पादन करके जलवायु को खतरे भी पैदा कर रहे हैं, तो निश्चय ही किसी निर्णायक प्रतिफल की ओर हम बढ़ सकेंगे। समस्या यह है कि सभी देश एक मत हों पर उनके कार्यान्वयन और नियोजन की क्षमता में समानता नहीं दर्शाते जिससे जलवायु समाधान और जलवायु न्याय की कसौटी पर हमारे लक्ष्य हासिल नहीं हो पा रहे हैं।

जी-20 देशों की यह भी नैतिक जिम्मेदारी है कि वे भारत में यदि एक मंच पर आकार विभिन्न सामूहिक चिंताओं को रेखांकित कर रहे हैं तो उन्हें युवा-प्रतिभागिता, जलवायु लक्ष्य और जलवायु न्याय पर चर्चा ज्यादा करना चाहिए और यह कोशिश करनी चाहिए कि सभी एक मत से इस पर अपनी प्रतिबद्धता और कार्यान्वयन भी सुनिश्चित करें। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि पूरा देश जी-20 हो जलवायु कार्रवाई, जलवायु न्याय और नई जीवन शैली की यात्रा का आग्रही है।