जलवायु

विदेशी आक्रामक प्रजातियों की आमद बढ़ा रहा है जलवायु परिवर्तन, खतरे में पड़ी देशी प्रजातियां

अध्ययन के मुताबिक, कुल 24.8 फीसदी गैर-देशी प्रजातियां चरम मौसम की घटनाओं से लाभान्वित हुई, जबकि दूसरी ओर केवल 12.7 फीसदी देशी प्रजातियों को ही फायदा मिला।

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चरम मौसम की घटनाएं आक्रामक प्रजातियों के लिए अधिक अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण कर देशी पौधों और जानवरों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। यह नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन का निष्कर्ष है।

जंगल की आग, सूखा, भयंकर बारिश और तूफान सभी में बढ़ोतरी हो रही है और मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण अगली सदी में इनके और अधिक होने की आशंका जताई गई है।

सीमाओं से हटकर जैव सुरक्षा बढ़ाने और अनोखी प्रजातियों का उन्मूलन करने के ठोस वैश्विक प्रयासों के बावजूद, लोग अधिक प्रजातियों को नए क्षेत्रों में ले जा रहे हैं। इनमें से कुछ गैर-देशी प्रजातियां आक्रामक हो सकती हैं और देशी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

लोगों द्वारा लाई गई आक्रामक प्रजातियों में अक्सर ऐसे गुण होते हैं जो पारिस्थितिक तंत्र में गड़बड़ी जैसे जंगल की आग, तूफान आदि के कारण उन्हें जीवित रहने या पनपने में मदद करते हैं।

उदाहरण के लिए, आक्रामक पौधे आम तौर पर तेजी से बढ़ते हैं, जिससे देशी प्रजातियों के जल्दी से गड़बड़ी से उबरने से पहले वे कमी को भरने में सक्षम हो जाते हैं। वे अक्सर अपने बीज फैलाने में भी बहुत अच्छे होते हैं, जिससे वे गड़बड़ी वाले क्षेत्रों में तेजी से अपने आपको ढाल लेते हैं।

यही कारण है कि वैज्ञानिकों को लंबे समय से संदेह है कि चरम मौसम और गैर-देशी प्रजातियों की सफलता को जोड़ा जा सकता है।

यदि चरम मौसम देशी पौधों और जानवरों को नष्ट कर देता है, तो इससे पानी और स्थान जैसे संसाधनों की उपलब्धता बढ़ जाती है। गैर-देशी प्रजातियां स्वयं को स्थापित करने के लिए इन नए संसाधनों का फायदा उठा सकती हैं।

इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि चरम मौसम और गैर-देशी प्रजातियों के बीच परस्पर क्रिया की संभावना है, जिससे देशी जैव विविधता पर उनका प्रभाव बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में हाल ही में एक क्षेत्रीय प्रयोग में, वैज्ञानिकों ने जानबूझकर आग लगा दी जिससे अध्ययन किए गए क्षेत्र में लगभग 10 फीसदी लंबी पत्ती वाले देवदार के पेड़ खत्म हो गए।

लेकिन उन क्षेत्रों में जहां एक एशियाई मूल की आक्रामक कोगोनग्रास घास, इसे पाइंस के साथ खुद को स्थापित करने मदद मिल गई थी, आग के लिए अधिक ईंधन होने के चलते यह भयानक और लंबे समय तक जलती रही।

जहां वैज्ञानिकों ने सूखे की स्थिति का अनुकरण करने के लिए बारिश संबंधी आश्रयों को जोड़ा था, वहां घास सूख गई और आग और अधिक घातक हो गई थी। सूखे और आक्रामक प्रजातियों दोनों के मिलने से लंबी पत्ती वाले चीड़ की मृत्यु दर 44 फीसदी तक बढ़ गई।

इसी तरह, दक्षिण पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में छोटे मैक्वेरी द्वीप पर, अत्यधिक वर्षा और आक्रामक यूरोपीय खरगोशों की उपस्थिति के मेल ने काले-भूरे अल्बाट्रॉस के  प्रजनन की सफलता को कम कर दिया। आक्रामक खरगोशों द्वारा भारी चराई से पौधों का आवरण कम हो गया, जिससे अल्बाट्रॉस चूजों को चरम मौसम की स्थिति का सामना करना पड़ा।

चरम मौसम और आक्रामक प्रजातियों के बीच यह संबंध वैश्विक परिवर्तन के दो मानवजनित कारणों, देशी पौधों और जानवरों को खतरे में डालते हैं। आने वाले दशकों में देशों को अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि, पारिस्थितिकीविदों को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों और प्रजातियों की पहचान करनी चाहिए जिन्हें लागत कम करने और देशी जैव विविधता के नुकसान को रोकने के प्रयासों में शामिल किया जा सकता है।

चरम मौसम, आक्रामक प्रजातियों के लिए फायदेमंद होता है

यह बेहतर ढंग से समझने के लिए कि देशी और गैर-देशी प्रजातियां चरम मौसम की घटनाओं पर कैसे प्रतिक्रिया करती हैं, नए अध्ययन के पीछे वैज्ञानिकों ने 443 अध्ययनों से ली गई जानकारी का फिर से विश्लेषण  किया। उन्होंने इस बात का पता लगाया कि,  प्रजातियां जंगल की आग, सूखे और तूफानों पर कैसे प्रतिक्रिया करती हैं। कुल मिलाकर, उन्होंने सभी प्रमुख पशु समूहों से 187 गैर-देशी प्रजातियों और 1,852 देशी प्रजातियों को लेकर आंकड़े एकत्र किए।

उनके नतीजे बताते हैं कि देशी और गैर-देशी प्रजातियां वास्तव में चरम मौसम में अलग-अलग प्रतिक्रिया दे सकती हैं। सभी अध्ययनों में, कुल 24.8 फीसदी  गैर-देशी प्रजातियां चरम मौसम की घटनाओं से लाभान्वित हुई, जबकि दूसरी ओर केवल 12.7 फीसदी देशी प्रजातियों को ही फायदा मिला।

उदाहरण के लिए, जबकि सूखे ने ताजे या मीठे पानी और भूमि-आधारित पारिस्थितिकी तंत्र में देशी प्रजातियों को नुकसान पहुंचाया, उनके गैर-देशी समकक्षों ने कोई महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। विशेष रूप से, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र चरम मौसम की घटनाओं के प्रति तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिरोधी थे, जिसमें देशी और गैर-देशी प्रजातियों के बीच कम अंतर देखा गया।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि, समुद्री लू देशी मूंगा प्रजातियों को नुकसान पहुंचाती हैं, हालांकि, यह संबंध अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों में भी उजागर किया गया है।

दुनिया भर में हॉटस्पॉट की पहचान करना

अध्ययनकर्ताओं ने यह जानकारी ली और इसे चरम मौसम के ज्ञात वैश्विक हॉटस्पॉट के साथ जोड़ा, ताकि उन क्षेत्रों की पहचान की जा सके जहां मूल प्रजातियां विशेष रूप से चरम मौसम और आक्रामक प्रजातियों के संयोजन के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं।

उदाहरण के लिए, उन्होंने पाया कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप जैसे उच्च अक्षांश वाले क्षेत्र अत्यधिक ठंड के प्रति संवेदनशील हैं और उनमें गैर-देशी प्रजातियां हैं जिनको ठंड से फायदा होता है। वैकल्पिक रूप से, ब्राजील और पूर्वी एशिया में पश्चिमी अमेजन के क्षेत्रों को बाढ़ के प्रति संवेदनशील और बाढ़ प्रतिरोधी गैर-देशी प्रजातियों वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया था।

इन क्षेत्रों में, गैर-देशी प्रजातियों को बढ़ती ठंड या बाढ़ से फायदा मिल सकता है, जिससे देशी पौधों और जानवरों के लिए अधिक खतरा पैदा हो सकता है।

इस तरह के अध्ययन बहुत उपयोगी हैं, जिन क्षेत्रों को असुरक्षित के रूप में पहचाना गया है, उन्हें आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को रोकने के लिए शुरुआती निवारक उपायों के साथ या देशी जैव विविधता को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के उपायों के साथ शामिल किया जा सकता है।

यह अध्ययन गैर-देशी प्रजातियों को हटाने और आक्रमण-प्रतिरोधी देशी समुदायों को बढ़ाने और उनकी बहाली करने में मदद कर सकता है जिससे वे भविष्य की परिस्थितियों का बेहतर सामना कर सकते हैं। मैक्वेरी द्वीप पर यही हुआ, जहां आक्रामक खरगोशों और चूहों को आखिरकार खत्म कर दिया गया और पूरा पारिस्थितिकी तंत्र फिर से पहले जैसा हो गया।

अध्ययन में कहा गया है कि, ऐसी कार्रवाई महत्वपूर्ण हो सकती है क्योंकि हम बदलती जलवायु और दुनिया के पौधों और जानवरों के व्यापक मिश्रण के अनुकूल हैं।