सही सूचनाएं और सही डाटा अपने आप में ही एक हथियार है, जो कि समाज कि भलाई और वैश्विक विकास कि कुंजी है। पर क्या हो, यदि गलत सूचनाएं दी जाए तो, यह समाज के लिए एक बड़ा अभिशाप बन सकती हैं। हाल ही में छपी एक रिपोर्ट "अमेरिका मिसलीड: हाउ द फॉसिल फ्यूल इंडस्ट्री डेलीब्रेटेली मिसलीड अमेरिकन्स अबाउट क्लाइमेट चेंज" के अनुसार दशकों से फॉसिल फ्यूल इंडस्ट्री अपने उत्पादों और क्लाइमेट चेंज के विषय में सटीक सूचनाएं नहीं दे रही हैं। साथ ही, वो जनता के सामने सही परिदृश्य प्रस्तुत नहीं कर रही हैं। वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय समूह ने बताया है कि किस तरह फॉसिल फ्यूल इंडस्ट्री दशकों से जनता को जलवायु परिवर्तन के बारे में सही सूचना नहीं दे रही। इसके लिए उन्होंने गलत तरीके से फण्ड जारी करके सूचनाओं को दूषित किया है। जिसे पाना आम जनता का हक था।
यह रिपोर्ट ब्रिटेन के ब्रिस्टल, यूएस के जॉर्ज मेसन और हार्वर्ड विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों द्वारा मिलकर जारी की गई है। यह एक दशक से अधिक समय में किये गए शोधों की समीक्षा पर आधारित है, जोकि नीति निर्माताओं, पत्रकारों और जनता को सच्चाई से अवगत कराने के उद्देश्य से प्रकाशित की गयी है। रिपोर्ट में इस तथ्य को शामिल किया है कि फॉसिल फ्यूल इंडस्ट्री को क्लाइमेट चेंज और अपने उत्पादों के सम्बन्ध के बारे में क्या जानकारी थी, जबकि उन्होंने इसके सन्दर्भ में क्या किया है। उन्होंने इसके विषय में जो तर्क दिए, साथ ही इन तर्कों के लिए उन्होंने जो तरीके और रणनीतियां बनायीं, वो जनता के मन में संदेह पैदा करती हैं ।
इस रिपोर्ट में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है:
1.इस इंडस्ट्री के आंतरिक दस्तावेजों से पता चला है कि उन्हें दशकों से जलवायु परिवर्तन में मनुष्यों की भूमिका के बारे में जानकारी थी। परन्तु उन्होंने इसे छुपाने और दबाने और अपने व्यवसाय की रक्षा करने के लिए गलत तरीके से अपने ताकत और रसूक का इस्तेमाल किया था ।
2.जैसे ही जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वैज्ञानिक की सहमति बनती, इस उद्योग और उसके राजनीतिक सहयोगियों ने सर्वसम्मति पर हमला किया और अनिश्चितताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया
3. जीवाश्म ईंधन उद्योग ने इस बात के लिए कोई सुसंगत स्पष्टीकरण नहीं दिया कि जलवायु क्यों बदल रही है, उनका लक्ष्य केवल जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई के खिलाफ बन रहे समर्थन को कम करना था।
4. जीवाश्म ईंधन का हित चाहने वालों द्वारा, जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक साक्ष्य को चुनौती देने के लिए अनेकों रणनीति, बयानबाजी और तकनीकों का इस्तेमाल किया गया । यह सब वैसा ही था जैसे तंबाकू नियंत्रण की कार्यवाही में देरी के लिए तंबाकू उद्योग द्वारा प्रयास किये गए थे।
5. जनता को इसके बारे में बताने से कि ये तर्क कैसे भ्रामक हैं, न केवल यह गलतफहमी दूर हो सकती है । बल्कि साथ ही यह भविष्य में जनता को भ्रमित करने वाले फॉसिल फ्यूल इंडस्ट्री के कैंपेन को मुश्किल बना देगा ।
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल में साइकोलॉजिकल साइंस और कैबॉट इंस्टीट्यूट फॉर द एनवायरनमेंट में कॉग्निटिव साइकोलॉजी में चेयर प्रोफेसर स्टीफन लेवांडोस्की ने बताया कि "जलवायु परिवर्तन के बारे में गलत जानकारी का एक सीधा उद्देश्य है - जलवायु परिवर्तन पर हो रही कार्रवाई को रोकना। अमेरिका में यह दशकों से जलवायु परिवर्तन को रोकने और उसमें देरी लाने वाली नीतियों के रूप में काफी हद तक सफल भी रहा है।"
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में विज्ञान के इतिहास विभाग में रिसर्च एसोसिएट जेफ्री सुप्रान ने समझाया कि "पिछले 60 वर्षों से फॉसिल फ्यूल इंडस्ट्री अपने उत्पादों से होने वाले ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के बारे में जानती थी । लेकिन बजाय जनता को इसकी चेतावनी देने और इसके विषय में कुछ करने के वह इस सच को झुठलाती रही और इसपर होने वाले प्रयासों में देरी करती रही, जिससे उसका मुनाफा कम न हो । एक्सॉन ने अन्य उद्योगों की तरह यही किया, और जनता को गुमराह किया है । उसे इसके लिए जवाबदेह होना चाहिए।"