पिछले कुछ वर्षों में वातावरण में मौजूद मीथेन का स्तर अपने चरम पर पहुंच गया है। नासा अर्थ ऑब्जर्वेटरी द्वारा साझा की गई जानकारी से पता चला है कि जीवाश्म ईंधन के चलते हर साल करीब 9.7 करोड़ मीट्रिक टन मीथेन उत्सर्जित हो रही है। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो इसके लिए तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले का निष्कर्षण, भंडारण और परिवहन मुख्य रूप से जिम्मेवार है।
वहीं यदि नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की ग्लोबल मॉनिटरिंग लेबोरेटरी द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो सितम्बर 2021 में मीथेन का मासिक औसत स्तर 1,900.5 पार्टस प्रति बिलियन (पीपीबी) पर पहुंच गया था। यह स्तर सितम्बर 2020 में 1,884.7 पीपीबी दर्ज किया गया था।
जलवायु परिवर्तन पर बने संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के अनुसार देश अलग-अलग सेक्टर के हिसाब से होने वाले मीथेन उत्सर्जन पर अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के साथ साझा करते हैं। जो इस बात पर आधारित होती है कि यह देश कितने जीवाश्म ईंधन का उत्पादन और उपयोग करते हैं। हालांकि यह देश केवल एक आंकड़ा साझा करते हैं जिसमें इसके उत्सर्जन की पूरी तस्वीर सामने नहीं आ पाती।
इसी को ध्यान में रखते हुए नासा के कार्बन मॉनिटरिंग सिस्टम से जुड़े वैज्ञानिकों ने जीवाश्म ईंधन के उत्पादन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन के मैप की एक पूरी श्रंखला तैयार की है। यह मैप 2016 के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित हैं। इन मानचित्रों में कोयले की खानों, तेल और गैस के कुओं, पाइपलाइनों, रिफाइनरियों, ईंधन भंडारण और परिवहन के स्थानों पर होने वाले उत्सर्जन को चित्रित किया गया है। इन मानचित्रों को नासा के गोडार्ड अर्थ साइंसेज डेटा एंड इंफॉर्मेशन सर्विसेज सेंटर द्वारा प्रकाशित किया गया है।
चीन में केंद्रित था कोयला खनन से होने वाला उत्सर्जन
इन मानचित्रों से पता चला है कि तेल से संबंधित मीथेन उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोत रूस में हैं, जबकि प्राकृतिक गैस से होने वाला उत्सर्जन अमेरिका में ज्यादा था। इसी तरह कोयले से होने वाला मीथेन उत्सर्जन चीन में सबसे ज्यादा था। यहां तेल और गैस से होने वाली उत्सर्जन के लिए कुओं, फ्लेयर्स, पाइपलाइनों, रिफाइनरियों और भंडारण सुविधाओं से होने वाले उत्सर्जन को मैप किया गया है, जबकि कोयले के लिए इसके खनन क्षेत्रों से होने वाले उत्सर्जन को मैप किया गया है।
मैप पर प्राकृतिक गैस से होने वाले उत्सर्जन को गहरी रेखाओं के साथ दर्शाया गया है यह रेखाएं पाइपलाइनों के स्थान को दर्शाती हैं। इस बारे में शोध से जुड़े शोधकर्ता टिया स्कार्पेली का कहना है कि अधिकांश उत्सर्जन पाइपलाइनों के साथ नहीं फैल रहे हैं। वे ज्यादातर कंप्रेसर स्टेशनों से आ रहे हैं।
जब इन आंकड़ों की तुलना जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के ग्रीनहाउस गैस ऑब्जर्विंग सैटेलाइट और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के ट्रोपोस्फेरिक मॉनिटरिंग इंस्ट्रूमेंट के आंकड़ों से की गई तो वैज्ञानिकों ने पाया कि कनाडा और अमेरिका ने जीवाश्म ईंधन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करके आंका था। वहीं दूसरी तरफ चीन में कोयले और रूस में तेल और गैस से होने वाले उत्सर्जन को इन्वेंट्री ने अधिक आंका था। उनके अनुसार ऐसा शायद बुनियादी ढांचे सम्बन्धी सटीक आंकड़ों की कमी संबंधित अनिश्चितताओं के कारण हो सकता है।
यदि औद्योगिक काल के पहले से तुलना करें तो आज वायुमंडल में मौजूद मीथेन का स्तर तीन गुणा बढ़ गया है। वहीं दूसरी तरफ यदि जलवायु परिवर्तन पर मीथेन के पड़ने वाले असर को देखें तो यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से वातावरण को गर्म कर रही है। यह गैस कितनी हानिकारक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्लोबल वार्मिंग के मामले में यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड से करीब 28 गुना अधिक शक्तिशाली है।
इस गैस के बारे में एक जो सबसे अच्छी बात यह है कि यह गैस कार्बनडाइऑक्साइड (सीओ2) की तुलना में बहुत कम समय तक ही वातावरण में रहती है। जहां सीओ2 को वातावरण से अपने आप खत्म होने में कई सदियां लग जाती हैं, वहीं मीथेन केवल 10 वर्षों में ही खत्म होने लगती है। इसका मतलब यह है कि यदि मीथेन उत्सर्जन में कटौती की जाए तो उसकी मदद से बहुत छोटी अवधि में ही तापमान में हो रही वृद्धि की दर को कम किया जा सकता है।
वहीं जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि यदि इस गैस को नियंत्रित करने के लिए प्रयास न किए गए तो 2050 तक इसके वैश्विक उत्सर्जन में 30 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। हालांकि इसके शमन के लिए जो मौजूदा तकनीकें उपलब्ध हैं उनकी मदद से इसके स्तर में 38 फीसदी की कमी की जा सकती है।
पहली बार कॉप-26 में दिया गया मीथेन उत्सर्जन पर ध्यान
इसी को ध्यान में रखते हुए दो नवंबर 2021 को पहली बार किसी कॉप-26 सम्मलेन में मीथेन की भूमिका को रेखांकित किया था, इससे पहले जलवायु परिवर्तन को लेकर होने वाले इस सम्मलेन में सारा जोर केवल कॉर्बन उत्सर्जन में कटौती पर होता है।
देखा जाए तो इस सम्मलेन में अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के नेतृत्व में 105 देशों ने स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी रूप से वैश्विक मीथेन संकल्प-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें उन्होंने वादा किया था कि वो 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में तीस फीसदी की कटौती करेंगे। देखा जाए तो यदि यह देश अपने वादे पर कायम रहते हैं तो वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में 40 फीसदी की कमी की जा सकती है। हालांकि भारत और चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
यह कटौती हमारे लिए कितनी जरुरी है इसका अंदाजा आप संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट से लगा सकते हैं जिसके अनुसार इस दशक में मानव द्वारा उत्सर्जित हो रही मीथेन में 45 फीसदी की कटौती की जा सकती है। यह कटौती 2045 तक तापमान में होने वाली 0.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को कम कर सकती है। देखा जाए तो इसकी मदद से पैरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने में काफी मदद मिलेगी।
इतना ही नहीं यह कटौती हर साल करीब 2.6 लाख लोगों की जान बचा सकती है। साथ ही इसकी मदद से अस्थमा के करीब 7.8 लाख मामलों में कमी आएगी। यह कटौती जहां हर साल 2.5 करोड़ टन फसलों के नुकसान को रोक सकती है, साथ ही इसकी मदद से अत्यधिक गर्मी के कारण बर्बाद होने वाले मानव श्रम के 7,300 करोड़ घंटों को बचाया जा सकता है।