बदलते मौसम के पैटर्न भी क्षेत्रीय मौसम की चरम स्थितियों, जैसे कि लू या हीटवेव और बारिश में अत्यधिक वृद्धि से जुड़े हुए हैं। कुछ क्षेत्रों में, ये चरम स्थितियां जलवायु विज्ञान की तुलना में चार गुना अधिक बार होती हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ रहा है मौसम का 'आतंक', क्या है वजह?

शोधकर्ताओं ने पाया कि 1990 के दशक से पहले के दुर्लभ मौसम के पैटर्न अधिक आम हो गए हैं, जबकि कुछ अन्य जो कभी प्रमुख थे, लगभग गायब हो गए हैं।

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में उष्णकटिबंधीय मौसम के पैटर्न में लंबे समय से हो रहे बदलवों के बारे में अहम जानकारी दी गई है, जिसमें कहा गया है कि हिंद-प्रशांत या इंडो-पैसिफिक में लू या हीटवेव और भयंकर बारिश जैसी चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस बदलाव के पिछे अन्य कारणों के अलावा ग्लोबल वार्मिंग भी जिम्मेवार है।

अध्ययन के मुताबिक, हिंद-प्रशांत के इलाकों में मौसम के पैटर्न में बदलाव को लेकर हाल ही में प्रस्तावित पद्धति का उपयोग किया गया है जो वायुमंडलीय एनालॉग का उपयोग करके मौसम के पैटर्न में होने वाले बदलावों का पता लगाती है। इसकी वजह से चरम घटनाओं के साथ उनके संबंधों का सीधे अध्ययन करना संभव हो जाता है, जो पहले असंभव था।

शोध में कहा गया है कि इस पद्धति की बदौलत, नए बड़े पैमाने पर वायुमंडलीय पैटर्न में आने वाले बदलावों की पहचान करना संभव हो गया, जो क्षेत्रीय मौसम की चरम स्थितियों को बढ़ा रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में उष्णकटिबंधीय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विकसित होती मौसम संबंधी प्रणालियों का विश्लेषण करने के लिए नए तथा दोबारा विश्लेषण किए गए डेटासेट का उपयोग किया गया है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि 1990 के दशक से, पहले दुर्लभ मौसम पैटर्न अधिक आम हो गए हैं, जबकि कुछ अन्य जो कभी प्रमुख थे, लगभग गायब हो गए हैं। ये परिवर्तन पैसिफिक वॉकर सर्कुलेशन में बदलाव से जुड़े हैं, जो उष्णकटिबंधीय मौसम और जलवायु में बदलाव के लिए जाना जानें वाला प्रमुख कारण है, जिसके भविष्य में होने वाले बदलाव वर्तमान जलवायु मॉडल में अत्यधिक अनिश्चित हैं।

उष्णकटिबंधीय मौसम के पैटर्न में हो रहा भारी बदलाव उष्णकटिबंधीय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय चरम सीमाओं, जैसे कि लू या हीटवेव और अत्यंत भारी बारिश को काफी हद तक बढ़ा रहे हैं। यह अध्ययन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में प्रवृत्ति बनाम बदलाव को अलग करने वाले पहले अध्ययनों में से एक है, एक ऐसा पहलू जो ऐतिहासिक रूप से चुनौतीपूर्ण रहा है।

पहचाने गए बदलावों के अंतर-वार्षिक तरीकों से पूरी तरह से समझाया नहीं जा है और इसके पीछे मानवजनित वैश्विक तापमान वृद्धि हो सकती है, हालांकि अन्य कारणों का असर भी उनमें से एक की भूमिका निभा सकता है।

जलवायु मॉडलिंग और जलवायु के अनुकूल होने की रणनीतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए और अधिक गहन विश्लेषण की जरूरत होती है, विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय हिंद-प्रशांत में, जहां जलवायु मॉडल अभी भी विश्वसनीय अनुमान प्रदान करने के लिए संघर्ष करते हैं।

नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि नए बड़े पैमाने पर के मौसम के पैटर्न एक तेज प्रशांत खतरनाक परिसंचरण के रूप में सामने आते हैं और दक्षिण-पूर्व एशिया में नमी और गर्म परिस्थितियों और भूमध्यरेखीय प्रशांत में शुष्क परिस्थितियों से जुड़े होते हैं।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा है कि सामने आते पैटर्न को प्राकृतिक तौर पर बदलाव के तरीकों, जैसे कि एल नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ), हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी), प्रशांत दशकीय दोलन (पीडीओ) और अटलांटिक बहुदशकीय दोलन (एएमओ) द्वारा समझाया नहीं जा सकता है, बल्कि वे हो सकता है 1940 के दशक से लेकर वर्तमान तक के लंबे समय के रुझानों से प्रेरित हों।

बदलते मौसम के पैटर्न भी क्षेत्रीय मौसम की चरम स्थितियों, जैसे कि लू या हीटवेव और बारिश में अत्यधिक वृद्धि से जुड़े हुए हैं। कुछ क्षेत्रों में, ये चरम स्थितियां जलवायु विज्ञान की तुलना में चार गुना अधिक बार होती हैं, जब वे उभरते मौसम के पैटर्न से जुड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया, सिंगापुर, दक्षिण भारत, फिलीपींस और पश्चिमी प्रशांत के कुछ हिस्सों सहित कई क्षेत्रों में जलवायु विज्ञान की तुलना में लू की घटनाओं में भारी वृद्धि देखी गई है

वहीं, दक्षिण चीन सागर और उसके आसपास के इलाकों, जिनमें वियतनाम और फिलीपींस, मलय प्रायद्वीप, सिंगापुर, दक्षिण भारत का सिरा और ऑस्ट्रेलिया के तट से दूर हिंद महासागर का एक हिस्सा शामिल है, यहां अत्यधिक बारिश की आवृत्ति में काफी वृद्धि देखी गई है।

चरम मौसम में यह वृद्धि उल्लेखनीय है, क्योंकि इस तरह के बदलाव ऐसे क्षेत्र में लंबे समय में जलवायु प्रवृत्तियों व मौसम की चरम स्थितियों से जुड़े हुए हैं। ये निष्कर्ष जलवायु परिवर्तन को लेकर महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बताते हैं कि नए और उभरते मौसमी पैटर्न एक ऐसे क्षेत्र में तेजी से चरम मौसम में बढ़ोतरी कर रहे हैं, जहां एक अरब से अधिक लोग रहते हैं।

लू और अत्यधिक बारिश की बढ़ती घटनाओं से भयंकर गर्मी और बाढ़ आ सकती है। चरम मौसम की घटनाओं के कारण गंभीर सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं, इन बदलावों को समझना जलवायु मॉडल में सुधार लाने और भविष्य की जलवायु अनुकूलन की रणनीतियों को बनाने के लिए अहम हैं।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि मौसम के पैटर्न में यह बदलाव उष्णकटिबंधीय इलाकों में तेजी से हो रहे बदलावों की हमारी पिछली समझ को चुनौती देता है और कमजोर क्षेत्रों में चरम घटनाओं के लिए जलवायु अनुमानों और तैयारियों में सुधार करने की तत्काल जरूरत को सामने लाता है।

शोध के मुताबिक, हीटवेव और अत्यधिक बारिश दो ऐसी मौसमी चरम स्थितियां हैं, जिनके असर को कम करने के लिए नीति निर्माताओं को सावधानीपूर्वक और अग्रिम योजना बनाने की जरूरत पड़ती है। उदाहरण के लिए, अधिक बार-बार आने वाली लू के कारण बिजली की मांग में वृद्धि हो सकती है, जिसके कारण बिजली की कटौती हो सकती है, गर्मी से संबंधित कई बीमारियां हो सकती हैं, जिसके लिए अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तरों की आवश्यकता होगी और फसलों के नुकसान से खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

बार-बार आने वाली अत्यधिक बारिश के कारण बाढ़ आ सकती है, जो बदले में मनुष्य जीवन, इमारतों और बुनियादी ढांचे के लिए एक सीधा खतरा है। अत्यधिक बारिश के कारण फसलों का नुकसान, पीने लायक पानी का दूषित होना और भूस्खलन जैसी घटनाएं सामने आती हैं।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, दक्षिण-पूर्व एशिया में चरम मौसम पर शोध अपेक्षाकृत न के बराबर हैं तथा नीति निर्माताओं और स्थानीय समुदायों को बदलती जलवायु के लिए बेहतर ढंग से तैयार करने के लिए और अधिक प्रयासों की जरूरत है।