जलवायु

खाद्य पदार्थों की बर्बादी रोकनी होगी, तब कम होगा जलवायु परिवर्तन

Ishan Kukreti

खाद्य सामग्री  की बर्बादी  रोकने  से ग्रीन हाउस गैसें गैसों के उत्सर्जन में कमी आ सकती है। वर्तमान में खाद्य पदार्थों की बर्बादी ग्लोबल फूड प्रोडक्शन का एक तिहाई हिस्सा है। बढ़ती आबादी और प्रति व्यक्ति खपत में बढ़ोतरी के कारण भूजल और ताजा पानी के इस्तेमाल में काफी वृद्धि हुई है। खासकर सिंचाई के लिए विश्व के 70 फीसदी ताजा पानी के स्त्रोतों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

यही नहीं, भूमि के गलत इस्तेमाल और अत्याधिक पानी वाली फसलों की वजह से जैव विविधता में गिरावट आई है। यह बात जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की फाइनल रिपोर्ट में कही गई है। आईपीसीसी ने यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन, मरुस्थलीकरण, भूमि उन्नयन, टिकाऊ भूमि प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी प्रणालियों में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन पर तैयार की है।

जेनेवा में 2 से 6 अगस्त तक होने वाली आईपीसीसी की बैठक में इस रिपोर्ट पर विचार किया जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक, 1961 में लेकर अभी तक प्रति व्यक्ति खाद्य कैलोरी बढ़ी है। जबकि मांस एवं वेजिटेबल ऑयल का उत्पादन लगभग दो गुना हो गया है। इसके बावजूद दुनिया में 82 करोड़ लोग कुपोषित हैं और 2 अरब लोग मोटापे के शिकार हैं। जहां एक तरफ कृषि योग्य भूमि और खाद्य उत्पादन में बढ़ोतरी  हुई है। जबकि 25-30 फीसदी खाना बर्बाद हो जाता है।

एक तरफ जलवायु परिवर्तन की वजह से खाद्य उत्पादन कम हो रहा है। वहीं, दूसरी तरफ गलत तरीके से भूमि उपयोग के वजह से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में भी बढ़ोतरी हो रही है।

वर्तमान में, वैश्विक खाद्य प्रणाली विश्व की एक तिहाई गैस हाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है।  रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दुनिया में खाद्य उत्पादन से लेकर उपभोग तक की समुचित व्यवस्था को सही नहीं किया गया तो यह ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन एक बड़ी समस्या बन सकती है और इसमें 2050 तक 30 से 40 फीसदी की वृद्धि संभव है। 

रिपोर्ट के मुताबिक, टिकाऊ खाद्य उत्पादन, वन प्रबंधन और खाद्य सामग्री की बर्बादी रोकने के कदम व जलवायु परिवर्तन में कमी लाने वाली योजना को अपनाने से न सिर्फ मरूस्थलीकरण रुकेगा, बल्कि खाद्य सुरक्षा भी मजबूती होगी। यदि विश्व खाद्य प्रणाली को मजबूत किया जाए तो जलवायु परिवर्तन से होने वाली कई समस्याओं से बचा जा सकता है।