जलवायु

लू और सूखा के चलते दुनिया के खाद्य उत्पादन में एक-चौथाई गिरावट की आशंका

शोधकर्ताओं ने 40 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया है और पाया कि विशिष्ट तरंगों के चलते तीन महाद्वीपों के तापमान में वृद्धि देखी गयी है। बढ़ता तापमान बारिश को कम करता है और मिट्टी की नमी सूखती है

Lalit Maurya

ग्लोबल वार्मिंग के कारण चरम मौसमी घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। खासतौर से जलवायु परिवर्तन एक चुनौतीपूर्ण अंसतुलन पैदा कर रहा है। वैज्ञानिकों ने जेट स्ट्रीम के एक ऐसे पैटर्न की खोज की है, जो वैश्विक खाद्य उत्पादन को 25 फीसदी तक कम कर सकता है। जेट स्ट्रीम का यह पैटर्न सिर्फ स्थानीय ही नहीं बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों के मौसम को भी प्रभावित कर सकती हैं।

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जेट स्ट्रीम तरंगो का एक विशिष्ट पैटर्न उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और एशिया के प्रमुख खाद्य उत्पादक क्षेत्रों में लू (हीटवेव) और सूखा बढ़ा सकता है। शोध में यह भी पाया गया है कि हीटवेव इन क्षेत्रों में फसलों के उत्पादन को काफी कम कर रही हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके चलते वैश्विक स्तर पर खाद्य उत्पादन एक चौथाई तक कम हो सकता है। जिससे कई फसलों के बर्बाद होने के साथ-साथ और सामाजिक स्तर पर उथल-पुथल हो सकती है। साथ ही सामाजिक रूप से इसके कई अन्य दूरगामी दुष्परिणामों का खतरा भी बढ़ रहा है।

 वहीं,मध्य-अक्षांशों में आये दिन जेट स्ट्रीम के कारण ही मौसम में बदलाव होते रहते हैं, जिससे चक्रवात और प्रतिचक्रवात दोनों प्रभावित हो रहे हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ इंस्टीट्यूट में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो और इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता काई कॉर्नहुबर ने बताया कि, "वैश्विक स्तर पर जेट स्ट्रीम के इन विशिष्ट पैटर्नों के बनने से प्रमुख फसल उत्पादक क्षेत्रों में हीटवेव का जोखिम 20 गुना तक बढ़ गया। अब तक दुनिया इस खतरे से अनजान थी।" शोधकर्ताओं के अनुसार इसके चलते प्रभावित क्षेत्रों में फसलों का उत्पादन में 4 फीसदी गिर सकता है। जबकि क्षेत्रीय स्तर पर उत्पादन में 11 फीसदी की कमी आ सकती है। चूंकि यह क्षेत्र वैश्विक खाद्य उत्पादन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिए इसके चलते खाद्य सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है।“

क्या कहता है अध्ययन

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किये इस अध्ययन के अनुसार जब जेट स्ट्रीम में रहस्यमय ढंग से उतार-चढ़ाव होता है। इन तरंगो को रॉस्बी वेव्स कहते हैं। गर्म हवाओं के इन उतार-चढ़ाव से दुनिया के प्रमुख खाद्य उत्पादक क्षेत्रों पर गंभीर असर पड़ सकता है। सामान्यतः जेट स्ट्रीम क्षोभमंडल की ऊपरी सीमा तथा समतापमंडल की निचली सीमा में तेजी से बहने और घूमने वाली धाराएं होती है। जो आम तौर पर पश्चिम से पूर्व की और बहती हैं। इन धाराओं में बेतरतीब उतार-चढ़ाव होना स्वाभाविक है। रॉस्बी तरंगों के कारण हवा उत्तर या दक्षिण की ओर चलती है। लेकिन क्लाइमेट चेंज के चलते इनसे हीटवेव बनने लगती है। यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में जलवायु में प्रभाव डाल सकती है। जिससे कृषि और समाज पर सबसे अधिक असर पड़ता है।

शोधकर्ताओं ने 40 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया है और पाया कि इन विशिष्ट तरंगों के चलते तीन महाद्वीपों के तापमान में वृद्धि देखी गयी है। बढ़ता तापमान बारिश को कम कर देता है और मिट्टी में नमी सूख जाती है। परिणामस्वरूप फसलें मर जाती हैं और खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती  हैं। जिससे सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। शोधकर्ताओं के अनुसार 1983, 2003, 2006, 2012 और 2018 में इन रहस्यमयी लहरों का सबसे गहरा असर पड़ा था। वैज्ञानिकों का मानना है कि जेट स्ट्रीम के व्यवहार को समझकर हम मौसम के पूर्वानुमानों में सुधार ला सकते हैं। साथ ही कई खाद्य-उत्पादक क्षेत्रों में फसलों की विफलता सम्बन्धी जोखिम को सीमित कर सकते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया, तो आने वाले दशकों में इससे हीटवेव और सूखे का खतरा कही अधिक बढ़ सकता है।